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एक पृथ्वी सब मनुष्य… धर्म बदलने पर क़हर क्यों ?

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~ शशिभूषण

युगों युगों से धर्म-ईश्वर के बीच रहतेअब किसको संदेह है कि धर्म बदलना न बदलना धार्मिक और ईश्वर के बीच का निजी मसला है? धरम के नाम पर देशों में जनता कोदबा-डराकर क्यों रखा जाता है इतना? क्या बिगड़ जाएगा अगर बालिग धर्म या धर्म नहीं चुनने को स्वतंत्र होंगे? क्या औलाद नहीं होतीअगर धर्मों के बीच हुई शादी? 
जियो चाहे मरो एक धरम में रहो यह क्या है? ईश्वर अलग-अलग हैं धरम अलग-अलग हैं तो धर्म चुनने में क्या बुराई है? कौन सा गुनाह है? अड़चन आपत्ति क्या है? दूसरे धरम के इंसानों को नीच समझने उनसे युद्ध करने लगने उन्हें मार ही डालने से बड़ी वीरता चुपचाप मनपसंद धरम में चले जाना क्यों नहीं है? 
धरम में मिल जुल नहीं रहनासुख सम्मान बराबरी न्याय नहीं पाना लेकिन ख़बरदार धरम नहीं बदल सकते! मर्ज़ी से विवाह नहीं कर सकते धार्मिक जनता द्वारा चुनी हुई सरकार की शिकायत जनता से कर नहीं सकते अत्याचारियों को सज़ा नहीं दिला सकतेतो धरती-धर्म में जीकर कर क्या सकते हैं? करते क्या हैं? ठगी, लूट, जनसंहार भारी संख्या में रैली गमन और मतदान!सहते क्या हैं ? नाइंसाफी, अनसुनी हाहाकार इतना ही न? या और भी ज़्यादा?क्या यही है धर्म -राज? लोकतंत्र संविधान विकास? नया ज़माना? विश्व गांव? 
हमें हो क्या गया है?हाथ पांव बाँध किधर जाना है?सब भोगने के बावजूद धर्म जनता के लिए खुले क्यों नहीं हैं? ये बातें भी धर्मांतरण उत्प्रेरण की दोषी हैं? फिर इंसान करे तो करे क्या? बोले तो बोले क्या? धर्मों से करना क्या है हासिल? 
बेहतर हो कि अब किसी का धरम छीना न जाएकिसी पर धरम लादा न जाएमर्ज़ी से धार्मिक रहने दिया जाएएक पृथ्वी सब मनुष्य की बात चलेधर्मों को सबके लिए खोल दिया जाए पसन्द से आने-जाने दिया जाए धर्मों मेंधर्म में न रहने की भी आज़ादी दी जाएलेकिन समाज दल देश इंसानधरम के लिए आपस में लड़ें तो उन्हें कठोर सज़ा दी जाए। 

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