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सामयिक…..हनुमान लला का प्रकटोत्सव:एक ख़्याल

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सुसंस्कृति परिहार
आज शनीचर पवनपुत्र के प्रकटोत्सव से धन्य हो गया।जाने कितने मंदिरों में हनुमान लला के दीदार करने लोग पहुंचे होंगे।इतनी बड़ी संख्या में पहली बार लोग पहुंच रहे हैं। मुझे ये सौभाग्य नहीं मिला।घर गृहस्थी का चक्कर बड़ा बेकार होता है सुबह से यह चिंता सवार हो जाती है आज बनेगा क्या यानि सब्जी वगैरह।रखी हो तो कोई बात नहीं ।ना हो तो दिमाग पर ज़ोर डालकर अभी परेशान होने जा रही थी कि कि हनुमान चालीसा की मधुर गूंज ने परेशानी से बचा लिया । किचिन में आमतौर पर रेडियो ही बजता है टी वी रख लूं तो जाने क्या क्या नुकसान हो जाए सो तल्लीन होकर हनुमान चालीसा में खो गई।भूत प्रेत निकट नहीं आवै  से बल मिला। हनुमान सी ताकत का संचार रग रग में फ़ैल गया। मैंने भी ठान लिया आज मुसलमानों की तरह पांच वक्त हनुमान चालीसा का पाठ करुंगी।क्योंकि वह नमाज के कलमें की तरह छोटा तो है नहीं कि सब का सब याद कर लूं। लेकिन नमाजियों की बराबरी कर नीचा दिखाने याद जरूर करके दिखाऊंगी। मैं अभी तल्लीन तो थी ही कि एक कर्क़श स्वर से सारा मज़ा किरकिरा गया।अरे सुनती हो –नाश्ते का क्या हुआ ?

मैंने कहा आज सब उपवास करेंगे।मेरी ब्लडप्रेशर दवा का क्या होगा ?वह सहजता से बोली धीर धरो हनुमान लला सब ठीक कर देंगे। मैंने माथे पर हाथ मारा और चल पड़ा बाजार नाश्ता करने ।आज तो खाना भी नहीं बनेगा सूर्यास्त के बाद पांचवां चालीसा पाठ के बाद ही व्रत टूटेगा। मुसलमानों से सच्ची सीख ले ली है घरनी ने।वे कैसे रोजा रखते  हैं गर्मियों में बिना पानी ,तुमसे एक दिन भी नहीं होगा । मुझे रामलला के बाद उनके भक्त हनुमान लला के ये तेवर पसंद नहीं आए। विशाल राममंदिर बनवा दिया अब हनुमानजी आराम से उनकी ख़ूब सेवा करें।जगह जगह मंदिरों में बैठने की ज़रुरत ही क्या है वे तो राम जी के सीने में रहते हैंकहते हैं कि हनुमानजी तो वीतरागी है।पहले तो स्त्रियों का उनके मंदिरों में प्रवेश बंद था ।पता नहीं किस कमबख्त ने इस परम्परा का नाश कर दिया।एक कर्मठ रामभक्त के काम में अड़चन डालना कतई न्यायोचित नहीं।पवन पुत्र को ध्वनिप्रदूषण के शोर में भी चैन कैसे मिल सकता है।वे तो राम की इच्छा से ही सर्वहारा का लाल झंडा फहराते पवन वेग से उन तक पहुंच जाते हैं।उनकी छलांग से भलीभांति परिचित होंगे ही वे लक्ष्मण की अचेतावस्था दूर करने पूरा पहाड़ संजीवनी का ले लाए थे।अब ये बात और है तमाम संजीवनी देवताओं ने अपने लिए रिजर्व कर ली और बाकी सब मर्त्य लोक के चक्कर में फंसे हुए हैं।
बहरहाल, हनुमान इन दिनों उन्मान पर हैं।जो चाहो मांग लो।रोजा सी ताकत ज़रुर मांग लेना।क्योंकि ये पढ़ें लिखे डाक्टर भी ऐसी दवाईयां देकर धर्म की हानि कर रहे हैं जो अनुचित है।इस विषय पर भी शोध होना चाहिए कहीं ये उनका वाम विचार तो नहीं। कम से कम सप्ताह में दो दिन मंगल और शनि हनुमानजी के प्रिय दिनों को व्रत का प्रावधान रखें। रविवार का अवकाश बंद करें। मंगल और शनिवार पर ध्यान दें । पूर्ण बंद रखने से खाद्य सामग्री वगैरह इन दिनों प्रतिबंधित रहेगी ।कोई खाता पीता नहीं मिलेगा जो कहीं मिल जाए उसे मुस्लिम आतंकी मान दंडित किया जाए।सख्ती जब तक नहीं तब तक धर्म का मखौल उड़ता रहेगा।

एक निगरानी टीम का भी गठन होना चाहिए।जो बराबर इन दो दिनों में ईमानदारी से काम को तरजीह दे।वरना कमीशन पर कई कमीने लोग धर्म की धज़्जियां उड़ा देते हैं।इससे पांच किलो बंटने वाले राशन का बोझ तो हल्का होगा ही साथ ही मोटापा जिसके कारण ब्लडप्रेशर, मधुमेह,अस्थमा और अस्थिरोग बढ़ रहे हैं वे स्वाभाविक तौर पर नियंत्रित होंगे।हनुमंत आपको बल,बुद्धि,विद्या तो देंगे ही आपके तमाम क्लेश विकारों से भी मुक्त कर देंगे—
श्रीगुरू चरन सरोज रज निज मन मुकुरू सुधारि। बरनउँ रघुबर बिमल जसु दो दायकु फल चारि।। बुद्धिहीन तुन जानिके, सुमिरौं पवन-कुमार। बल बुधि बिद्या देहु मोहिं, हरहु कलेस बिकार।।
इधर राम जन्मभूमि तलाश लेने के बाद हनुमान जन्मभूमि पर नया विवाद कर्नाटक और आंध्र प्रदेश के बीच उठ खड़ा हुआ । तिरुमला की आंजनेय पहाड़ी को ज़्यादातर लोग हनुमान का जन्मस्थल मान रहे हैं।कर्नाटक वाले राम पथ के आधार पर उनका जन्मस्थल यहां मान रहे हैं।वे कहते हैं राम तिरुमला गए ही नहीं। बलिहारी पवनपुत्र की। अयोध्या जैसा मामला लंबा नहीं खींचना।जन्म स्थल जब तय हो जाए तब तक के लिए धन एकत्रित करना शुरू कर दीजिए ताकि दुनिया का भव्य मंदिर बन सके वैसे हनुमानजी जी की पर्सनालिटी का कोई सानी नहीं। जय बजरंगबली।

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