बच्चा प्रसाद सिंह
पिछले किसान-उभार के बाद देश में एक बार फिर एक जबर्दस्त और बड़े किसान-उभार के संकेत बिलकुल स्पष्ट हो उठे हैं। नोएडा, खनौरी और सिंघु बॉर्डर पर किसान अपनी पूरी ताकत से जम गए हैं। उन्होंने बहदुराना प्रतिरोध के जरिए सरकार द्वारा की गयी पानी की बौछारों, उनकी लाठियों, गोलियों और गिरफ्तारियों का जबरदस्त मुकाबला किया है।
इस तरह उन्होंने सरकार के समूचे दमन अभियान को नाकाम बना दिया है। खनौरी बॉर्डर पर लोकप्रिय और सचमुच के बहादुर किसान नेता सरदार जगजीत सिंह दल्लेवाल जी सरकार की वादाखिलाफी और किसानों की लंबित मांगों को पूरा करने की मांग को पूरा करने के लिए आमरण अनशन पर बैठे हुए हैं और उनके आमरण अनशन का आज 46वां दिन है।
कल उन्होंने देश के किसानों और समूचे देश के नाम एक मार्मिक अपील की है। किसानों और समूची अवाम के हित में जीवन की आख़िरी सांस तक लड़ते जाने वाले उस किसान योद्धा ने अपनी शहादत के बाद भी आंदोलन को अंत तक चलाते रहने की अपील की है। इसी बीच खनौरी बॉर्डर और सिंघु बॉर्डर पर तीन किसान अपनी शहादत भी दे चुके है।
यह सारा घटनाक्रम इसका साफ़ सबूत है कि देश के लाखों किसान एक बार फिर कॉरपोरेट हितों की पक्षधर इस फासिस्ट सरकार के खिलाफ एक करो-मरो के संघर्ष में उतरने को कमर कस चुके हैं। पिछले किसान उभार से इस बार का यह भावी उभार इस मायने में अलग और विशिष्ट है कि यह मात्र किसानों का उभार नहीं रह कर एक विराट जनउभार का रूप लेने जा रहा है।
कारण यह कि इस बार दस केंद्रीय ट्रेड यूनियनों में शामिल श्रमिकों की ताकत भी इनसे जुड़ गयी है। पिछले कई देशव्यापी संघर्षों और अभियानों में इनकी संयुक्त पहलकदमियों ने जन गोलबंदियो और जनभागीदारी की बेहतरीन मिसालें पेश की हैं।
इन किसानों और मजदूरों के संयुक्त संघर्षों के पक्ष में विभिन्न क्षेत्रों और इलाकों में छात्र-युवाओं और अन्यान्य शोषित-पीड़ित वर्गों एवं समुदायों की भी अच्छी-खासी शिरकत रही है। इस तरह साफ़ है कि आज का भारत इस कॉरपोरेट पक्षीय फासिस्ट हुकूमत के खिलाफ एक बड़े जनउभार के मुहाने पर खड़ा है।
आज किसानों के साथ-साथ देश की समूची अवाम ने इसी बीच साफ़-साफ़ देखा है और देख रही है कि मौजूदा फासीवादी सरकार कितनी बेशर्मी से किसानों, मजदूरों, छात्र-नौजवानों और सभी शोषित-पीड़ित वर्गों व समुदायों के हितों के खिलाफ देशी-विदेशी कॉरपोरेशनों के हितों की हिफाजत में उतर गयी है।
पिछली बार जब सरकार ने किसान विरोधी तीन कृषि कानूनों को वापस लिया था, तब उस समय सरकार द्वारा ही बनायी गयी कमेटी की सिफारिशों के आधार पर यह वादा किया गया था कि सरकार एमएसपी की गारंटी करने के लिए कानून बनाएगी।
उसके बाद वह आज तक तरह-तरह के बहानों के जरिए टालमटोल करती रही है और आज भी कर रही है। इतना ही नहीं उसने अपने ही वादे को तोड़कर बिजली के निजीकरण की और कदम बढ़ा दिए और बिजली की दरें भी बढ़ा दी। अभी जगह-जगह स्मार्ट मीटर बैठाए जाने लगे हैं।
इस बिजली के निजीकरण और स्मार्ट मीटर लगाने के खिलाफ पंजाब, हरियाणा, उत्तरप्रदेश के साथ-साथ बिहार, ओडिशा से लेकर दक्षिण भारत तक में किसान भारी तादाद में संघर्ष में उतर गए हैं।
मामला इतने तक रुका नहीं है। अभी सरकार हाल में ही राष्ट्रीय कृषि विपणन नीति, सरल भाषा में कहें तो राष्ट्रीय मंडी नीति का ड्राफ्ट लेकर आयी है। इसमें एमएसपी की कानूनी गारंटी का जिक्र तो नहीं ही है, उल्टे खेती-किसानी के बाद अब कृषि मार्केटिंग को भी पूरी तरह देशी-विदेशी कॉरपोरेटों के हवाले करने का पुख्ता इंतजाम कर दिया गया है।
स्वाभाविक रूप से किसानों ने और इनके एक प्रतिनिधि संगठन संयुक्त मोर्चा और अन्य किसान संगठनों ने भी इस नीति के खिलाफ अंत-अंत तक लड़ते जाने का मन बना लिया है।
उल्लेखनीय है कि इस प्रो-कॉरपोरेट फासिस्ट सरकार का हमला सिर्फ किसानों तक ही सीमित नहीं है। किसानों के अलावा इसने चार कोड बिल लाकर मजदूरों और राष्ट्रीय शिक्षा नीति लाकर छात्र-छात्राओं के हितों पर हमले तेज कर दिए हैं।
समग्रता में देखेंगे तो तरह-तरह के बिलों, कानूनों और नीतियों के जरिए ये सभी शोषित, पीड़ित वर्गों और समुदायों के हितों को, कहें तो समूची अवाम और देश के हितों को देशी-विदेशी कॉरपोरेशनों और वित्तपतियों के हवाले करने पर आमादा हैं।
उनके ये सारे कदम और प्रयास एक भावी जनउभार और जनविद्रोहों को आमंत्रण दे रहे हैं, भले ही इनका स्वरुप कभी देशव्यापी होगा तो कभी स्थानीय। ये परिस्थितियां सिर्फ किसानों मजदूरों को ही नहीं, छात्र-युवाओं, दलितों, आदिवासियों, अल्पसंख्यकों, महिलाओं समेत समूची अवाम को आंदोलनों और संघर्षों की राह पर उतार रही हैं। निस्संदेह जनसंघर्षों की ये जनधाराएं जल्दी ही जनसैलाब का रूप लेंगी।
इन संघर्षों के विकास-विस्तार के साथ-साथ इन्हें बेरहमी से कुचल डालने के लिए हुकूमत भी और ज्यादा हिंस्र और दमनात्मक स्वरुप अख्तियार करेगी। अभी ही उसके जहरीले पंजे हर जगह झपट्टा मारने लगे हैं।
इस सभी तरह सभी कथित लोकतांत्रिक स्पेस का पूरी तरह गला घोंट कर अपने पूरे लाव-लश्कर के साथ एक फासीवादी हुकूमत साम्प्रदायिकता और धर्मान्धता को हथियार बनाकर देश की खटने-कमाने वाली शोषित-उत्पीड़ित अवाम और अन्यान्य संघर्षशील शक्तियों पर टूट पड़ी है।
तो आज देश के करोड़ों किसान-मजदूरों ने देशी-विदेशी कॉरपोरेटों के हित साधने वाली इस जनविरोधी और अत्याचारी फासिस्ट हुकूमत के खिलाफ एक भीषण संघर्ष का मोर्चा खोल लिया है।
ये जुझारू शक्तियां आज हमारे देश का भविष्य तय करेंगी- इस जिम्मेवारीबोध के साथ इनके साथ खड़ा होना आज के वक्त का तकाजा है।
खनौरी बॉर्डर से आमरण अनशन के 45वें दिन सरदार जगजीत सिंह दल्लेवाल द्वारा इस आंदोलन को उनकी शहादत के बाद भी जारी रखने और उसका साथ देने की समूचे देश के नाम की गयी अपील पर अवश्य ही शिरकत की जानी चाहिए।