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एक बार हजारो भूखे किसान मजदुर गोदाम में भरे अन्न को लूटने के लिए निकल पड़े

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हरिशंकर परसाई

एक बार हजारो भूखे किसान मजदुर गोदाम में भरे अन्न को लूटने के लिए निकल पड़े. 

व्यवसायी हमारे पास आया. 

कहने लगा स्वामीजी, कुछ करिए. 

ये लोग तो मेरी सारी जमा-पूंजी लूट लेंगे. 

आप ही बचा सकते हैं. 

आप जो कहेंगे, सेवा करेंगे. 

बस बच्चा, हम उठे, हाथ में एक हड्डी ली और मंदिर के चबूतरे पर खड़े हो गए. 

जब वे हजारों भूखे गोदाम लूटने का नारा लगाते आए, 

तो मैंने उन्हें हड्डी दिखाई और जोर से कहा किसी ने भगवान के मंदिर को भ्रष्ट कर दिया. 

वह हड्डी किसी पापी ने मंदिर में डाल दी. 

विधर्मी हमारे मंदिर को अपवित्र करते हैं.

हमारे धर्म को नष्ट करते हैं. 

हमें शर्म आनी चाहिए. 

मैं इसी क्षण से यहां उपवास करता हूं. 

मेरा उपवास तभी टूटेगा, जब मंदिर की फिर से पुताई होगी और हवन करके उसे पुनः पवित्र किया जाएगा. 

बस बच्चा, वह जनता आपस में ही लड़ने लगी. 

मैंने उनका नारा बदल दिया. 

जब वे लड़ चुके, तब मैंने कहा- धन्य है इस देश की धर्मपरायण जनता! 

धन्य है अनाज के व्यापारी सेठ अमुकजी! उन्होंने मंदिर की शुद्धि का सारा खर्च देने को कहा है. 

बच्चा जिसका गोदाम लूटने वे भूखे जा रहे थे, उसकी जय बोलने लगे. 

बच्चा, यह है धर्म का प्रताप. 

अगर इस जनता को गोरक्षा-आंदोलन में न लगाएंगे तो यह बैंकों के राष्ट्रीयकरण का आंदोलन करेगी, 

तनख्वाह बढ़वाने का आंदोलन करेगी, मुनाफाखोरी के खिलाफ आंदोलन करेगी. उसे बीच में उलझाए रखना धर्म है, बच्चा.

प्रस्तुति – हरनामसिंह

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