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*पुरुष प्रधान समाज में स्त्री : कुछ नहीं बदला* 

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         सुधा सिंह

स्त्री पुरुष प्रधान समाज में हमेशा अकेली थी अकेले ही लड़ी।। उसके साथ अपने कभी नहीं खड़े हुए उसका अपना Gender खडा नहीं हुआ।।। सत्ता और राजा का डर हमेशा इस व्यवस्था पर हावी रहा।

       आखिर जब गर्भवती सीता को अयोध्या से निकाला गया तब उसी महल में उसकी तीन बहने और थी जो बाकायदा राज बहुएं  थी।। उन्होंने कोई आवाज नही उठाई कि हमारे बहन के साथ ये अत्याचार ना हो।। पौराणिक ग्रंथों में जो विवरण मिलता है उसमें ऐसा तो कहीं नहीं है।। हां इस समाज को मंदोदरी का एहसान मंद जरूर होना चाहिए।

 जब रावण सीता को लंका ले गया तो मंदोदरी ने हर क्षण हर पल उस बाहुबली का विरोध किया।। त्रिजटा जो विभीषण की बेटी थी उसने पूरे अपहरण काल में सीता को संबल दिया।

      पर सीता के राजघरानों ने उनके परिवारों ने सीता का कितना साथ दिया आप खुद सोचो।

     जब द्रोपदी का चीर हरण हो रहा था।तो उस राजभवन में तमाम महिलाएं थी अगर गांधारी पट्टी खोल कर खड़ी हो जाती कुंती राजभवन में खड़ी हो जाती।

      अपने नालायक पुत्रों को ललकारती कि किस सत्ता के लिए अपने व्यसन के लिए तुमने  स्त्री का यह अपमान क्यों किया तो दुर्योधन और दुशासन की हिम्मत थी कि वह चीरहरण जैसा घिनौना कार्य कर पाते। 

राज सत्ता के खिलाफ उनकी कोई आवाज नहीं सुनी गई। नालायक पुत्रों के मोह मे विवश महारानियां इस घटना के साक्षी हैं।

    जब गौतम ऋषि ने अपनी पत्नी अहिल्या का परित्याग किया तो उसमें अहिल्या की क्या गलती थी कितने राजा थे जो इनके खिलाफ खड़े हुए कितने लोगों ने गौतम ऋषि को गलत ठहराया पाप की भागी केवल अहिल्या बनी।

    कमोबेश वही व्यवस्था वही विवसता आज भी अनवरत  जारी है। 

       महिला राष्ट्रपति बन जाए या प्रधानमंत्री बन जाए लेकिन पुरुष प्रधान की सोच महिलाओं के बारे में नहीं बदलेगी।

       न तो महिला जनप्रतिनिधियों की सोच बदली है। आज बेशर्मी से भरे टीवी डिबेट आप देखिए। अपने पार्टियों के दुर्योधनो और दुशासनो को बचाने के लिए उन्हीं के दलों की जन प्रतिनिधि महिला नेता  उनका पक्ष रखती है।

      इंद्र के खिलाफ बोलने का दुस्साहस किसी का नहीं उसके निगाह में अहिल्या ही दोषी है। बेबस सीता के साथ उसके अपने ही नहीं खड़े है। क्या करिएगा महिलाओं का जनप्रतिनिधित्व बढ़ा के जब यही अतीत की बेबसी इनका पीछा कर रही है।

       गांधारियां TV  डिबेटों में बैठकर दुर्योधन दुशासन का पक्ष रख रही है। कुछ सीखिए मंदोदरी से जो दशानन जैसे बाहुबली से सीता को लौटाने की जिद  करती थी। सीखिए उस त्रिजटा से जो रावण की आदेशों की अवहेलना करके सीता की मदद किया करती था। कुल बड़ा नही होता.सोंच बड़ी होनी चाहिए।

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