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अब चुनाव आयोग भी बन गया केंद्र के हाथ की कठपुतली

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जगदीप सिंह सिंधु

16 अगस्त को भारतीय चुनाव आयोग ने विज्ञान भवन में प्रेस वार्ता करके राज्यों के विधानसभा चुनाव की घोषणा करने का एक निमंत्रण पत्रकारों के लिए जारी किया था लेकिन दिन में जब वार्ता हुयी तो प्रेस के सभी पत्रकार मुख्य चुनाव आयुक्त द्वारा की गयी घोषणा से आश्चर्य में थे क्योंकि सभी को अपेक्षा थी कि देश के 4 राज्यों की विधानसभा और अन्य खाली पड़ी विधानसभा व लोक सभा की सीटों पर भी चुनावों की घोषणा होगी लेकिन इसके विपरीत केवल जम्मू- कश्मीर और हरियाणा की विधानसभाओं के चुनावों की ही घोषणा हुयी। चुनाव आयोग ने अन्य राज्यों के चुनावों को साथ न करवाने के जो तर्क दिए वो किसी भी कसौटी पर संतोषजनक नहीं माने जा रहे। 

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स्वतन्त्रता दिवस पर लाल किले की प्राचीर से एक दिन पहले ही प्रधान मंत्री नरेंद्र मोदी ने देश में निरंतर होते रहने वाले चुनावों पर टिप्पणी करते हुए एक समय में एक बार ही चुनाव करवाये जाने “वन नेशन वन इलेक्शन” की नीति को प्रस्तुत किया था लेकिन संवैधानिक स्वायत्त संस्था केंद्रीय चुनाव आयोग ने अगले ही दिन प्रधान मंत्री के एक विचार और नीति की धज्जियाँ उड़ा दी या यूं कहा जाये कि उस नीति की व्यवहारिकताओं पर ही सवाल खड़े कर दिए।   

केंद्रीय चुनाव आयोग की घोषणा भी सवालों के घेरे में खुद ही आ गई केवल चुनिंदा दो राज्यों में चुनाव कराने को लेकर। चुनाव आयोग का ऐसा निर्णय किस राजनीति प्रेरित विवेक से किया गया है। यह सीधे-सीधे सत्ताधारी दल को एक खास सुविधा देने के उद्देश्य से किया गया है ऐसी संभावना को बिल्कुल खारिज भी नहीं किया जा सकता। संविधान अनुरुप निष्पक्षता समानता के अवसर के मूल्यों से चुनाव आयोग क्यों किनारा कर रहा है।

किस राजनीतिक बिसात को संरक्षित करने की भूमिका चुनाव आयोग निभाने लगा है। किसकी सत्ता के अनुकूल परिस्थितियों को गढ़ा जा रह है। हार-जीत का फैसला मतदाता करता है लेकिन चुनाव आयोग किसकी हार जीत को प्रभावित करने के प्रयासों में स्थापित मूल्यों से समझौता कर रहा है ये सवाल भी उतना ही गंभीर लोकसभा चुनाव के बाद बन गया है। एडीआर और सिविल सोसाइटी के अन्य नागरिक समूहों द्वारा बड़े सवाल केंद्रीय चुनाव आयोग की भूमिका पर उठाये गए हैं।  

केंद्र शासित प्रदेश जम्मू-कश्मीर में लोकतांत्रिक प्रक्रिया को बहाल करने को लेकर उच्चतम न्यायालय के आदेश के पालन की बाध्यता को पूरा करने के कारण चुनाव की प्रक्रिया को सितंबर में चुनाव आयोग को आरम्भ कराना आवश्यक था। 5 अगस्त, 2019 को केंद्र शासित प्रदेश बनाए जाने और अनुच्छेद 370 के हटने के बाद जम्मू-कश्मीर एक दशक में अपने पहले विधानसभा चुनाव के लिए तैयार है।  

90 सीटों की विधानसभा की लिए 3 चरणों में जम्मू कश्मीर की जनता दस साल बाद वहां मतदान कर पायेगी। विधानसभा निर्वाचन क्षेत्र पुनर्निर्धारण के बाद  जम्मू-कश्मीर में सीटों की संख्या 90 हो गयी है जिसमें जम्मू संभाग में 43 तथा  श्रीनगर संभाग में 47 सीट हैं। जम्मू-कश्मीर का विशेष दर्जा समाप्त होने के बाद क्षेत्र में राजनीतिक बदलाव की पहली बड़ी परीक्षा होगी।  

 2014 के विधानसभा चुनाव में 65.52 का हाई वोटिंग प्रतिशत रिकॉर्ड किया गया था। पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (PDP) 28 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी बनकर उभरी थी भाजपा को 23 सीटें मिली थीं जबकि फारूक अब्दुल्ला की नेशनल कांफ्रेंस 15 सीट कांग्रेस को 12 सीट मिली थी। भाजपा द्वारा जम्मू कश्मीर का विशेष दर्जा धारा 370 खत्म करने की नीति के प्रभाव इन चुनावों में स्पष्ट होंगे। 

हरियाणा विधान सभा का वर्तमान सत्र 3 नवंबर रविवार को समाप्त होना है। 31 अक्टूबर को दिवाली की छुट्टी होगी। अत: विधान सभा में नये सदन का सत्र 30 अक्टूबर से पहले शुरू होना संवैधानिक अनिवार्यता है। चुनाव और नतीजे घोषित होने के बाद सरकार का गठन भी होना है। विधायकों को नये सदन में सदस्य के रूप में शपथ लेने की प्रक्रिया को भी पूरा करना होगा। महीने में अन्य अवकाश के चलते चुनाव की तारीख और परिणाम को निश्चित किया गया है।

1 अक्टूबर को प्रदेश में एक ही चरण में चुनाव होंगे। नतीजे 4 अक्टूबर को आएंगे। लोकसभा चुनाव के परिणामों से भाजपा को प्रदेश में अपनी सत्ता खोने का डर निरंतर बढ़ता जा रहा है। दस साल के कार्यकाल की उपलब्धियों का हिसाब मतदाता पूरी तरह करने को तैयार हैं। लोकसभा चुनावों से पहले प्रदेश के मुख्यमंत्री को बदलने की कवायद भी असफल होती साफ दिखने लगी है।  

 महाराष्ट्र की वर्तमान विधान सभा का कार्यकाल  26 नवंबर को समाप्त होने वाला है। 16 नवंबर तक चुनावी प्रक्रिया पूर्ण करना आवश्यक होगा ताकि नये चुने विधायकों की शपथ हो कर सरकार का गठन समय पर हो जाये और सदन का नया सत्र शुरू हो सके। लेकिन भाजपा को लोकसभा चुनावों में मिली बुरी हार से सत्ताधारी भाजपा के होश उड़े हुए हैं। महाराष्ट्र में विधानसभा चुनावों में हार सीधे तौर पर भाजपा की नीतियों और नेतृत्व को कटघरे में खड़ा कर देगा जिस से बचने की हर संभव कोशिश की जा रही है ताकि केंद्र में किसी तरह तीसरी बार बनाई गयी सरकार को संकट से बचाया जा सके। 

मोदी और शाह की गुजरात लॉबी के लिए महाराष्ट्र के परिणाम नि;संदेह नयी इबारत लिखने वाले हैं। अपने राजनीतिक भविष्य को बनाये रखने की चुनौती भाजपा और नरेंद्र मोदी, अमित शाह के लिए फांस बन चुकी है। कुछ दिन चुनावों को टाल कर चुनाव आयोग किस प्रभाव को साधने की जुगत कर रहा है यह साफ हो गया है।   

झारखण्ड की विधान सभा का कार्यकाल 5 जनवरी 2025 को पूरा होने वाला है। झारखंड में  पांचवीं विधानसभा 2019 के चुनाव 5 चरणों में हुए थे। छठी विधान सभा के लिये चुनाव अब दिसंबर 2024 में संभावित हैं। 81 सीटों वाली  विधानसभा में वर्तमान में जेएमएम की सरकार कांग्रेस के साथ गठबंधन से हेमंत सोरेन के नेतृत्व में बनी हुई है। भाजपा को पिछली बार 33.6 % मत मिले थे लेकिन बहुमत नहीं मिला। अब की बार झारखंड में चुनाव और भी रोचक होने वाले हैं क्योंकि मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन को जिस तरह जेल में डाल कर सरकार को अस्थिर करने के प्रयास किये गए थे वो सफल नहीं हो पाए और भाजपा की किरकिरी पूरे प्रदेश में हुयी है। आदिवासी समाज की अस्मिता का सवाल प्रदेश की राजनीति में केंद्र बिंदु बन चुका है। 

लोक सभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी साफ तौर पर सत्ताधारी दल भाजपा और नरेंद्र मोदी पर राजनीतिक स्वार्थ के लिए संवैधानिक संस्थाओं के दुरुपयोग के आरोप बार-बार लगा चुके हैं। ईडी, सीबीआई, इनकम टैक्स ब्यूरोक्रेसी और राज्यपाल की भूमिका के खेल पिछले एक दशक से देश देख रहा है।

अब चुनाव आयोग भी उसी जमात में खड़ा दिखाई देने लगा है। स्वर्णिम काल में लोकतंत्र खुद को ढूंढ रहा है।

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