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अब देश में बुल्डोजर का राज है!….या तो अदालत मर गयी है या फिर उसका जमीर मर गया है

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आखिरकार देश में ये हो क्या रहा है? किसी घर या फिर बिल्डिंग को गिराने का अधिकार कैसे किसी प्रशासन को मिल जाता है? उसके लिए अदालतें हैं। मामले को उसमें ले जाइये और फिर वहां से अगर कोई आदेश या फिर पक्ष में फैसला होता है तो इस तरह की कार्रवाइयों को अंजाम दीजिए। लेकिन या तो अदालत मर गयी है या फिर उसका जमीर मर गया है। लेकिन यह बात न्याय और कानून में विश्वास करने वाले आम लोगों को ज़रूर सोचना चाहिए कि अगर यही सिलसिला आगे बढ़ा और कानून के राज की देश से समाप्ति हुई तो इसका आखिरी खामियाजा उसी को भुगतना पड़ेगा। और फिर जो कुछ रहा-सहा लोकतंत्र है वह भी खत्म हो जाएगा। आखिर में एक ऐसी तानाशाही जन्म लेगी जिसका शायद बड़े बलिदानों के बाद ही फिर खात्मा हो पाए। 

कल सोशल मीडिया पर एक वीडियो वायरल था जिसमें महलनुमा एक आलीशान मकान को बुल्डोजर से गिराया जा रहा था। तस्वीर देखकर किसी का भी कलेजा दहल जाए। और फिर स्वाभाविक रूप से जेहन में यह सवाल उठ जाए कि आखिर करोड़ों रुपये की कीमत वाले इस घर को इतनी बेरहमी से क्यों गिराया जा रहा है। खबर के विवरण में जाने पर पता चला कि यह मकान किसी शहजाद अली का है जो मध्यप्रदेश के छतरपुर जिले के एक स्थानीय नेता हैं। और कांग्रेस के साथ-साथ बीजेपी से भी उनके राजनीतिक रिश्ते रहे हैं। 

महाराष्ट्र में किसी बाबा महंत रामगिरि महाराज द्वारा मुस्लिम धर्म पर टिप्पणी किए जाने से स्थानीय लोग नाराज थे लिहाजा उन्होंने विरोध स्वरूप स्थानीय थाने के सामने प्रदर्शन कर अपना ज्ञापन देने की योजना बनायी थी। लेकिन भीड़ के इकट्ठा हो जाने और फिर उसके नियंत्रण से बाहर हो जाने के चलते अचानक थाने पर पथराव हो गया और दोनों पक्षों में झड़प हो गयी। जिसमें कुछ पुलिस वालों को भी चोटें आयीं। छतरपुर के एसपी अगम जैन ने बताया कि उन्होंने इस मामले में तकरीबन 20 लोगों को हिरासत में लिया है। और वह इस हमले के पीछे की असली मंशा की तलाश कर रहे हैं। आपको बता दें कि इस प्रदर्शन में शहजाद अली भी शामिल थे। 

घटना के बाद इंडियन एक्सप्रेस में प्रकाशित खबर के मुताबिक सूबे के मुख्यमंत्री मोहन यादव ने डीजीपी सुधीर सक्सेना को कठोर कार्रवाई करने का निर्देश दिया। उसके बाद पुलिस ने अली के घर का ताला तोड़ दिया। और उसके बाद उनके घर के कथित अवैध हिस्से को बुल्डोजर से गिराना शुरू कर दिया। छतरपुर के एसडीएम अखिल राठौर ने बताया कि घर के सामने का हिस्सा गिरा दिया गया। अवैध संपत्ति तकरीबन 1 एकड़ हिस्से में फैली थी। हमने उसको ध्वस्त करने की नोटिस दी थी क्योंकि यह बगैर किसी अनुमति के बनी थी। एसपी जैन ने बताया कि संपत्ति की कीमत तकरीबन 10 करोड़ रुपये थी।

और फिर इस तरह से मुख्यमंत्री के सीधे निर्देश पर जिला प्रशासन अपने काम में जुट गया और दस करोड़ की बिल्डिंग को देखते ही देखते जमींदोज कर दिया। छतरपुर की घटना कोई अकेली नहीं है। कल ही बताया जा रहा है कि अयोध्या में भी बलात्कार के आरोपी का घर गिराया गया है। और इस तरह की घटनाएं नियमित अखबारों में आती रहती हैं। लेकिन न तो कोई न्यायपालिका इसका संज्ञान लेती है और न ही कोई दूसरा महकमा। जनता का बड़ा हिस्सा समझ ही नहीं पा रहा है कि आखिर ये हो क्या रहा है। दिलचस्प बात यह है कि ये जितनी कार्रवाइयां होती हैं उसमें सभी पीड़ित मुसलमान होते हैं।

अब कोई पूछ सकता है कि क्या हिंदू अपराध नहीं कर रहे हैं। देश और खासकर यूपी में बलात्कार के जितने बड़े मामले पिछले दिनों सामने आये उनमें ज्यादातर आरोपी हिंदू थे और उसमें भी बड़ा हिस्सा सवर्णों का था। क्या किसी का घर गिराया गया? फिर ये कार्रवाइयां मुसलमानों के खिलाफ ही क्यों?

लेकिन इससे भी बड़ा सवाल यह है कि क्या इस तरह से किसी का घर गिराया जा सकता है। क्या कोई स्थानीय प्रशासन और सरकार अपनी मर्जी से किसी के यहां धावा बोल सकते हैं और उसके घर को गिरा सकते हैं? फिर न्याय, संविधान, कोर्ट और कानून का क्या मतलब होगा? कोई भी सभ्य समाज ‘कानून के राज’ से चलता है।

और अगर वही खत्म हो जाए तो क्या हम उस समाज को सभ्य समाज का दर्जा दे सकते हैं। इस बात में कोई शक नहीं कि कोई मकान अवैध हो सकता है। लेकिन अतिक्रमण को हटाने की भी एक प्रक्रिया होती है। क्या प्रशासन उस प्रक्रिया का पालन करेगा। और अगर नहीं करता है और मनमाने तरीके से चीजों को संचालित करता है तो क्या उसे ‘कानून का राज’ कहा जा सकता है? फिर तो इस देश में इन अदालतों का भी कोई मतलब नहीं रह जाएगा। 

आखिर ये अदालतें क्यों हैं? सही-गलत, वैध-अवैध का ध्यान रखने के लिए ही तो बनायी गयी हैं? किसी मामले की सुनवाई करती हैं और फिर फैसला सुनाती हैं। और जो दोषी होता है उसे सजा भी देती हैं। ये मत भूलिए कि न्यायालय के सामने सरकार और प्रशासन भी एक पक्ष ही होता है। वह नागरिक के सामने खड़ा होता है। और नागरिक तथा प्रशासन अपना-अपना पक्ष अदालत के सामने अपने वकीलों के माध्यम से रखते हैं और फिर दोनों पक्षों को सुनने के बाद जज अपना फैसला सुनाता है।

ऐसे में क्या कभी प्रशासन का स्थान अदालत से ऊपर हो सकता है। वही एफआईआर दर्ज करे और फिर वही अदालत भी बन जाए और फिर फैसला भी करे और फिर उसे लागू भी कर दे। अगर प्रशासन और सरकार ही सब कुछ हो जाएंगे तो फिर इन अदालतों का क्या काम होगा?

इनके जजों को तो फिर घर बैठना चाहिए। या फिर यह मान लिया जाए कि अदालतें अब केवल रसूखदार लोगों और सत्ता के रास्ते में पड़ने वाले रोड़ों को साफ करने के लिए हैं। उनका जनता से कोई सरोकार नहीं है। अगर कोई अदालत देश में कानून के राज को स्थापित नहीं कर पाती है। और संविधान को लागू करने की गारंटी नहीं करा पाती है तो फिर उसे बने रहने का भी कोई अधिकार नहीं है। 

अजीबोगरीब दौर है। बुल्डोजर राज को चलते पांच साल से ज्यादा हो गए हैं।हजारों मकान जगह-जगह गिराए गए। एक सूबे के मुख्यमंत्री को तो बाकायदा बुल्डोजर मुख्यमंत्री बोला जाता है। उनकी खुद की बुल्डोजर पर बैठी तस्वीरें उनका ब्रांड बन गयी हैं। हजारों मकान उनके नेतृत्व में गिराए गए हैं। और उन्हीं की देखा-देखी बीजेपी की दूसरी सरकारों ने भी वही रास्ता अपना लिया। और मध्य प्रदेश की यह घटना भी उसी का नतीजा है। लेकिन तमाम मामलों पर स्वत:  संज्ञान लेने वाला सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर बिल्कुल चुप्पी साधे हुए है।

क्या उसे यह नहीं पूछना चाहिए कि आखिरकार देश में ये हो क्या रहा है? किसी घर या फिर बिल्डिंग को गिराने का अधिकार कैसे किसी प्रशासन को मिल जाता है? उसके लिए अदालतें हैं। मामले को उसमें ले जाइये और फिर वहां से अगर कोई आदेश या फिर पक्ष में फैसला होता है तो इस तरह की कार्रवाइयों को अंजाम दीजिए। लेकिन या तो अदालत मर गयी है या फिर उसका जमीर मर गया है। लेकिन यह बात न्याय और कानून में विश्वास करने वाले आम लोगों को ज़रूर सोचना चाहिए कि अगर यही सिलसिला आगे बढ़ा और कानून के राज की देश से समाप्ति हुई तो इसका आखिरी खामियाजा उसी को भुगतना पड़ेगा। और फिर जो कुछ रहा-सहा लोकतंत्र है वह भी खत्म हो जाएगा। आखिर में एक ऐसी तानाशाही जन्म लेगी जिसका शायद बड़े बलिदानों के बाद ही फिर खात्मा हो पाए। 

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