शशिकांत गुप्ते
अब तो इस तालाब का पानी बदल दो*
ये कँवल के फूल कुम्हलाने लगे हैं
प्रख्यात शायर दुष्यन्तकुमारजी
यह शेर प्रासंगिक है।
सन 1963 में बैंगलौर में आयोजित सोशलिस्ट पार्टी के अधिवेशन में डॉ राममनोहर लोहियाजी ने गैर कॉंग्रेसवाद का प्रस्ताव रखा था।
लोहियाजी का गैर कॉंग्रेसवाद का प्रस्ताव एक रणनीति के तहत लिया गया प्रस्ताव था। रणनीति देश-काल-और परिस्थिति अनुसार बदलती है।
लोहियाजी ने गैर कॉंग्रेसवाद के नारे के साथ यह भी कहा था। जब कॉंग्रेस में अधिनायकवाद समाप्त हो जाएगा, तब हम कॉंग्रेस से भी हाथ मिलाने में पीछे नहीं हटेंगे।
गैर कॉंग्रेसवाद के नारे का कुछ लोग अपने स्वार्थ पूर्ति के लिए यह आशय निकाल रहें है कि, लोहियाजी कॉंग्रेस मुक्त भारत जैसे संकीर्ण सोच रखते थे। यह लोगों को भ्रमित करने वाला सोच है।
लोहियाजी ने तात्कालिक जनसंघ से भी हाथ मिलाया था। इसका कतई मतलब यह नहीं समझना चाहिए कि,लोहियाजीने सम्प्रदायिकता का समर्थन किया था।
वैचारिक भिन्नता और वैमनस्यता के अंतर को समझना को जरूरी है।
आज एक दल सिर्फ सत्ता केंद्रित राजनीति कर रहा है। सिर्फ सत्ता प्राप्ति की राजनीति ही अधिनायकवाद को जन्म देती है। अधिनायकवाद ही तानाशाह प्रवृत्ति को जन्म देता है।
समाजवाद अंतहीन आंदोलन है और समाजवाद ही लोकतंत्र का पर्याय है।
मुख्य मुद्दा है। दुष्यन्त कुमार के शेर में जो संदेश है उस पर वर्तमान में गम्भीरता सोचने और समझने की आवश्यकता है।
सत्ता केंद्रित राजनीति साम-दाम-दण्ड-भेद इन अनीतियों को प्रश्रय देती है।
इसलिए सत्ता प्राप्ति के लिए जोड़तोड़ और खरीदफरोख्त जैसा कर्म होने लगता है।
यह कर्म ठीक वैसा ही है जैसा प्रवित्र अनवरत बहती नदी में विभिन्न हानिकारक रसायनों को अवैध तरीके से छोड़ा जाता है।
जिसे सीवरेज का पानी मतलब मलिन पानी कहतें हैं।
सीवरेज का पानी मिलने से नदी ना सिर्फ अपवित्र होती है बल्कि ऐसा पानी साधारणतया आचमन करने लायक भी नहीं रहता है। सीवरेज के पानी के कारण नदी के पानी के बहाव में अवरोध पैदा होता है। जलजमाव के कारण पानी में शैवाल जमता है। जो स्वास्थ्य के लिए हानि कारक होता है।
इसीलिए शुरुआत में जो दुष्यन्त कुमारजी के शेर को प्रस्तुत किया गया है। उक्त शेर में यही संदेश है। शेर को पढ़कर बहुत गम्भीरता से समझने पर यही आशय स्पष्ट होता है।
अब तो इस तालाब का पानी बदल दो
ये कँवल के फूल कुम्हलाने लगे हैं
प्रगतिशील विचारक हमेशा किसी भी समस्या को जड़ से समाप्त करने के लिए प्रयत्नशील रहतें हैं।
प्रगतिशील अपने प्रयत्नों को कभी भी विराम नहीं देतें हैं।
प्रगतिशील मतलब क्रांतिकारी लोग। प्रत्यक्ष उदाहरण है देश की स्वतंत्रता। क्रांतिकारियों के द्वारा सँघर्ष और बलिदानों के कारण ही देश आजद हुआ है।
क्रन्तिकारियों ने बैगर किसी स्वार्थ के क्रांति में सक्रियता का निर्वाह किया है।
यह कर्म ठीक इस रचना के अनुरुप ही।
नदिया न पीये कभी अपना जल
वृक्ष न खाएं कभी अपने फल
शशिकांत गुप्ते इंदौर