Site icon अग्नि आलोक

विभाजनकारी एजेंडे को शह देने के लिए प्रसाद तक के इस्तेमाल से भी गुरेज नहीं

Share

देश और दुनिया में समस्याओं की कमी नहीं. युद्ध, सत्ता परिवर्तन, चुनाव, भ्रष्टाचार और घोटाले, हमारे यहां सब थोक में चल रहे हैं. फिर बेचारे लड्डू की क्या बिसात, आप शायद पूछें. जी हां, भारत में धर्म से जुड़ी कोई भी चीज अत्यंत ज्वलनशील पदार्थ होती है. फिर यह कोई पड़ोस के हलवाई का लड्डू भी नहीं. माहौल में खटास पैदा करने वाली यह मिठाई वह पवित्र प्रसाद है जो तिरुपति में आपको मिलता है.आंध्र प्रदेश में तिरुमला का श्री वेंकटेश्वर मंदिर हिंदुओं की एक विशाल बहुसंख्या के लिए सबसे पवित्र धर्मस्थल है. यहां भगवान बालाजी की महिमा के बराबर ही प्रसिद्धि मंदिर का प्रसाद ‘तिरुपति लड्डू’ की भी है. किंवदंती यह है कि इस प्रसाद का सबसे शुरुआती उल्लेख बहुत पहले साल 1715 में किया गया था. चढ़ावे की यह मिठाई इतनी सर्वप्रिय है कि मंदिर में रोज करीब 3,00,000 लड्डू बनते हैं, जिनकी वजह से दुनिया के इस सबसे समृद्ध हिंदू धर्मस्थल के कोष में हर साल 500 करोड़ रुपए का योगदान होता है.

इन लड्डुओं को बनाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली करीब 10 वस्तुओं में चावल, चने का आटा, काजू, इलायची, किशमिश, मिश्री और ‘गाय का शुद्ध घी’ वगैरह हैं. मगर आखिरी वस्तु ‘घी’ को लेकर अब जबरदस्त विवाद खड़ा हो गया है. आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री एन. चंद्रबाबू नायडू ने 18 सितंबर को आरोप मढ़ दिया कि उनके पूर्ववर्ती मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी के समय तिरुपति के लड्डू प्रसादम बनाने के लिए इस्तेमाल किए गए घी में ‘पशु चर्बी’ के अंश थे.

बस फिर क्या था, मानो आसमान फट पड़ा. राज्य में सत्तारूढ़ राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के सहयोगी दलों-जन सेना पार्टी (जेएसपी) और भाजपा-सहित दूसरी राजनैतिक पार्टियों ने एक दूसरे के सुर में सुर मिलाकर पिछली युवजन श्रमिक रायतु कांग्रेस पार्टी (वाईएसआरसीपी) की सरकार पर लापरवाही बरतने का आरोप लगाया. जगन ने पलटवार किया कि आरोप “दुर्भावनापूर्ण” हैं और नायडु की इशारों ही इशारों में यह कहने के लिए कड़ी आलोचना की कि उनका ईसाई धर्म किसी न किसी रूप में मंदिर में हुए कथित गलत काम से जुड़ा था.

आंध्र प्रदेश का यह मंदिर देश भर के हिंदू तीर्थयात्रियों को अपनी ओर खींचने वाला विशाल चुंबक है, जहां हर साल हैरतअंगेज 3-4 करोड़ तीर्थयात्री आते हैं. इसीलिए चार दिनों तक राष्ट्रीय सुर्खियों में एक सवाल छाया रहा, जिसे सुनकर बाहरी लोग तो शायद चकरा जाते – क्या तिरुपति के लड्डू बनाने के लिए इस्तेमाल घी जानवर की चर्बी से दूषित और अपवित्र था?

अपने पूर्ववर्ती वाई.एस. जगन मोहन रेड्डी को निशाना बनाने की गरज से मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडू ने इस अटकल को हवा क्या दी, इसने इतना तूल पकड़ लिया कि सुप्रीम कोर्ट ‘भगवानों को राजनीति से दूर रखने’ की कड़ी चेतावनी देने को मजबूर हो गया. नेक जज्बात, पर क्या यही कहना होगा – कोई आसार नहीं?

आंध्र प्रदेश की राजनीति इस विवाद से स्वाभाविक ही सुलग उठी, पर यह इस तटीय राज्य तक सिमटा मुद्दा नहीं है. घी हिंदू धर्म में सबसे पवित्र ‘शुद्ध’ सात्विक खाद्य पदार्थों में से एक है, और इसमें जानवर की चर्बी की मिलावट होने की भनक भर ने दूर-दूर तक इतनी दुखती रगें छेड़ दीं कि अयोध्या के नए राम मंदिर और ओडिशा में सदियों पुराने पुरी के जगन्नाथ मंदिर के प्रसाद शुद्धता की जांच के लिए भेज दिए गए.

उत्तराखंड में पवित्र बद्रीनाथ और केदारनाथ मंदिरों ने भी दोषमुक्त प्रसाद के नए नियम ईजाद किए. लड्डू गहन राजनैतिक भावनाओं के बीच एक तरह से बिजली का जलता तार बन गए. एक स्तर पर इससे उस सरगर्म बहस को खुराक मिल रही है कि मंदिरों के प्रशासन में सरकार को जरा भी मौजूद रहना चाहिए या नहीं.

मसलन, कुल 36 अरब डॉलर (3.02 लाख करोड़ रुपए) की संपत्ति के साथ सबसे अमीर हिंदू मंदिर बोर्ड तिरुमला तिरुपति देवस्थानम (टीटीडी) कहने को तो ‘स्वतंत्र’ न्यास है, पर राज्य सरकार के अधीन है. लेकिन ‘जन’ स्तर पर इस विषय ने इसलिए आग पकड़ ली क्योंकि सामाजिक जमीन को खान-पान से जुड़ी ‘शुद्धता’ की ज्यादा व्यापक राजनीति से अत्यधिक गरमाए रखा गया है, जो उत्तर प्रदेश से शुरू होकर और हिमाचल प्रदेश और महाराष्ट्र पहुंचकर समूचे भारत को अपनी चपेट में लेती मालूम दे रही है.

तिरुपति में, जहां रोज 60,000 और खास मौकों पर 1,00,000 के बीच श्रद्धालु आते हैं, हर दिन 3,00,000 लड्डू बांटे जाते हैं. इसके लिए हैरतअंगेज 15 टन गाय के घी की जरूरत होती है. मौजूदा विवाद तब शुरू हुआ जब टीटीडी ने गुजरात स्थित राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड के हाथों संचालित प्रयोगशाला को नमूने जांच के लिए भेजे. घी की गुणवत्ता को लेकर तभी से धीरे-धीरे शक पैदा होने लगा था जब 2019-20 में सत्यापन के मानदंडों में हेरफेर करके उन्हें कम सख्त बनाने के बाद नए आपूर्तिकर्ता लाए गए.

कर्नाटक की शीर्ष डेयरी सहकारी संस्था के ब्रांड नंदिनी घी की आपूर्ति पहले तिरुपति को 400 रुपए प्रति किलो पर की जाती थी, पर फिर उसने कम बोली पर समझौता करने से इनकार कर दिया. सारा ध्यान अब तमिलनाडु में डिंडीगुल के नए आपूर्तिकर्ता पर आ गया, जिसने मात्र 320 रुपए दाम लिए. जुलाई में टीटीडी ने उसके घी के चार टैंकर नामंजूर करके फर्म को ब्लैकलिस्ट कर दिया. लैब रिपोर्ट में मिलावट का साफ इशारा किया गया, पर मिलाई गई चीजों के बारे में रिपोर्ट किसी नतीजे पर नहीं पहुंची. संभावना के तौर पर उसने तमाम किस्म के वनस्पति तेलों के साथ गाय और सूअर की चर्बी का भी जिक्र किया.

अंग्रेजी की एक कहावत में कहें तो चर्बी आग में थी, यानी तूफान के लिए दरवाजे खोल दिए गए थे. मुख्यमंत्री नायडू इस खबर को ले उड़े. उन्होंने प्रसाद अपवित्र करने का आरोप लगाया और इसके लिए जगन की हुकूमत के दौरान घी की खरीद के नियमों में किए गए फेरबदल को जिम्मेदार ठहराया. और तो और, नायडू ने इसे जगन के धर्मपरायण ईसाई होने से जोड़ दिया. जगन ने ”नायडू के पापों का प्रायश्चित करने के लिए” तिरुमला जाने का प्रण किया. लेकिन जब मुख्यमंत्री ने उन पर तंज कसते हुए कहा कि तिरुपति में प्रवेश करने से पहले उन्हें ईष्टदेव में और इस तरह हिंदू धर्म में अपनी आस्था की औपचारिक घोषणा करनी चाहिए, तो उन्होंने पैर पीछे खींच लिए.

इस बीच आंध्र की राजनीति के तीसरे कारक, अभिनेता और उपमुख्यमंत्री पवन कल्याण, जिनकी जन सेना पार्टी भाजपा के करीब है, एक अन्य वेंकटेश्वर मंदिर में प्रायश्चित के लिए निकल पड़े. कल्याण ने भी, जिन्हें आंध्र की राजनीति में भाजपा के रणनीतिक औजार के रूप में अपने आगे हिंदुत्व के भविष्य का अंदाजा हो गया मालूम देता है, मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण के खिलाफ भावनाओं को भड़काने में अपने हिस्से का योगदान दिया. उन्होंने ‘अपवित्र किए जाने’ को रोकने और ‘धार्मिक प्रथाओं’ की रक्षा के लिए राष्ट्रीय स्तर पर ‘सनातन धर्म रक्षणा बोर्ड’ बनाने का प्रस्ताव रखा.

हैदराबाद में इस सबको करीब से देख रहे सीनियर डिप्टी एडिटर अमननाथ के. मेनन आपके लिए राजनीति में धर्म की मिलावट के इस प्रसंग का संपूर्ण आद्योपांत दर्शन लेकर आए हैं. फिर एक और दिलचस्प मामले से घटनाक्रम पेचीदा और रहस्यमयी हो जाता है. यह महाराष्ट्र में तीर्थस्थलों की दुकानों को दिया जा रहा ‘ओम’ प्रमाणपत्र है, जिसका आशय यह बताना है कि विक्रेता मुसलमान नहीं है और इसलिए वस्तुएं ‘अपवित्र’ नहीं हुई हैं.

एसोसिएट एडिटर धवल एस. कुलकर्णी नासिक के त्र्यंबकेश्वर मंदिर से इसके बारे में बता रहे हैं. एसोसिएटर एडिटर आशीष मिश्र उस उत्तर प्रदेश के हालात का जायजा ले रहे हैं जो ‘खाद्य शुद्धता’ को लेकर पैदा इस सारी खलबली का मूल आरंभ बिंदु रहा था. जुलाई में कांवड़ यात्रा के दौरान दुकानदारों को अपने नाम प्रदर्शित करने के योगी आदित्यनाथ की सरकार की तरफ से दिए गए निर्देश को सुप्रीम कोर्ट की फटकार झेलनी पड़ी थी. लेकिन योगी सरकार ने राज्यस्तरीय अभियान शुरू करते हुए उसी तर्ज पर नए निर्देश जारी कर दिए हैं.

हमारे लोकतंत्र में हरेक को अपनी-अपनी समझ के अनुसार अपने धर्म को मानने और उसका पालन करने का अधिकार है. हमारी आध्यात्मिक विरासत की सच्ची परीक्षा अलबत्ता भय और घृणा से अपने को नष्ट कर लेने में नहीं बल्कि आस्था को भाईचारे और शांति की राह बनने देने में है.

सुप्रीम हस्तक्षेप

देखते ही देखते यह विवाद राष्ट्रीय सुर्खियों में छा गया. #तिरुपतिलड्डू सोशल मीडिया पर ट्रेंड करने लगा और हिंदुत्व से जुड़े दक्षिणपंथी संगठन एक बार फिर आस्था पर हमले का हौवा खड़ा करने लगे. सबसे अहम यह कि देश भर के मंदिरों में प्रतिक्रियाओं का सिलसिला शुरू हो गया. अयोध्या में बने नए राम मंदिर से लेकर वृंदावन के बांकेबिहारी मंदिर तक, पुरी के जगन्नाथ मंदिर से लेकर नासिक के त्र्यंबकेश्वर मंदिर तक मंदिरों के चढ़ावों को शुद्धता की जांच के लिए प्रयोगशालाओं में भेजा जाने लगा.

इस सारे घटनाक्रम में थोड़ा-सा विवेक, थोड़ी-सी समझदारी लाने का काम सुप्रीम कोर्ट के हवाले आ पहुंचा. याचिकाओं की बाढ़ लग गई. अपनी प्रतिक्रिया में शीर्ष अदालत ने 30 सितंबर को आंध्र प्रदेश के मुख्यमंत्री नायडु को आड़े हाथों लिया और उनसे साफ, दोटूक और जोरदार शब्दों में कहा कि “देवों को राजनीति से दूर” रखिए. उसने सबूत के बिना बयान देने के लिए उन्हें फटकार लगाई और पूछा कि जब उन्हीं की सरकार के आदेश पर विशेष जांच दल (एसआईटी) की पुलिस जांच अभी चल ही रही थी, उन्होंने पशु चर्बी के आरोप को सार्वजनिक क्यों किया.

न्यायमूर्ति बी.आर. गवई और के.वी. विश्वनाथन की पीठ ने कहा कि “जब जांच चल रही है, उच्च संवैधानिक पदाधिकारियों (नायडु) का जनता के बीच जाना और ऐसा बयान देना जिससे दुनिया भर में करोड़ों लोगों की भावनाएं आहत हो सकती हैं, उचित नहीं था.”

अदालत ने यह धारणा बनाने को लेकर भी चिंता जताई कि लड्डू बनाने के लिए मिलावटी घी का इस्तेमाल किया जा रहा था, जबकि जुलाई में हुई जांच के नतीजों—जो नायडु की टिप्पणियों का आधार थे—से साफ था कि वे खारिज की गई घी की खेप का था.

जून 2024 में चुनावी जीत के बाद तिरुमला में दर्शन के लिए पहुंचे मुख्यमंत्री चंद्रबाबू नायडु

शुद्धता का नया आंदोलन

जानवर की चर्बी देश में ऐतिहासिक रूप से संवेदनशील मुद्दा रहा है – कारतूसों को सूअर की चर्बी और गाय की चर्बी से चिकना किए जाने की अफवाह मात्र 1857 में भारतीय सैनिकों के विद्रोह को भड़काने के लिए काफी थी. एहतियात बरतने की याद दिलाते हुए राजनैतिक टिप्पणीकार के. नागेश्वर कहते हैं, “राजनैतिक पहलू अहम हैं, पर हमें इसमें काम कर रही व्यवस्थागत खामियों पर ध्यान देना होगा. यह मुद्दा राजनीति से भी आगे जाता है और पूरे समाज को प्रभावित करता है. यह महज उस तरह की मिलावट का मामला नहीं है जैसी, फर्ज कीजिए, होटल इंडस्ट्री में होती है… इससे धार्मिक संवेदनशीलता जुड़ी है और अगर लोग इस पर विश्वास कर लें तो नतीजे गंभीर अशांति की तरफ ले जा सकते हैं.”

नायडु का तिरुपति के लड्डुओं में ‘पशु चर्बी’ की मिलावट का आरोप लगाना उस ज्यादा बड़े रुझान का हिस्सा है जिसमें शुद्धता पक्की करने के नाम पर चीजों और जगहों पर धर्म की मुहर लगाई जा रही है. नासिक के नजदीक त्र्यंबकेश्वर मंदिर में, जहां देश के 12 प्रतिष्ठित और पवित्र शिव ज्योतिर्लिंगों में से एक विराजमान हैं, एक हिंदू गुट ने धार्मिक सामग्री बेचने वालों को उनकी शुद्धता प्रमाणित करने के लिए ‘ओम प्रमाणपत्र’ जारी करना शुरू कर दिया है.

इसमें उनका यह यकीन तो निहित ही है कि ऐसी पूजा सामग्री के मुसलमान विक्रेता जान-बूझकर उन्हें अपवित्र करते हैं. हालांकि सेक्यूलर ताकतों ने ऐतराज किया है, पर ओम प्रतिष्ठान का कार्यक्रम तेजी से चल रहा है और देश भर में ले जाए जाने की तैयारी कर रहा है.

इस बीच उत्तर प्रदेश में योगी आदित्यनाथ की सरकार ने जुलाई में कांवड़ यात्रा के दौरान खाने-पीने का सामान बेचने वाले दुकानदारों को अपना नाम प्रदर्शित करने का निर्देश देकर विवाद पैदा कर दिया. उसे सुप्रीम कोर्ट की झिड़की खानी पड़ी. मगर यह झिड़की योगी की सरकार को इसी निर्देश के लिए राज्यस्तरीय अभियान शुरू करने से न रोक सकी. 

शुद्धता की राजनीति कांग्रेस शासित राज्यों में भी आ धमकी. सितंबर के आखिरी हफ्ते में हिमाचल प्रदेश के मंत्री विक्रमादित्य सिंह ने सोशल मीडिया पर ‘यूपी जैसी’ घोषणा पोस्ट करके अपने कांग्रेसी सहयोगियों को हतप्रभ कर दिया. इस घोषणा में विक्रेताओं और रेस्तरां मालिकों के लिए अपने प्रतिष्ठान पर अपने नाम प्रदर्शित करना अनिवार्य कर दिया गया था. राज्य के नेतृत्व ने विक्रमादित्य की खिंचाई की और यहां तक कि उन्हें पार्टी नेतृत्व के सामने स्थिति स्पष्ट करने के लिए नई दिल्ली आना पड़ा.

प्रसाद की राजनीति

जहां तक तिरुपति के लड्डुओं की बात है, आरएसएस और उससे जुड़े बजरंग दल और विहिप सरीखे संगठन फिलहाल उसे राष्ट्रीय मुद्दा बनाने के मूड में नहीं दिखते. शायद यह रणनीतिक इंतजार है, क्योंकि वे नायडु सरकार पर इस मामले की जांच केंद्रीय जांच ब्यूरो (सीबीआई) को सौंपने के लिए दबाव डाल रहे हैं. उन्होंने देश भर के कई जिलों में विरोध प्रदर्शन भी किए.

इस बीच अपने खिलाफ लगाए गए आरोपों का खंडन करते हुए जगन ने विवाद का राजनैतिक फायदा उठाने की कोशिश में ऐलान किया कि वे “नायडू के पापों का प्रायश्चित करने के लिए” 28 सितंबर को तिरुमला का दौरा करेंगे. मगर जब सोशल मीडिया पर भावनात्मक आवेश से भरे दक्षिणपंथी तत्वों के अभियान ने मांग की कि पूर्व मुख्यमंत्री दर्शन करना चाहते हैं तो “भगवान वेंकटेश्वर में अपनी आस्था” जताने के लिए घोषणापत्र पर दस्तखत करें, तो पूर्व मुख्यमंत्री ने, जो ईसाई हैं, दौरा रद्द कर दिया. (1990 से मंदिर में आने वाले गैर-हिंदुओं के लिए ‘भगवान वेंकटेश्वर में आस्था की घोषणा’ करना अनिवार्य कर दिया गया.)

मई में अपने चुनाव अभियान के दौरान भी टीडीपी जगन की आस्था का मुद्दा उछालने में लगी थी. वाईएसआरसीपी के शासनकाल में ईसाइयों को दूसरों से ज्यादा तवज्जो मिलने का दावा करके उसने हिंदू भावनाओं को भड़काने की कोशिश की. नायडु ने पहले भी जबरन धर्मांतरण के आरोप लगाए, वैसे ही जैसे राज्य भाजपा ने लगाए.

2021 में 400 साल पुराने रामतीर्थम मंदिर में, जहां उपद्रवियों ने राम की मूर्ति को अपवित्र कर दिया था, दर्शन के दौरान नायडु ने आरोप लगाया कि 2019 में वाईएसआरसीपी के सत्ता संभालने के बाद यह “किसी हिंदू मंदिर पर 127वां हमला” था. बाद में पार्टी की बैठक में नायडु ने ऐलान किया, “श्री वेंकटेश्वर स्वामी मेरे इष्ट भगवान हैं… अगर आप चुनाव जीते तो यरूशलेम जाएंगे, लेकिन जब मैं जीतूंगा तो वेंकटेश्वर स्वामी (तिरुमला) जाऊंगा. आप बाइबल अपनी बगल में रख सकते हैं, उसमें कुछ गलत नहीं है, लेकिन अगर हिंदू मंदिरों पर हमले होंगे, तो हम खामोश नहीं बैठेंगे.”

इस बीच मौजूदा उपमुख्यमंत्री, अभिनेता तथा जेएसपी के प्रमुख पवन ‘पावर स्टार’ कल्याण भी विवाद में कूद पड़े. उन्होंने घोषणा की कि वे गुंटूर जिले के नंबुरु में श्री दशावतार वेंकटेश्वर स्वामी मंदिर में किए गए पिछली सरकार के पापों के लिए प्रायश्चित दीक्षा करेंगे. यह दीक्षा एक अक्तूबर की रात भगवान वेंकटेश्वर से प्रार्थना करने के लिए उनके साधारण श्रद्धालुओं के साथ तिरुमला की सात पहाड़ियां या सप्तगिरि नंगे पैर चढ़ने के साथ संपन्न हुई.

कल्याण ने सनातन धर्म के संरक्षक की भूमिका निभाने का जिम्मा भी संभाल लिया. वे इस हद तक चले गए कि उन्होंने उन सार्वजनिक हस्तियों पर भी निशाना साधा जिन्होंने लड्डू के प्रकरण पर कोई सरसरी बात भी कही थी.

तिरुमला मंदिर में पूर्व मुख्यमंत्री जगन मोहन रेड्डी (फाइल फोटो)

आग में डाला घी

लड्डू विवाद भले ही आंध्र प्रदेश में राजनैतिक प्रतिद्वंद्विता की उपज हो लेकिन इस चिंगारी को भड़काने का काम राष्ट्रीय डेयरी विकास बोर्ड (एनडीडीबी) की एक रिपोर्ट ने किया, जिसने कुछ स्पष्टीकरण के साथ घी में मिलावट की संभावना जताई. साथ ही, कहा कि हो सकता है इसमें पशु वसा का भी इस्तेमाल किया गया हो. रिपोर्ट सीएलएलएफ (पशुधन तथा खाद्य विश्लेषण और अध्ययन केंद्र) ने तैयार की थी, जो एनडीडीबी की पूर्ण स्वामित्व वाली सहायक कंपनी है, और केंद्र सरकार के मत्स्य पालन, पशुपालन तथा डेयरी मंत्रालय के अधीन काम करती है.

सीएएलएफ अधिकारियों ने रिपोर्ट के बारे में विस्तार से कोई जानकारी देने से इनकार कर दिया, लेकिन अंदरूनी सूत्रों ने दावा किया कि उसमें साफ-साफ यह नहीं कहा गया कि मिलावटी घी में मछली का तेल, चर्बी या गाय की चर्बी है. इंडिया टुडे ने भी रिपोर्ट की एक प्रति देखी है, जिसमें बताया गया है कि “हर स्थिति में एस-वैल्यू (दूध या इस मामले में घी में किसी भी तरह की चर्बी की मिलावट का पता लगाने के लिए इस्तेमाल होने वाला एक पैरामीटर) निर्धारित सीमा से बाहर है… (इसलिए) नमूने में चर्बी मिलाए जाने की संभावना है.”

रिपोर्ट में ऐसे कई तत्वों की सूची दी गई है, जिन्हें मिलावट में इस्तेमाल किए जाने की संभावना हो सकती है. किसी भी तरह की चर्बी या ‘फॉरेन फैट’ की इस सूची में रेपसीड, अलसी, मक्का, गेहूं के बीज, सोयाबीन, सूरजमुखी, जैतून, कपास के बीज, मछली का तेल, नारियल और ताड़ की गिरी से निकलने वाली वसा, पाम ऑयल और अंत में गाय की वसा या चर्बी को शामिल किया गया है. सीएएलएफ के सूत्र ने कहा, “रिपोर्ट इसकी पुष्टि करती है कि घी का नमूना मिलावटी था…लेकिन इसमें इन तत्वों की मौजूदगी के बारे में स्पष्ट तौर पर कुछ नहीं कहा गया है.”

शायद यही वजह है कि नायडु के दावे के दो दिन बाद ही मंदिर का प्रबंधन संभालने वाले टीटीडी (तिरुमाला तिरुपति देवस्थानम) के कार्यकारी अधिकारी जे. श्यामला राव ने घी में पशु चर्बी की मिलावट की बात को नकार दिया. टीडीपी सरकार की शुरुआती नियुक्तियों में से एक वरिष्ठ आईएएस अधिकारी राव ने इस बात पर संदेह जरूर जताया कि कि टीटीडी 320-411 रुपए प्रति किलो की कीमत पर घी खरीद रहा है, जबकि बाजार मूल्य करीब 700 रुपए था. इसलिए इसकी गुणवत्ता संदिग्ध है.

हालांकि, मिलावट के मामले पहले भी सामने आ चुके हैं, वित्त वर्ष 2023 में घी के करीब 40 ट्रक कंटेनर निर्धारित मानकों पर खरे न उतरने के कारण खारिज कर दिए गए थे. लेकिन नायडू का पशु चर्बी की मिलावट का दावा अप्रत्याशित था. उसने मंदिर के अधिकारियों को हैरानी में डाल दिया.

एक तथ्य यह भी है कि टीटीडी अधिकारियों ने इसी जुलाई में तमिलनाडु के डिंडीगुल स्थित एआर डेयरी फूड्स प्राइवेट लिमिटेड के घी के चार टैंकर खारिज कर दिए थे. सबसे बड़ी बात यह है कि एआर डेयरी को अब जारी किए गए कारण बताओ नोटिस में केवल वनस्पती तेलों की मिलावट का आरोप लगाया है, जिसमें प्लांट स्टेरोल, बीटा-सिटोस्टेरॉल होने की बात कही गई है, और किसी भी पशु वसा का कोई जिक्र नहीं किया गया है.

निविदा में फेरबदल

टीटीडी सूत्रों का कहना है कि मंदिर प्रशासन गुणवत्ता पर खास ध्यान देता है, और लड्डू बनाने में इस्तेमाल होने वाले घी और अन्य सामग्रियां ई-टेंडर के जरिए खरीदी जाती हैं. अधिकारियों का दावा है कि उन्होंने परंपरा से कोई समझौता नहीं किया है. आज भी तिरुपति लड्डू मंदिर की रसोई में ही बनाए जाते हैं, जिसे ‘पोतु’ कहते हैं. यह मंदिर के भीतरी हिस्से में गर्भगृह के बाईं ओर स्थित है. सामग्री कन्वेयर बेल्ट के जरिए रसोई तक पहुंचाई जाती है.

लड्डू तैयार करने में ‘दित्तम’ यानी इस बात का पूरा ख्याल रखा जाता है कि किस सामग्री का कितना इस्तेमाल किया जाना है. अगम शास्त्र (मंदिर की इमारतों और अनुष्ठानों के लिए निर्धारित पूजा की नियमावली) में उल्लिखित सामग्री की सूची को दित्तम कहते हैं. मौजूदा समय में, हर दिन लगभग 3,00,000 लड्डू तैयार किए जाते हैं, और इस काम में लगभग 600 लोग लगे हैं.

कुछ अन्य लोगों का कहना है कि इस पूरे विवाद की जड़ें दिसंबर 2019 और फरवरी 2020 में टीटीडी बोर्ड की तरफ से विक्रेता सत्यापन मानदंड निर्धारित करने वाली निविदा प्रक्रिया में बदलाव से जुड़ी हैं. उस समय राज्यसभा सदस्य और जगन के मामा वाइ.वी. सुब्बा रेड्डी इसके अध्यक्ष थे. इन बदलावों का उद्देश्य जाहिर तौर पर निविदा प्रक्रिया में अधिक बोलीदाताओं को शामिल करना था.

नई व्यवस्था में घी की आपूर्ति की इच्छुक डेयरियों की परिचालन योग्यता (प्रति दिन 4,00,000 लीटर गाय के दूध का संग्रहण) और कंपनी टर्नओवर (पूर्व में तीन वर्ष के बजाए एक वर्ष के लिए ऑडिटेड बैलेंसशीट के साथ 250 करोड़ रुपए से घटाकर 150 करोड़ रुपए करना) संबंधी शर्तों में कुछ ढिलाई दी गई. ये मानदंड आंध्र प्रदेश के बाहर की डेयरियों के लिए थे, राज्य की डेयरियों के लिए मानदंडों में और भी छूट दी गई थी.

टीटीडी ने रिवर्स ऑक्शन टेंडरिंग प्रक्रिया भी शुरू की, जिसमें अधिक बोली लगाने वाले भी सबसे कम बोली की कीमत पर सामग्री की आपूर्ति कर सकते थे. आलोचकों की मानें तो सारी गड़बड़ी यहीं से शुरू हुई, क्योंकि अपेक्षाकृत कम कीमत पर आपूर्ति का मतलब था गुणवत्ता और समय पर आपूर्ति जैसी बातों पर पर्याप्त ध्यान न दिया जाना. टीटीडी ने अपनी सफाई में इस बात का हवाला दिया कि उसे प्रति दिन कम से कम 15,000 किलोग्राम घी की जरूरत पड़ती है.

केवल 1,200 किलोमीटर के दायरे में आने वाली डेयरियों के ही आपूर्ति के पात्र होने के पुराने नियम को भी नजरअंदाज कर दिया गया था. जगन ने 2019 में मुख्यमंत्री बनने पर सुब्बा रेड्डी को टीटीडी में नियुक्त किया और 2023 तक वे इस पद पर रहे. वे उन लोगों में शामिल हैं जिन्होंने एक सेवानिवृत्त न्यायाधीश से पूरे मामले की स्वतंत्र जांच कराने के लिए सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर की है. पूर्व टीटीडी अध्यक्ष सुब्बा रेड्डी कहते हैं, “मैं भगवान के सामने शपथ लेने को तैयार हूं, और नायडू को अपने आरोप सही लगते हैं तो मैं उन्हें भी ऐसा करने की चुनौती देता हूं.”

मंदिर पर नियंत्रण की लड़ाई

दिलचस्प यह है कि जिस समय तिरुपति लड्डू को लेकर विवाद उठा, तब (23 सितंबर को) विहिप की शहर में एक क्षेत्रीय बैठक हो रही थी, जिसमें तेलुगु भाषी राज्यों आंध्र प्रदेश और तेलंगाना के साधु-संत मौजूद थे. बैठक में तय किया गया कि सड़कों पर विरोध-प्रदर्शन से कुछ नहीं होने वाला है. इसलिए कानून में बदलाव के ठोस प्रयास किए जाएं, ताकि मंदिर सरकारी नियंत्रण से मुक्त हों.

जाहिर तौर पर, संघ का एक बड़ा वर्ग यह मानता है कि राज्य सरकारें और उनके नौकरशाह मंदिरों में एकत्र धन का दुरुपयोग करते हैं. विहिप के राष्ट्रीय संयुक्त महासचिव सुरेंद्र जैन धर्मस्थलों के “सरकारीकरण” की जगह “मंदिरों के समाजीकरण” की वकालत करते हैं. उनका मानना है कि मंदिरों पर सरकारी नियंत्रण “मुस्लिम आक्रांताओं” और “औपनिवेशिक शासन” की मानसिकता का प्रतीक है. 2019 में मोदी 2.0 की शुरुआत के समय से ही संघ से जुड़े संगठन मंदिर बोर्डों पर भाजपा के नियंत्रण की जोरदार वकालत कर रहे हैं.

2021 में विहिप और आरएसएस के दबाव में आकर उत्तराखंड की पुष्कर सिंह धामी सरकार को चार धाम देवस्थानम बोर्ड भंग करने पर मजबूर होना पड़ा, जिसे टीटीडी बोर्ड की तर्ज पर स्थापित किया गया था. संघ अब जिन बड़े मंदिरों पर ध्यान केंद्रित कर रहा है, उनमें जम्मू-कश्मीर की त्रिकुटा पहाड़ियों में स्थित वैष्णो देवी, गुजरात का सोमनाथ मंदिर, वाराणसी में काशी विश्वनाथ और पुरी में जगन्नाथ मंदिर शामिल हैं. इनमें से लगभग सभी भाजपा शासित राज्यों में हैं.

तिरुवनंतपुरम स्थित श्री पद्मनाभस्वामी मंदिर के घटनाक्रम में भी गहरी दिलचस्पी ली जा रही है, जिसमें मंदिर मामलों के प्रबंधन को लेकर सुप्रीम कोर्ट का फैसला तत्कालीन त्रावणकोर शाही परिवार के पक्ष में रहा था.

वहीं, एक अन्य घटनाक्रम में दिग्गज भाजपा नेता सुब्रह्मण्यम स्वामी ने तमिलनाडु के हिंदू धार्मिक और धर्मार्थ बंदोबस्ती अधिनियम, 1959 की संवैधानिक वैधता को चुनौती देते हुए सुप्रीम कोर्ट का रुख किया है. राज्य के 4,000 से अधिक मंदिर इस अधिनियम के तहत नियंत्रित होते हैं. आंध्र प्रदेश के उपमुख्यमंत्री कल्याण ने राष्ट्रीय सनातन धर्म रक्षण बोर्ड की स्थापना का सुझाव देकर विवाद को और हवा दे दी है. उन्होंने मंदिर से जुड़े मुद्दे सुलझाने और सनातन धर्म के संरक्षण के लिए राष्ट्रव्यापी बहस शुरू करने की अपील की है.

देश के कई बड़े मंदिरों में प्रसाद की शुद्धता को लेकर चिंता जाहिर की जा रही है, ऐसे में अदालतों में बड़ी संख्या में जनहित याचिकाओं दायर होने की संभावना है. सुप्रीम कोर्ट तिरुपति लड्डू मामले से इतना व्यथित है कि उसने पूछा है कि क्या उसे केंद्रीय एजेंसियों पर छोड़ने के बजाए स्वतंत्र जांच का आदेश देना चाहिए. तिरुपति लड्डुओं को लेकर यह सारा विवाद एक चिंताजनक प्रवृत्ति को दर्शाता है कि विभाजनकारी राजनीति के लिए नेता प्रसाद को भी नहीं बख्शने वाले हैं. जाहिर है, यह कोई शुभ संकेत तो नहीं है. 

Exit mobile version