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*अब रफाल-2!*

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*(व्यंग्य : राजेन्द्र शर्मा)*

फ्रांस वालों ने क्या हद्द ही नहीं कर दी। बताइए! वही फ्रांस और वही पेरिस, पर शहर के एक सिरे पर तो मोदी जी के पांव रखने को लाल कालीन बिछवाए जा रहे थे और दूसरे छोर पर मणिपुर के बहाने से योरपीय संसद में, डैमोक्रेसी के पप्पा जी को डैमोक्रेसी के ही पाठ पढ़ाए जा रहे थे। फिर भी, विश्व गुरु की शान में गुस्ताखी तो हो ही गयी। घर बुलाकर ऐसे भी कोई बेइज्जत करता है भला! और वह भी तब, जबकि अगर मोदी जी के राज में दो महीने से मणिपुर जल रहा है, तो इसी बीच पांच-छ: दिन तो पेरिस भी जलता ही रहा था, प्रदर्शनों से। मैक्रां की कमीज, मोदी जी के कुर्ते से ज्यादा सफेद थोड़े ही है।

फिर बात अकेले फ्रांस की थोड़े ही है। पिछले ही महीने अमरीका गए थे, तो व्हाइट हाउस में बुलाकर भाई लोगों ने, आठ-नौ साल में पहली बार मोदी जी से धर्मनिरपेक्षता वगैरह पर सीधा सवाल करवा दिया था। और अब फ्रांसीसी भी! ऐसे ही चला, तो पता नहीं अगले चुनाव से पहले ही मोदी जी की शान को न जाने किस-किस की गुस्ताखी देखनी पड़े। बाहर वालों को तो कुछ ले-देकर पटा लें, तो बात दूसरी है, वर्ना न तो ईडी-सीबीआइ वगैरह भेजकर उनका मुंह बंद कराया जा सकता है और न राहुल गांधी की तरह, मानहानि के लिए संसद-वंसद से बंदों का पत्ता ही कटवाया जा सकता है।

उस पर फ्रांसीसी तो अमरीका वालों की तरह एक ही सवाल उछलवाने पर भी नहीं रुके। कहां तो मोदी जी रफाल सौदे के स्वीक्वल का महूर्त करने जा रहे थे और कहां फ्रांस की एक अदालत ने उनकी सरकार को चिट्ठी भेजकर, रफाल पार्ट-1 में घोटाले के आरोपों की जांच में, सहयोग की मांग कर दी। कहते हैं कि जैसे ताली एक हाथ से नहीं बजती है, वैसे ही सौदे में घोटालेे में दो पक्ष जरूर लगते हैं। आप भी अपनी तरफ से घोटाले से पर्दा उठाओ! दो हाथ की बात आ गयी, सो यह कहकर पीछा भी नहीं छुड़ा सकते कि रफाल सौदा, हमारा निजी मामला है!

तो अब रफाल-2 माने, घोटाला-2 का शोर! चलिए, संसद के मानसून सत्र में मणिपुर पर चर्चा न होने पाए, इसका इंतजाम तो हो गया!      

*(व्यंग्यकार वरिष्ठ पत्रकार और साप्ताहिक ‘लोकलहर’ के संपादक हैं।)*

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