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अब सुखों आयो रे, दुख भरे दिन गए?

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शशिकांत गुप्ते

अच्छे दिनों की ओर बढ़ते कदमों की रफ्तार इतनी तेज हो गई है।
थोड़े दिनों में हम डेढ से दो डॉलर में एक लीटर पेट्रोल खरीदेंगे।
अब हम रुपयों की बात नहीं करेंगे।
दो डॉलर में एक किलो या लीटर खाद्यतेल खरीद ही रहें हैं।
जिनके बच्चें विदेशों में पढ़ रहें हैं।
वे लोग जब अपने बच्चों के लिए अपने देश से रुपये भेजतें हैं तब गर्व का अनुभव करतें हैं।
अमेरिका में पढ़ने वाले बच्चों को रुपये भेजतें समय जब रूपयों को डॉलर में परिवर्तित करना पड़ता है,तब वे अपनी नानी नाना दादी दादी और पूर्वजों को याद करते होंगे। मन ही मन बड़बड़ाते होंगें देखा, सन 2014 के पूर्व एक डॉलर के लिए सिर्फ साठ रुपये लगते थे, आज डॉलर कितना मजबूत हो गया है। बाप दादाओं ने कभी देखे होंगे इतने अच्छे दिन?
इतने अच्छे दिन लाने का श्रेय भी एक फ़क़ीर को ही है।
फ़कीर को कभी भी भौतिक सुखों की चाहत नहीं होती है।
इसीलिए वह सारी पुश्तेनी दौलत बेंच देता है।
फ़कीर के मुरीद खुश है। पहले वे इलाहाबाद जातें थे अब प्रयागराज में जाकर त्रिवेणी में स्नान कर पवित्र होतें हैं।
देश में सर्वत्र विशालकाय मंदिर निर्मित हो रहें हैं। मंदिर परिसर को भव्यस्वरूप प्रदान किया जा रहा है। मंदिर परिसर में घूमते हुए मनमोहक दृश्य देखकर लोगों में भगवान के प्रति श्रद्धा जागृत हो या ना हो,लेकिन दर्शनार्थी, महंगाई,बेरोजगारी,भुखमरी
गिरती आर्थिक स्थिति आदि मूलभूत समस्याओं को भुल जाएंगे। भगवान पर आस्था बढ़ने से लोगों में सकारात्मक सोच पैदा होता है। सकारात्मक सोच बनने से हम अपने रुपये को कभी भी गिरता हुआ,नहीं कहेंगे, हम उदारमना से डॉलर को मजबूत कहेंगे।
हमारी क्रिकेट टीम कभी भी हारती नहीं है,कोई विदेशी टीम जीत जाती है। इसे कहतें है सकारात्मक सोच?
इसीलिए फ़कीर के सम्मान में मुरीद यही गाएंगे।
हमको दोनों हैं पसंद,
तेरी धूप और छाँव,
दाता किसी भी दिशा में ले चल,
जिंदगी की नाँव,
चाहे हमें लगा दे पार,
चाहे छोड़ हमको मझधार,
तू जो भी देना चाहे दे दे,
मेरे सरकार।
तेरे फ़ूलों से भी प्यार,
तेरे काँटों से भी प्यार,
तू जो भी देना चाहे दे दे,
मेरे सरकार।

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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