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यूपी में ओबीसी सियासत, बीजेपी से लेकर सपा-बसपा तक ओबीसी वोटर्स को प्राप्त करने के लिए खास रणनीति 

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लखनऊः पांच राज्यों हो रहे विधानसभा चुनाव की वजह से लोकसभा चुनाव की सरगर्मियां राष्ट्रीय स्तर पर थोड़ी कमजोर हैं। हालांकि, राज्य स्तर पर गैर-चुनावी राज्यों में पार्टियों ने अपनी रणनीति पर काम करना शुरू कर दिया है। जाहिर है कि सबसे ज्यादा लोकसभा सीट वाले उत्तर प्रदेश पर हर पार्टी की नजर है। यहां भारतीय जनता पार्टी से लेकर सपा, कांग्रेस और बसपा भी अपना जनाधार मजबूत करने में पूरी ताकत के साथ जुट गई है। जाति, धर्म और वर्ग के आधार पर अपने-अपने वोटबैंक को दुरुस्त करने के लिए खास रणनीति बनाई जा रही है। इस मद्देनजर जो एक कम्युनिटी प्रदेश की हर राजनैतिक पार्टी की नजर में है, वो ओबीसी समुदाय है। प्रदेश में मतदाताओं का एक बड़ा हिस्सा ओबीसी से आता है और जिसकी ओर उनका झुकाव होता है, वही पार्टी यहां सबसे मजबूत स्थिति में मानी जाती है। ऐसे में इन्हें लुभाने के लिए हर पार्टी अपने-अपने स्तर पर अपनी-अपनी रणनीतियों के अनुसार कोशिश कर रही है।

भाजपा के लिए समर्थन बरकरार रखने की चुनौती

भारतीय जनता पार्टी को साल 2014, 2019 के लोकसभा चुनाव में और साल 2017 तथा 2022 के विधानसभा में अच्छी-खासी संख्या में ओबीसी वोटर्स का साथ मिला था। सपा की नीतियों से असंतुष्ट ओबीसी समुदाय के लोगों ने बीजेपी का ही दामन थामा था। बीजेपी अपने इस समर्थन को आने वाली लोकसभा चुनाव में बरकरार रखना चाहती है। इसके लिए तमाम तरह के जतन किए जा रहे हैं। इसे ही ध्यान में रखकर बीजेपी सरकार ने फ्री राशन की योजना को और आगे बढ़ा दिया है, जिसमें लाभार्थियों की काफी संख्या ओबीसी समुदाय से आती है। भारतीय जनता पार्टी ओबीसी वोटर्स में अपना जनाधार बढ़ाने के लिए यूपी में ओबीसी महाकुंभ जैसे आयोजन करने वाली है, जिसका मकसद गैर-यादव पिछड़ी जाति के लोगों को लामंबद करना है। इसके अलावा ओम प्रकाश राजभर को एनडीए में लाना बीजेपी की ओबीसी नीति का ही नतीजा है। संजय निषाद और अनुप्रिया पटेल पहले से ही बीजेपी के साथ हैं।

जाति जनगणना के मुद्दे के भरोसे है सपा

ओबीसी को समाजवादी पार्टी का कोर वोटर माना जाता है। इनमें भी यादव वोटर्स सपा के समर्पित समर्थक हैं। सत्ता पर काबिज बीजेपी ने अपनी योजनओं और राजनैतिक रणनीतियों की मदद से सपा के इस वोटबैंक में पर्याप्त सेंधमारी की है। बीजेपी की वजह से ही तमाम गैर-यादव ओबीसी कम्युनिटी सपा से दूर हो गए। ऐसे में सपा के सामने आने वाली लोकसभा चुनाव में इन वोटर्स को वापस पाने की चुनौती है। इसके लिए पार्टी की रणनीतियां भी साफ हैं। अखिलेश यादव ने पिछड़ा, दलित और अल्पसंख्यक (पीडीए) का नारा भी दिया है। सपा खासतौर पर जाति जनगणना पर जोर दे रही है और इसकी मांग करते हुए लगातार बीजेपी पर दबाव बना रही है। उसका यह दांव ओबीसी वोटर्स पर कितना सफल होगा, यह आने वाला समय बताएगा।

ओबीसी वोट पर मायावती का दावा

प्रदेश में 50 फीसदी वोट हिस्सेदारी रखने वाले ओबीसी समुदाय को लुभाने में मायावती भी पीछे नहीं हैं। साल 2007 में जब उनकी पार्टी ने पूर्ण बहुमत के साथ यूपी में सरकार बनाई थी, तब उन्हें अच्छी-खासी मात्रा में वोट मिले थे। इसके अलावा साल 2019 के लोकसभा चुनाव में भी ओबीसी वोटबैंक वाले सपा के समर्थन से उन्होंने कई सीटें हासिल की थीं। ऐसे में अब वह इस वोटबैंक पर अपना दावा मजबूत करने में लगातार ऐक्टिव हैं। उन्होंने सपा की नीयत पर सवाल उठाते हुए जाति जनगणना की मांग का समर्थन तो किया ही है। साथ ही संसद में पास महिला आरक्षण बिल में ओबीसी कोटे की मांग कर यह जताने की कोशिश की है कि उनकी पार्टी ही उत्तर प्रदेश में ओबीसी समुदाय की हितैषी है।

कांग्रेस की सेंधमारी

लोकसभा या विधानसभा चुनाव में यूपी में कांग्रेस की कोई मजबूत जमीन नहीं है लेकिन वह राजनैतिक रूप से इस महत्वपूर्ण प्रदेश में अपनी भूमिका बढ़ाने को लेकर लगातार कोशिश कर रही है। पार्टी का निशाना भा ओबीसी वोट बैंक ही है। यही कारण है कि राहुल गांधी समेत कांग्रेस के तमाम नेताओं ने जाति जनगणना का खुलेआम समर्थन किया है। पार्टी ने बीजेपी सरकार से मांग की है कि उसे जाति आधारित जनगणना कराना चाहिए। वैसे कांग्रेस इंडिया गठबंधन के जरिए सपा से जुड़ी है लेकिन अपने ही सहयोगी के वोटबैंक में सेंधमारी से का कोई मौका भी नहीं छोड़ रही है।

राघवेंद्र शुक्ला

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