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नास्तिक नहीं सिर्फ आस्तिक करतें है तीर्थ यात्रा

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शशिकांत गुप्ते

खबर सुन कर बहुत ही दुःख हुआ। तीर्थ क्षेत्र में बहुत से श्रद्धालु इहलोक त्याग स्वर्गवासी हो गए। कारण तीर्थ क्षेत्र का हवामान मानवों के अनुकूल  न होने के कारण जन हानि हुई। मौसम वैज्ञानिकों के अनुमान के आधार पर ऐसा कहा जाता है कि, धरती से आसमान की ओर निश्चित ऊँचाई पर और पाताल की ओर की नीचे की दूरी पर वातावरण में ऑक्सीजन की कमी हो जाती है। 

जब मानव में श्रद्धा जागृत होती है,तब मानव सभी तरह के संकटों और प्राकृतिक आपदाओं से लड़ने के लिए मानसिक रूप से स्वयं को सक्षम हो जाता है।

जो देशवासी स्वर्गवासी हुएं हैं उन्हें भावपूर्ण श्रद्धांजलि अर्पित करतें हैं।

तीर्थ क्षेत्र से एक और दुःखद खबर आई है। श्रद्धालुओं को तीर्थ क्षेत्र मे पुण्य प्राप्त करवाने में  मदद करवाने वाले खच्चर भी स्वर्गवासी हुएं हैं।

खच्चर,खर या गर्दभ प्रजाति का पशु है। खच्चर को गर्दभ प्रजाति का पशु कहना तकनीति तौर पर उचित नहीं है। खच्चर नस्ल की उत्पत्ति Female Donkey के साथ Male Horse संसर्ग से होती है।

खच्चर तीर्थ यात्रियों को अपनी पीठ पर लाद कर क्षमा करना पीठ पर बैठा कर तीर्थ का पुण्य कमाने में सहयोग करता है।

खच्चर मूक प्राणी है। खच्चर इतना पुण्य कार्य करता है तो निश्चित ही,खच्चर को भी पुण्य का लाभ मिलता ही होगा।

महाभारत की कथा में प्रमाणित तथ्य है कि, धर्मराज युधिष्ठिर के साथ श्वान को स्वर्ग जाने सौभाग्य प्राप्त हुआ था। इसी आधार यह कहा जा सकता है कि, सम्भवतः खच्चर भी स्वर्गलोक जातें होंगे।

खबरों को पढ़ सुन कर पता चला कि, हाल ही में जिस तीर्थ क्षेत्र में खच्चर परलोक सिधारें उन्हें मंदाकिनी सरिता में जल समाधि दी गई। बेचारे खच्चर कितना पुण्य का कार्य कर रहे थे।

मात्र 22 वर्ष की आयु में समाधिस्थ होने वाले संत ने तो उनके कार्यकाल में सिद्ध कर दिया कि, हरएक प्राणी में ईश्वर विद्यमान है। इसका मतलब खच्चर में भी है।

कुछ लोगों का कहना है कि, तीर्थ क्षेत्र में श्रद्धालुओं की तादात में बेतहाशा वृद्धि हुई इसलिए वहाँ की व्यवस्था गड़बड़ा गई।

प्रशासनिक व्यवस्था संभालने वालों ने यह सोचना चाहिए कि, कोविड माहामारी के कारण देश के असंख्य श्रद्धालु लगभग दो वर्षो तक तीर्थ यात्रा करने से वंचित रहें हैं। जैसे कोविड का कहर थमा,श्रद्धालुओं संयम टूटा और वे सभी तीर्थयात्रा कर पुण्य कमाने के लिए निकल पड़े।

सच में भारत देश में जन्म लेना ही पुण्यवान होने का प्रतीक है।

यहाँ इतनी पवित्र नदियां है, तीर्थस्थान है,तादाद में सिद्ध मंदिर हैं।इसके अलावा भगवान गणपतिजी दस दिनों के विराजमान होतें हैं। नवदुर्गा भी नो दिनों के लिए विराजती है। इसके अलावा अन्य तीज त्यौहार मौजूद है। अपने देश में पूण्य कमाने के लिए विपुल मात्रा में  धर्मस्थान और तीर्थ स्थान निश्चित अवसर भी उपलब्ध है। इस तारतम्य भारत में आयोजित होने वाले कुम्भ मेले  सिहंस्थ को कैसे भूल जाएं।

सच में भारत को। विश्व गुरु कहलाने का हक़ है। जैसे भारत में स्वयम्भू भगवान प्रकट होतें है, वैसे ही भारत को स्वयं ही स्वयं को विश्व गुरु घोषित कर देना चाहिए। भारतीयों को पुण्य कमाने के लिए सुविधाओं की कमी नहीं है। कुम्भ और सिंहस्थ मेले भी आयोजित होतें ही है।

यह लेख पढ़कर सीतारामजी ने कहा,चलों चलतें हैं।

मैने पूछा कहाँ ? सीतारामजी ने कहा देश में कितने पापी हैं,यह सर्वेक्षण किया जाएं?

मैने कहा इसकी जरूरत ही नहीं है। जिस देश में अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिए इतनी सुविधाएं उपलब्ध हैं। वहाँ कोई पापी मिलेगा यह सोचना ही गलत है।

अंत में तीर्थ क्षेत्र में जितने खच्चर परलोक गमन कर गए उन्हें भी श्रद्धांजलि।

खच्चरों की सहिष्णुता को सलाम और उनके द्वारा श्रद्धालुओं को पुण्यकार्य में किए जा रहें सहयोग के लिए Heads Off.  

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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