विजय दलाल
*कोई शक नहीं बचा है कि लोकतंत्र को वोटों के माध्यम से चुराया ही नहीं जा रहा है बल्कि सरेआम डकैती डाली जा रही है।*
*हर तरह के झूठे आंकड़े राजनीति जो व्यापार के माध्यम से बाजार में तब्दील की जा चुकी है विज्ञापनों की तरह फैंके जा रहे हैं।*
*जनता भी मानने को मजबूर है कि इस वाशिंग मशीन से सब कुछ इतना साफ सुथरा धुल रहा है कि बीजेपी के कपड़े कांग्रेस के कपड़ों से बहुत उजले हैं।*
*सारे झूठ – फरेब और साजिशों पर पहले न्यायपालिका पवित्र कार्यों की मोहर लगाए फिर प्रिंट और इलेक्ट्रोनिक मीडिया चौबीस घंटे उसे ही प्रचारित करे।*
*उसके साथ धर्म और ईश्वर के नाम पर नगाड़ों का शोर इतना कर दो विज्ञान की ओर आंख मिचले और तर्क करना भूल कर प्रश्न करना भूल जाएं और अतीत और आस्था में ही लगा रहे।*
*पाखंडियों को साक्षात ईश्वर मान लें।*
*तभी अपने कुकर्मों को छुपाने के लिए पहले अयोध्या का इस्तेमाल किया और अब इन दिनों कुंभ!*
*कितने भी पाप करो और बस गंगा में नहालो और फिर दिखाओ जनता आपके पीछे है।*
*आजादी के बाद किसी ने यह सपने में भी नहीं सोचा था कि देश के लोकतंत्र और संविधान की रक्षा की जिम्मेदारी जिस न्यायपालिका को दी है वह भी उस पर जब डकैती डलेगी तब डकैतों का साथ देगा!*
*वर्तमान में भी सुप्रीम कोर्ट वोटों की डकैती के सवाल पर अपने पूर्ववर्ती न्यायाधीशों की राह पर?*