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ओ मेरे आत्मालय में स्थापित शहंशाहे मौसिकी कुंदन लाल सहगल!  

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कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ के सर होेने तक!

आज मैं दो गुमनाम हो सकने वाले लेकिन नामचीन मनुष्यों के बारे में एक असाधारण पोस्ट लिख रहा हूं। सोचा नहीं था कि करोड़ों की भीड़ में ऐसे भी लोग हो सकते हैं। वे अपनी असाधारण प्रतिबद्धता, समर्पण, शोधवृत्ति और जिज्ञासु बौद्धिक जिद के चलते इतिहास रच गए। वैसा दुबारा कोई कर भी नहीं पाएगा। 

यह दो वैश्य नौजवानों की कहानी है। वे कलकत्ता महानगर में व्यापार करते रहे। उसका इस किताब में आनुपातिक परिचय तक नहीं है। न ज़्यादा तस्वीरें। न कौन हैं? कहां से आये? क्यों ऐसा किया? खुद को गुमनाम रखते विनोद सोंथलिया ने कमल बेरीवाला के साथ मिलकर 412 पृष्ठों की असाधारण किताब बड़े आकार (24 से.मी. का 8 से. मी.) में बेहद महंगे चिकने आर्ट पेपर पर आधुनिक युग के सबसे बड़े गायक और एवरेस्ट की ऊंचाई तक पहुंच जाने वाले कुंदनलाल सहगल का कृतित्व और जीवननामा छाप दिया। विनोद! कमल! तुमने तो इतिहास रच दिया। इससे कोई कमतर वाक्य तुम्हारे लिए नहीं लिख सकता। 

जिसे भी कुंदनलाल सहगल की गायकी और शख्सियत से कुछ भी सरोकार है। यह किताब यदि उसके पास नहीं है। तो वह कितनी भी कोशिश कर ले। पूरा कुंदनलाल सहगल उसकी आत्मा की जानकारी की जद में नहीं ही आएगा। मैंने किसी भी सांस्कृतिक तो क्या सियासी किरदार के लिए भी इस टक्कर की किताब देखी सुनी तक नहीं है। शायद नहीं भी होगी। इतिहास में विनोद सोंथलिया अपने दोस्त के साथ जैसे पीढ़ी दर पीढ़ी गुम हो जाने पैदा होते हैं। लेकिन ऐसी गुमशुदगी का भी इतिहास होता है। उसे खंगालो, तो ये रत्न फिर मिलते हैं। ये किसी भी कौम को जीवन्त बनाने के लिए काफी से ज्या़दा होते हैं। 

अद्भुत है यह संकलन! यह किताब! यह जीवनकथा! यह एन्साइक्लोपीडिया! यह गजेटियर! कुछ भी कह लें। इसके हर पृष्ठ पर उद्दाम जीवन के सहगल की बानगी अगले पृष्ठ तक हड़बड़ी मे जाने से रोक देती है। आप सोच नहीं सकते इस किताब में क्या क्या है? सहगल के गीतों की पूरी सूची है। संकलित है सहगल के कुल 159 फिल्मी और 50 गैरफिल्मी गीत। फारसी, पंजाबी, बांगला, तमिल भाषाओं के गीत भी। अचरज है 50 गैरफिल्मी गीत 159 फिल्मी गीतों पर बेतरह हावी हैं। फिल्मी गीतों का संगीत निर्देशन नामचीन फनकारों ने किया ही। लेकिन गैर फिल्मी गीतों का संगीत निर्देेशन जिसने भी किया। वे भी तो अमर हैं। 

सहगल की सैकड़ों श्वेत रंगीन तस्वीरें हैं। पहले सबने देखी तक नहीं होंगी। सहगल की हर फिल्म के पोस्टर की तस्वीर हैं। पता नहीं कैसे विनोद और कमल ने इकट्ठा किया होगा? सहगल के 33 सहगायक हैं, गीतकार हैं। सबकी तस्वीरें और परिचय हैं। सहगल की जो फिल्में नहीं बन पाईं का भी ब्यौरा है। नामचीन संगीतकारों और अन्य लोगों के लेख, राय, श्रद्धांजलि, समीक्षा, संपर्क, पत्र व्यवहार किताब में संकलित हैं। किताब में दाम तक नहीं लिखे हैं। न प्रकाशक का नाम। दोनों ने शोध किया। तथ्यों का ईजाद किया। संपादित किया। दोनों की भूमिका है। विनोद ने प्रकाशित किया। 

हर गीत के बोल, ध्वनि संयोजन, राग-रागिनी, संगीत निर्देशक का नाम, सही उच्चारण के साथ उर्दू लफ्जो़ के हिन्दी अनुवाद के साथ छपे गीतों का ब्यौरा। लोगों को नहीं मालूम हैं लेकिन उनकी भी साफ बयानी कि रिकॉर्ड कहां बने। कब बने। कैसे बने। किस प्रविधि से बने। उन्हें जारी किया गया या जारी नहीं किया जा सका। इनसे कुछ तो छूटता। कुछ नहीं छूटा। जिम्मेदारी और प्रामाणिकता के साथ सूचीबद्ध और कलमबद्ध है। जिन हारमोनियम पर सहगल गाते थे उन्हें भी प्रकाशित किया। संसार में जितने भी सहगल प्रशंसक हैं। उन तक का ब्यौरा दोनों मित्रों ने कैसे इकट्ठा किया? हैरत की बात है। 

वाह रे विनोद! वाह रे कमल! मैं कमल बेरीवाला से नहीं मिला। स्वर्गीय हो चुके विनोद सोंथलिया से कैसे मिलता। वर्षों पहले विजय बहादुर सिंह ने मुझे भारतीय भाषा परिषद के कार्यक्रम में वागर्थ के सम्पादक रहते कलकत्ता बुलाया था। यह किताब परिषद के दफ्तर में देखी। मैं जबरन उठा ले जाना चाहता था।  विजय बहादुर सिंह ने कहा यह परिषद की संपत्ति है। पता नहीं कैसे और कब आई। इसे यहीं रहने दीजिए। फिर मैंने किताब में छपे पते की मदद और दूसरे स्त्रोतों से विनोद सोंथलिया के घर का पता ढूंढ़ा। उनकी पत्नी से फोन पर बात की और गया। मैंने कहा प्रतीकात्मक राशि एक हजार रुपये आपको ज़रूर दे रहा हूं। लेकिन किताब आपसे मांगकर क्या छीन लूंगा। उन्हें बहुत अच्छा लगा कि एक अज्ञात जगह से वर्षों बाद कोई वर्षों से रहा सहगल प्रशंसक लगभग बदहवास हालत में आकर किताब को मांग रहा है। 

किताब मिल गई। तब से उसे उलटता पलटता रहा हूं। इससे निकलकर सहगल मुझसे बार बार मिलने आते हैं। अज्ञात यादें जिनसे रिश्ता नहीं। तमाम लोग जिन्होंने फिल्म संगीत रचा। सहगल के तमाम पूर्वज। कोई मुझसे नाराज़ नहीं होता। सब कहते हैं तुम्हारे पास हमारी यादों की धरोहर है। वह न केवल संभाले रखना। अपनी पीढि़यों से कहना कि जिस घर में पीढि़यों का इतिहास नहीं होता। वे घर तो केवल सीमेंट, कांक्रीट का मलबा होते हैं। अपने जीवन में मैं अपने घर को सीमेंट, कांक्रीट के मलबे में बदलता नहीं देख सकता। हालांकि मैंने सीमेंट कांक्रीट का मलबा इकट्ठा कर मकान ही तो बनाया था। मकान को घर बना देने में कई लोगों ने मदद की। कबीर, गालिब, निराला, टैगोर, विवेकानन्द, गांधी, नेहरू, अम्बेडकर, सुभाष बोस, भगतसिंह, लोहिया तो हैं। किसने कहा कि उसमें पहले सहगल, फिर दिलीप कुमार, सत्यजीत राय, लता मंगेशकर, नूरजहां, शैलैन्द्र, नौशाद वगैरह नहीं हैं। 

ऐ दोनों नायाब दोस्तों! तुमने आर. सी. बोराल, पंकज मलिक, बी. एन. सरकार, नौशाद, केदार शर्मा, मदन पुरी, के. एन. सिंह, कानन देवी, लता मंगेशकर, सी. एच. आत्मा, अमीन सयानी न जाने कितने नामचीन कलाकारों के संस्मरणों का कोलाज अपनी किताब में बिखेर दिया है। जालंधर वह शहर है जिसकी रूह में सहगल ही सहगल है। देश में हजारों सैकड़ों हर साल सहगल की जयंती मनाते हैं। आज भी उसी तरह सहगल पर फिदा हैं। वे सौभाग्यशाली हैं जिनके पास सहगल की यादों का जखीरा है। हम लोग तो अलग तरह की दुनिया, तहजीब, वाकिफियत के साथ जीते रहे हैं। महापुरुष कब किसी कौम के होते हैं? कब किसी भूगोल के होते हैं? कब किसी खानदान के होते हैं? वे तो इतिहास के होते हैं। परंपराओं के होते हैं। संस्कृति के होते हैं। मनुष्यता की तहजीब के होते हैं। जब हवाएं लिरिकल होकर ध्वनि में बहती हैं। नदी की कलकल जब संगीतमय उछाह पैैदा करती है। बादल जब गरजते हुए धरती की प्यास बुझाने का ऐलान करते हैं। जब मंदिर में घटियों के साथ भजन की स्वर लहरियां सुनाई पड़ती हैं। जब तड़के मुल्ला मौलवी अल्लाह ओ अकबर की अजान देते हैं। जब कोई पादरी ईसा की शिक्षाओं में कुरबानी के जज़्बे का प्रवचन कर रहा होता है। जब कोई नास्तिक तक बियाबान में काल्पनिक खुदा से मर्मांतक होकर शिकायत करता है कि वह उसे नहीं मानता और अपने दम पर दुनिया में जीकर दिखाएगा। तब ऐसी हर फितरत में कुंदनलाल सहगल की याद आती है। 

ऐ विनोद! ऐ कमल! तुमने इतिहास रचा। तुमने जो किया। उसका सौंवा हिस्सा भी नहीं बता पाया। अपनी नाकामी का इकबाले जुर्म कर सकता हूं। सहगल! तुमने जीवन और मौत का समीकरण समझाते खुद को बरबाद किया। लेकिन अमर तो तुम ही हो। बाकी दुनिया तो आनी जानी है।(बाकी फिर कभी)…………….. अभी-अभी लेखक कमल बेरीवाला ने लिखा है। आपने अद्भुत लिखा है ।आपको अनेकोंनेक धन्यवाद। इतना सुंदर विवरण तो आज तक किसी ने नहीं लिखा।

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