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 गर्भपात में अब औरतों की मर्जी चलेगी

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मुनेश त्यागी 

     हमारे देश में और सारे समाज में यह सवाल बहुत दिनों से तैर रहा था कि क्या औरतों को अनचाहे गर्भपात का अधिकार है? इस सवाल को लेकर हमारा समाज बंटा हुआ था। कुछ लोग कहते थे कि औरतों को एक अवधि के बाद बच्चा गिराने का अधिकार नहीं है, तो वहीं दूसरी ओर लोगों का कहना था कि किसी भी औरत को अनचाहे बच्चे  का गर्भपात कराने का अधिकार है। यह सवाल बहुत समय से हमारे समाज में विवाद का मुद्दा बना हुआ था।

      अभी कुछ दिन पहले भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने इस सवाल/ विवाद पर विभिन्न पक्षों की दलीलें सुनी और सब को सुनने, विचारने के बाद अपना बहुप्रतीक्षित फैसला दिया कि किसी भी औरत को अनचाहे बच्चे का गर्भपात कराने का पूरा अधिकार है। बच्चे को पेट में रखने या ना रखने की औरतों को पूरी आजादी है।

      सर्वोच्च न्यायालय में अपने फैसले में अवधारित किया है कि प्रत्येक गर्भवती महिला चाहे वह विवाहित हो या अविवाहित, को तीसरे पक्ष की सहमति के बिना, गर्भपात कराने का पूर्ण अधिकार है। महिला के इस अधिकार में कोई भी टांग नहीं अडा सकता। 

    अदालत ने अपने फैसले में यह भी मानना है कि अगर पति भी अपनी पत्नी की इच्छा के विरुद्ध यौनिक सेक्स करता है तो वह भी बलात्कार की श्रेणी में आएगा और अपनी पत्नी से अनचाहे सैक्स को भी और बलात्कार माना जाएगा। ये दोनों फैसले औरतों के लिए बहुत अहमियत रखने वाले हैं। अब सभी औरतों को अनचाहे गर्भपात और अनचाहे सैक्स से छुटकारा मिल जाएगा।

     ऐसी उम्मीद की जाती है कि गर्भपात में अब औरतों की मर्जी चलेगी। पति द्वारा की गई यौनिक हिंसा के बाद, औरत इस अनचाही औलाद का गर्भपात करा सकती है। इसमें कोई कानूनी या सामाजिक रुकावट उसके ऐसा करने में के रास्ते में बाधा नहीं बनेगी। अब वह 24 सप्ताह तक गर्भपात करा सकती है। इस प्रकार वह अब अनचाहे गर्भ से निजात पा सकती है, लिव इन रिलेशनशिप से गर्भधारण करने वाली महिला भी गर्भपात की पूर्ण अधिकारिणी है।

     फैसले में कहा गया है कि गर्भ महिला के शरीर में पलता है। इससे उसे कई परेशानियां जैसे कमजोरी, कमर दर्द आदि होती हैं, इसलिए इसे खत्म करने का फैसला महिला से ही जुड़ा है। यदि कोई उसे अवांछित गर्भ रखने के लिए मजबूर करता है तो वह उसकी गरिमा पर हमला है, उसकी आजादी का खुल्लम खुल्ला हनन है और उसके सामाजिक जीवन पर इसका गहरा असर पड़ता है।

     अब हकीकत यह है कि दुनिया भर में महिला अधिकारों को लेकर कानूनों में इच्छित और वांछित बदलाव हो रहे हैं। 75 देशों में जरूरी प्रक्रिया पूरी करने पर, गर्भपात की इजाजत मिली है। इन सभी देशों में अविवाहित और विवाहित महिलाओं में कोई भेदभाव नहीं किया जाता है। वहीं दुनियाभर में ऐसे 50 देश हैं जहां महिलाओं की जान बचाने के लिए गर्भपात की इजाजत है।

      यह भी एक हकीकत है कि जहां गर्भपात पर प्रतिबंध है वहां गर्भपात अधिक होते हैं। यह खुशी की बात है कि दुनिया भर की कई अदालतें आधी आबादी के साथ खड़ी हुई हैं। इन देशों जैसे न्यूजीलैंड, कनाडा, मेक्सिको और कोलंबिया की अदालतों ने यह माना है कि औरतों को वांछित गर्भपात का पूरा हक है और वे अपनी इच्छा से वांछित गर्भपात करा सकती हैं।

    भारत में भी कई अदालतों ने महिलाओं के अधिकार की रक्षा की है जैसे कोलकाता, मुंबई, मद्रास और कर्नाटक उच्च न्यायालयों ने बच्चियों, महिलाओं और लिव इन रिलेशनशिप में रहने वाली महिलाओं के गर्भपात कराने वाले अधिकारों की रक्षा की है और इन के हित में फैसले दिए हैं।

      निर्विवाद रूप से हमारा स्पष्ट मानना है कि खासकर लिव इन रिलेशनशिप वाली महिलाओं को और पति द्वारा यौनिक हिंसा से बहुत सारी महिलाओं को राहत मिलेगी और बहुत सी महिलाओं को यौन हिंसा के फलस्वरूप गर्भ धारण करने से राहत मिलेगी और वे सामाजिक कारणों से बचकर अपना निजी जीवन जी सकेंगी और कई सामाजिक दाग, धब्बों से निजात पाएंगी। सच में नव दुर्गा के दिनों में, यह औरतों के लिए एक राहत भरी खबर है।

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