मकान, दुकान मालिक-किराएदार, स्कूल-अभिभावक, बिजली बिल-उपभोक्ता, कर्मचारी-मालिक, बैंक-कर्जदार आदि के बीच विभिन्न संभावित विवादों और परेशानियों की ओर लगातार ध्यान आकर्षित किए जाने के बावजूद केंद्र सरकार इन्हें नजरअंदाज करती रही और कोई ऐसी व्यवस्था नहीं दी कि दोनों पक्षों को राहत मिल सके, नतीजा यह है कि अब उसके कुपरिणाम सामने आने लगे हैं.
इस दौरान प्राइवेट स्कूल और अभिभावकों के बीच अनेक विवाद हुए पर केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय स्तर पर ऐसी कोई व्यवस्था, ऐसी कोई नीति नहीं बनाई कि स्कूल प्रशासन भी परेशान नहीं हो और अभिभावकों को भी राहत मिले.
इस मुद्दे पर दैनिक भास्कर की अमित शर्मा की खबर शेयर करते हुए भरतपुर के कार्यकारी संपादक गिरिराज अग्रवाल @girirajagl ने लिखा कि- प्राइवेट स्कूलों को मोटी फीस नहीं चुका पा रहे अभिभावक, बच्चों को सरकारी स्कूलों में करवा रहे हैं दाखिल. अब सरकार और शिक्षकों की जिम्मेदारी है कि वह सरकारी स्कूलों को प्राइवेट से भी बेहतर बनाएं!
कोरोनाकाल में स्कूल बंद रहने के बावजूद उस पीरियड की फीस वसूलने को भले ही सुप्रीम कोर्ट ने मंजूरी दे दी है, लेकिन अभिभावक मानसिक तौर पर इतनी मोटी रकम चुकाने को तैयार नहीं है, इसलिए ऑनलाइन पढ़ाई के बावजूद वे प्राइवेट स्कूलों से टीसी कटवाकर बच्चों को सरकारी स्कूलों में भर्ती करवा रहे हैं. इससे भरतपुर जिले के सरकारी स्कूलों में 11 प्रतिशत नामांकन बढ़ गया है.
यानि, 29000 से ज्यादा बच्चों ने प्राइवेट से हटकर सरकारी स्कूलों में दाखिला लिया है. डीग के मसानी मोहल्ला में रहने वाले पवन कुमार अग्रवाल कहते हैं कोरोनाकाल में रोजगार प्रभावित होने से पहले ही आर्थिक स्थिति बिगड़ी हुई है. ऐसे में प्राइवेट स्कूलों को उस पीरियड की मोटी फीस कैसे चुकाएं, जिसमें बिलकुल पढ़ाई नहीं हुई और स्कूल बंद रहे. इसलिए उन्होंने अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में दाखिल कराया है!
कोरोनाकाल में स्कूल बंद रहने के बावजूद उस पीरियड की फीस वसूलने को भले ही सुप्रीम कोर्ट ने मंजूरी दे दी है। लेकिन, अभिभावक मानसिक तौर पर इतनी मोटी रकम चुकाने को तैयार नहीं है। इसलिए ऑनलाइन पढ़ाई के बावजूद वे प्राइवेट स्कूलों से टीसी कटवाकर बच्चों को सरकारी स्कूलों में भर्ती करवा रहे हैं। इससे भरतपुर जिले के सरकारी स्कूलों में 11 प्रतिशत नामांकन बढ़ गया है।
यानि, 29000 से ज्यादा बच्चों ने प्राइवेट से हटकर सरकारी स्कूलों में दाखिला लिया है। डीग के मसानी मोहल्ला में रहने वाले पवन कुमार अग्रवाल कहते हैं कोरोनाकाल में रोजगार प्रभावित होने से पहले ही आर्थिक स्थिति बिगड़ी हुई है। ऐसे में प्राइवेट स्कूलों को उस पीरियड की मोटी फीस कैसे चुकाएं, जिसमें बिलकुल पढ़ाई नहीं हुई और स्कूल बंद रहे। इसलिए उन्होंने अपने बच्चों को सरकारी स्कूल में दाखिल कराया है।
कामां रोड पर रहने वाले दिनेशचंद बताते हैं कि ट्यूशन लगाकर भी बच्चों को सरकारी स्कूल में पढ़ाएंगे तो प्राइवेट से बेहतर ही रहेगा। शिक्षा विभाग के आंकड़ों के मुताबिक जिले के 1721 सरकारी स्कूलों में नए सत्र के दौरान 29742 विद्यार्थी बढ़े हैं। इनमें भी माध्यमिक स्कूलों का नामांकन प्रारंभिक स्कूलों की तुलना में ज्यादा बढ़ा है।
जिले में 541 माध्यमिक और 1180 प्रारंभिक स्कूल हैं। इनमें वर्तमान सत्र में 3 लाख 10 हजार 109 विद्यार्थी नामांकित हुए हैं। जबकि पिछले साल सरकारी स्कूलों का नामांकन 2 लाख 80 हजार 367 था।