– सुसंस्कृति परिहार
धनंजय यशवंत चंद्रचूड़ जी को जब रंजन गोगोई के सेवानिवृत्त होने के बाद 9 नवंबर 2022 को राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने भारत के 50 वें मुख्य न्यायाधीश के रूप में पद एवं गोपनीयता की शपथ दिलाई थी। तब देश में पूर्व सीजेआई गोगोई को लेकर जिस तरह धारणाएं बन गई थी तब लग रहा था लंबे समय तक रहने वाले नवागत सीजेआई उच्चतम न्यायालय की बिगड़ी छवि को निश्चित तौर पर दुरुस्त करेंगे।
न्यायपालिका के इतिहास में पहली बार पिता- पुत्र की जोड़ी थी जो देश के मुख्य न्यायाधीश रहे होंगे। उनके पिता को सन् 1978 में भारत का 16वें मुख्य न्यायाधीश नियुक्त किया गया। चंद्रचूड़ जे को जनता सरकार के कार्यकाल के दौरान नियुक्त किया गया था। जब इंदिरा गांधी सरकार सत्ता में आई, तो वे सरकार के कट्टर विरोधी बन गए।
सेवानिवृत्त सीजेआई डीवाई चंद्रचूड़ ने दो बार अपने पिता जस्टिस वीवाई चंद्रचूड़ के फैसलों को पलटा था इसलिए यह आशा बलवती हुई थी कि वे रंजन गोगोई जैसे हालात को बदलेंगे। उससे समझौता नहीं करेंगे तथा एक नई मिसाल पेश करेंगे। हालांकि बावरी कांड के बाद रामजन्म भूमि के फैसले में वे भी शामिल थे।जब उन्होंने यह कहा कि उन्होंने भगवान के आदेश का पालन किया तो यह विश्वास डगमगाया था। लेकिन लोगों ने इसे बहुसंख्यक आस्था के नाम और प्रतिपक्षी मुस्लिम नेताओं की सहमति से हुआ फैसला मान उन्हें भी क्षमा कर दिया था।जबकि ये फैसला इकतरफा और न्याय सम्मत नहीं था।
इसके अलावा कुल आठ साल के सुप्रीम कोर्ट के जस्टिस के कार्यकाल के दौरान जस्टिस चंद्रचूड़ ने कई अहम मामलों में फैसले दिए, जिनमें राम मंदिर, अनुच्छेद-370, एडल्टरी को अपराध से बाहर करने, समलैंगिक संबंध को सहमति के मामले में अपराध से बाहर करने आदि फैसले शामिल हैं। अपने रिटायरमेंट से कुछ दिन पहले CJI डीवाई चंद्रचूड़ ने बड़ा फैसला लिया है। अपनी सेवानिवृत्ति से पहले भारत के मुख्य न्यायाधीश ने सुप्रीम कोर्ट में ग्रीष्मकालीन अवकाश समाप्त कर दिया है। उन्होंने कहा कि अब केवल आंशिक न्यायालय कार्य दिवस (Partial Court Working Days) होंगे। यह नया नियम तत्काल प्रभाव से लागू होगा। साल 2025 के ज्यूडीशियल कैलेंडर में समर ब्रेक को ‘आंशिक कार्य दिवस’ के रूप में नामित किया गया है।
बहरहाल चंद्रचूड़ जी पर शक और संदेह नहीं किया गया उन्होंने जब बुलडोजर और इलेक्टोरल बांड मामले न्याय की बात कही तब उनसे किसी को शायद ही शिकायत रही हो।लग रहा था चंद्रचूड़जी अपने लंबे कार्यकाल में। संविधान से इतर कार्यकलाप करने वाले देश के मुखिया को भी नहीं बख्शेंगे।हुआ इसके ठीक उलट ही।सारे गंभीर और देश की बुनियादी समस्याओं से जुड़े सवालातों को वे टालते रहे और उन्हें पेंडिंग ही छोड़ दिए। जाते जाते उन्होंने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय मामले को लटका दिया।पूरी तरह से निर्णीत नहीं किया।
क्या उनके मन में अपने पिता वीवाई चंद्र चूड़ के मन का वह कीड़ा विचलित कर गया जिसके कारण जनता पार्टी ने उन्हें देश का सीजेआई बनाया था। इंदिरा जी पुनः सत्ता वापसी पर वे उनके कट्टर विरोधी बन गए थे। वैसे ही डीवाई चंद्रचूड़ जी भाजपा शासन में बने और भाजपा नेताओं का ही उचित अनुचित समर्थन करते रहे। अंदरुनी स्थितियों का तो आकलन नहीं किया जा सकता किंतु एक सीजेआई के घर गणेश चतुर्थी पर पीएम मोदीजी पहुंच जाते हैं तो सिर चकरा जाता है। ये कैसी पूजा थी ? जिसमें संवैधानिक नियमों को बुरी तरह तोड़ा गया। तत्कालीन सीजेआई ने इस घटना को सहजता से लिया।शायद वे भी अंधभक्त साबित हुए।देश की न्याय व्यवस्था की बुनियाद हिल गई। उसके बाद उन्होंने ऐसे बयान भी दिए जिन्होंने यह बता दिया कि वे किस थैली के चट्टे-बट्टे हैं वे छुपे रुस्तम निकले।
देखना यह है कि उनकी इस कथित भक्ति का रंजन गोगोई की तरह पुरुस्कार कब मिलता है। ये सच है उन्होंने अपने इस पद की गरिमा को भारी क्षति तो पहुंचाई ही है तथा जनमानस के दिल में को जो दर्द दिया है उससे अब देश के किसी सीजेआई पर भरोसा करना मुश्किल होंगा।