सुब्रतो चटर्जी
भारत की आज़ादी के बाद से अब तक का सबसे महत्वपूर्ण दिन आज का दिन है. आज सुप्रीम कोर्ट में यह फ़ैसला हो जाएगा कि भारत अब एक लोकतांत्रिक देश रहेगा या नहीं. वैसे तो जवाहर लाल नेहरू के महाप्रयाण के बाद से ही देश की लोकतांत्रिक और स्वायत्त संस्थाओं का क्षरण शुरू हो गया था.
इस क्षरण का एक उदाहरण हमने इमरजेंसी के दौरान देखी है, लेकिन उन दिनों भी, अगर एक तरफ़ वर्तमान मुख्य न्यायाधीश के पिता जैसे लोग थे जिन्होंने इमरजेंसी के दौरान नागरिकों की व्यक्तिगत स्वतंत्रता के हनन के पक्ष में थे, तो दूसरी तरफ़ इलाहाबाद हाई कोर्ट में जस्टिस सिन्हा जैसे लोग भी थे. आज स्थिति बिल्कुल उलट है.
आज बिना किसी प्रमाण के मनीष सिसोदिया और उमर ख़ालिद सरीखे लोगों को बरसों जेल में सड़ाने का समय है. आज किसी भी सांविधानिक संस्था का जनता और संविधान के प्रति कोई ज़िम्मेदारी नहीं दिखती है. चुनाव आयोग जैसी संस्थाओं की मंशा पर सवाल उठ रहे हैं और ईडी, सीबीआई जैसी पुलिसिया संस्थाओं का सबसे विकृत रूप भी सामने आ गया है.
वोटिंग का कम होना भी जनता का व्यवस्था के प्रति घटती हुई विश्वास का परिचायक है. मसला सिर्फ़ 1 करोड़ 7 लाख चोरी की गई वोटों तक सीमित नहीं है. बात न्यायपालिका की विश्वसनीयता तक पहुंच गई है.
कहने को तो फंसे हुए नेता न्यायपालिका पर पूरी आस्था जताते हैं, लेकिन उनको भी मालूम है कि इस व्यवस्था में पिछले दस सालों में कितने न्याय हुए हैं और कितने फ़ैसले. सुरक्षित फ़ैसलों की तो बात ही छोड़ दीजिए. इवीएम के चलते पूरी चुनाव प्रक्रिया ही संदिग्ध हो गई है और वोटर निराश हैं.
इन हालात में आज के दिन सुप्रीम कोर्ट के सामने देश के जनतंत्र को बचाने का आख़िरी मौक़ा है. हमें देखना है कि क्या सुप्रीम कोर्ट ग़लत शपथ पत्र दायर करने के जुर्म में चुनाव आयोग के संबंधित अधिकारियों पर क्या कारवाई करती है ? हमें देखना है कि सुप्रीम कोर्ट एडीआर की याचिका पर और महमूद प्राचा के intervention writ पर क्या फ़ैसला लेती है और वह फ़ैसला कितना न्याय पूर्ण होता है.
यह समय सुप्रीम कोर्ट के लिए तकनीकी आधार पर देश के लोकतंत्र को बचाने के लिए दायर की गई याचिकाओं को निरस्त करने का नहीं है. आज का दिन यह तय करेगा कि देश में फासीवाद लंबे समय के लिए स्थापित हो जायेगा या नहीं. इसलिए विभिन्न कारणों से मुख्य न्यायाधीश पर सबसे बड़ी ज़िम्मेदारी बनती है. मुझे पूरी उम्मीद है कि सुप्रीम कोर्ट अपने कर्तव्य को निभाने में विफल होगी.
आप मानें या न मानें, भारतीय लोकतंत्र ख़त्म हो गया है और जनता को अब इस सड़ी गली व्यवस्था के विरुध्द विद्रोह के लिए तैयार होने की ज़रूरत है. वे रात भर जाग कर मुजरा करेंगे और हम रात भर जाग कर देखेंगे.
साकिया आज मुझे नींद नहीं आएगी
सुना है तेरी महफ़िल में रतजगा है !