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*बेशक स्त्रियां बातूनी और नौटंकीबाज होती हैं मगर…!*

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        ~ सोनी तिवारी (वाराणसी)

स्त्रियां बाथरूम मे जाकर कपड़े भिगोती हैं, बच्चों और पति की शर्ट की कॉलर घिसती हैं, बाथरूम का फर्श धोती हैं ताकि चिकना न रहे. फिर बाल्टी और मग भी मांजती हैं. तब जाकर नहाती हैं.

और तुम कहते हो कि स्त्रियां नहाने में कितनी देर लगातीं हैं?

स्त्रियां किचन में जाकर सब्जियों को साफ करती हैं, कभी मसाले निकालती हैं। बार बार अपने हाथों को धोती हैं, आटा मलती हैं, बर्तनों को कपड़े से पोंछती हैं। कभी दही जमाती घी बनाती हैं.

और तुम कहते हो खाना में कितनी देर लगाती है?

स्त्रियां बाजार जाती हैं। एक-एक सामान को जाँचती-परखती हैं, मोलभाव करती हैं. अच्छी सब्जियों फलों को छांटटती हैं, पैसे बचाने के चक्कर में पैदल भी  चल देती हैं. भीड में दुकान को तलाशती हैं।

और तुम कहते हो कि इतनी देर तक बाजार मेँ क्या कर रही थी?

स्त्रियां बच्चों और पति के जाने के बाद चादर की सलवटें सुधारती हैं, सोफे के कुशन को ठीक करती हैं, सब्जियां फ्रीज में रखती हैं, कपड़े प्रेस करती हैं, राशन जमाती हैं, पौधों में पानी डालती हैं, कमरे साफ करती हैं, बर्तन सामान जमाती हैं.

और तुम कहते हो कि दिनभर से क्या कर रही थी?

स्त्रियां कही जाने के लिए तैयार होते समय कपडों को उठाकर लाती हैं, दूध- खाना फ्रिज में रखती हैं, बच्चों को हिदायते देती हैं, नल चेक करती हैं, फिर खुद को खूबसूरत भी बनाती हैं ताकि तुमको उनका शरीर अच्छा लगे.

 और तुम कहते हो कितनी देर में तैयार होती हो?

स्त्रियां बच्चों की पढ़ाई मेँ डिस्कस करती हैं, उनसे खाना पूछती हैं,घर का हिसाब रखती हैं, रिश्ते-नातों की हालख़बर ऱखती हैं,फीस बिल याद दिलाती हैं.

और तुम कह देते हो कि कितना बोलती है?

स्त्रियां दिनभर काम करके थोड़ा दर्द तुमसे बांट लेती हैं, मायके की कभी याद आने पर दुखी होती हैं, बच्चों के नंबर कम आने पर परेशान होती हैं, थोड़ा-से आंसू अपने आप आ जाते हैं. मायके में ससुराल की इज़्ज़त, ससुराल में मायके की बात को रखने के लिए कुछ बातें करती हैं.

और तुम कहते हो की स्त्रियां कितनी नाटकबाज होती है?

   पर स्त्रियां फिर भी, तुमसे ही सबसे ज्यादा प्यार करती हैं.

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