डॉ. विकास मानव
कहे जो करवाँ चोथ कहानी।
दास गधेडी निच्ये जानी।।
करे एकादसी संजम सोई।
करवा चौथ गधेरी होई।।
आठे,साते करे कंदूरी।
सो तो बने नीच घर सूरी।।
आन धर्म जो बन बसे, कोए करो नर नारी।
गरीब दास जनदाके हैं,वो जासी मतवारी।।
☝अर्थात परमात्मा कहते हैं :
आन (इज्जत/चरित्र) पूजा को छोड़कर कोई अन्य पूजा करता है, तो वो ठीक नहीं है। जो अन्य पूजाएँ करता है वो नर्क में जायेगा : चाहे पुरुष हो या स्त्री।
जो स्त्रियां करवाँ व्रत रखती हैं और जो उन्हें कहानी सुनाती हैं ‘यम ‘ उनकी चोट्टी पकड़ कर ले जायेगा कालनर्क में; गधे की योनि में डाल देगा।
करवा~ व्रत : वेद क्या कहता है ?
धर्म की जिज्ञासा वाले के लिए वेद ही परम प्रमाण है। इस विषय में वेद का आदेश है :
व्रतं कृणुत !
( यजुर्वेद : ४-११ )
व्रत करो , व्रत रखो , व्रत का पालन करो।
परन्तु कैसे व्रत?
वेद में व्रत का अर्थ है :
अग्ने व्रतपते व्रतं चरिष्यामि तच्छ्केयं तन्मे राध्यतां! इदमहमनृतात् सत्यमुपैमि !!
( यजुर्वेद : १–५ )
हे व्रतों के पालक प्रभो ! मैं व्रत धारण करूँ, मैं उसे पूरा कर सकूँ : आप मुझे ऐसी शक्ति प्रदान करें। मेरा व्रत है कि, “मैं असत्य को छोड़कर सत्य को ग्रहण करता रहूँ।”
स्पष्ट है कि वेद के अनुसार बुराई को छोड़कर भलाई को ग्रहण करने का नाम व्रत है। शरीर को सुखाने का , रात्रि के १२ बजे तक भूखे मरने का नाम व्रत नहीं है।
चारों वेदों में एक भी ऐसा मन्त्र नहीं मिलेगा जिसमे ऐसा विधान हो कि एकादशी , पूर्णमासी या करवाचौथ आदि का व्रत रखना चाहिए; ऐसा करने से पति की आयु बढ़ जायेगी।
हाँ , ऐसे व्रत करने से आयु घटेगी — ऐसा मनुस्मृति तक में लिखा है :
“पत्यौ जीवति तु या स्त्री उपवासव्रतं चरेत् !
आयुष्यं बाधते भर्तुर्नरकं चैव गच्छति !!”
जो स्त्री पति के जीवित रहते, भूखा रहने वाला व्रत करती है वह पति की आयु को कम करती है और मरकर नरक में जाती है।
अब देखें आचार्य चाणक्य क्या कहते हैं :
पत्युराज्ञां विना नारी उपोष्य व्रतचारिणी !
आयुष्यं हरते भर्तुः सा नारी नरकं व्रजेत् !!
(चाणक्य नीति – १७–९ )
जो स्त्री भूखे रहने वाला व्रत रखती है , वह पति की आयु घटाती है और स्वयं महान कष्ट भोगती है।
अब कबीर की भी सुन लें :
राम नाम को छाडिके राखै करवा चौथि !
सो तो हवैगी सूकरी तिन्है राम सो कौथि !!
जो इश्वर के नाम को छोड़कर करवा चौथ का व्रत रखती है , वह मरकर सूकरी (सुअर) बनती है।
ज़रा विचार करें :
एक तो व्रत करना और उसके परिणाम स्वरुप फिर दंड भोगना , यह कहाँ की बुद्धिमत्ता है ?
इसलिए इस तर्कशून्य , अशास्त्रीय , वेदविरुद्ध करवाचौथ की प्रथा का परित्याग कर, सच्चे व्रतों को अपने जीवन में धारण करते हुए अपने जीवन को सफल बनाने का उद्योग करें।
श्रद्धा नहीं, केवल दासता और अंधविश्वास का हथियार करवा’व्रत :
क्या महिला के उपवास रखने से पुरुष की उम्र बढ़ सकती है ?क्या धर्म का कोई ठेकेदार इस बात की गारंटी लेने को तैयार होगा कि करवाचौथ जैसा व्रत करके पति की लंबी उम्र हो जाएगी?
मुस्लिम नहीं मनाते। ईसाई नहीं मनाते। दूसरे देश नहीं मनाते। और तो और भारत में ही दक्षिण, या पूर्व में नहीं मनाते। इस बात का कोई आधार नहीं है कि इन तमाम जगहों पर पति की उम्र कम होती हो और मनाने वालों के पति की ज्यादा।
क्या उत्तर भारत के महिलाओं के पति की उम्र दक्षिण भारत के महिलाओं के पति से कम हैं ?
क्या इस व्रत को रखने से उनके पतियों की उम्र अधिक हो जाएगी?
क्या यह व्रत उनकी परपरागत मजबूरी हैं या यह एक
दिन का दिखावा हैं?
इसे अंधविश्वास कहें या आस्था की पराकाष्ठा?
सच यह है कि करवाचौथ जैसा व्रत महिलाओं की एक मजबूरी के साथ उनको अंधविश्वास के घेरे में रखे हुए हैं। कुछ भैंसबुद्धि महिलाएँ इसे आपसी प्यार का ठप्पा भी कहेँगी, परन्तु अधिकतर महिलाओं ने इस व्रत को मजबूरी ही बताया है।
_एक कांफ्रेस में हमने खुद कुछ महिलाओं से इस व्रत के बारे में पूछा। उनका मानना हैं कि यह पारंपरिक और रूढ़िवादी व्रत है जिसे घर के बड़ो के कहने पर रखना पड़ता हैं क्योंकि कल को यदि उनके पति के साथ संयोग से कुछ हो गया तो उसे हर बात का शिकार बनाया जायेगा। इसी डर से वह इस व्रत को रखती हैं।_
क्या पत्नी के भूखे-प्यासे रहने से पति दीर्घायु स्वस्थ हो सकता है? इस व्रत की कहानी अंधविश्वासपूर्ण भय उत्पन्न करती है कि करवाचौथ का व्रत न रखने अथवा अज्ञानवश व्रत के खंडित होने से पति के प्राण खतरे में पड़ सकते है। यह महिलाओं को अंधविश्वास और आत्मपीड़न की बेड़ियों में जकड़ने को प्रेरित करता है।
सारे व्रत-उपवास पत्नी, बहन और माँ के लिए ही क्यों हैं? पति, भाई और पिता के लिए क्यों नहीं? क्योंकि महिलाओं की जिंदगी की कोई कीमत तो है नहीं धर्म की नज़र में। पत्नी मर जाए तो पुरुष दूसरी शादी कर लेगा, क्योंकि सारी संपत्ति पर तो व्यावहारिक अधिकार उसी को प्राप्त है। बहन, बेटी मर गयी तो दहेज बच जाएगा। बेटी को तो कुल को तारना नहीं है, फिर उसकी चिंता कौन करे?
अगर महिलाओं को आपने सदियों से घरों में क़ैद करके रख के आपने उनकी चिंतन शक्ति को कुंद कर दिया हैं तो क्या अब आपका यह दायित्व नहीं बनता कि, आप पहल करके उन्हें इस मानसिक कुन्दता से आज़ाद करायें?
पुरुष प्रधान समाज केवल नारी से ही सब कुछ उम्मीद करता हैं परन्तु नारी का सम्मान करना कब सोचेगा? मैंने अपनी आँखो से अनेक महिलाओ को करवा चौथ के दिन भी विधवा होते देखा है जबकि वह दिन भर करवा चौथ का उपवास भी किये थी।