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*चरित्र सावित कर देता है, कौन कितने पानी मेँ*

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     ~ सोनी (वाराणसी)

       यदि हम अपनी भलमनसाहत बनाये रह सकें, तो समझना चाहिए कि हमारे पास वह मूलभूत सम्पदा विद्यमान है, जिसके बदले सब कुछ कमाया जा सकता है। प्रगति का तीन चौथाई आधार व्यक्ति की चरित्र निष्ठा पर अवलम्बित है।

       प्रमाणिक व्यक्ति ही किसी का विश्वास अर्जित कर सकते हैं। बिना भरोसे का आदमी दूसरों के सच्चे सहयोग से वंचित ही बना रहता है। जिस सहयोग के सदुपयोग की आशा न हो, उसे कौन किसी को देगा? कोई किसी को स्नेह, सहयोग, सद्भाव प्रदान करता है, तो उस आशा में उसका महत्व कृतज्ञतापूर्वक स्वीकार किया समयानुसार उसका प्रतिफल दिया जाएगा, पर यह सभी आशाएँ तब समाप्त हो जाती हैं, जब किसी के चरित्रहीन या अप्रमाणिक होने का पता चलता है।

       चरित्र हीनों को प्रकारान्तर से कृतघ्न एवं निर्लज्ज माना जाता है। जो मर्यादाओं का पालन नहीं करता, उसे समाज के प्रति विद्रोह करने वाला ही कहा जाएगा। नीति-नियमों का पालन न करना मनुष्यता से गिराना है। जो अपनी प्रामाणिकता गँवा चुका, उससे कोई क्या आशा रखेगा? उसके वचन का क्या भरोसा?

     जो एक जगह अनीति बरत रहा है, वह दूसरी जगह वैसा ही दुर्व्यवहार न करेगा, इसे कैसे स्वीकार किया जाए?

       एक जगह दुर्नीति का परिचय देने का अर्थ यह हुआ कि वह व्यक्ति कभी भी किसी के साथ भी अनीति बरत सकता है और किसी के साथ भी धोखेबाजी या विश्वासघात का कुकृत्य कर सकता है। इस आधार पर एक जगह से लाभ उठा लेने वाले अन्यत्र सभी जगह से सहयोग मिलने का द्वार बन्द कर लेते हैं।

       चरित्र एक बहुमूल्य रत्न है, जिसका मूल्य आज नहीं तो कल, इस दुकान पर न सही दूसरी दुकान पर मिलकर ही रहता है। क्रिया कुशल लोगों की सर्वत्र मांँग रहती है।

     प्रवीण और निष्णातों को उनकी योग्यता का बाजार मूल्य हाथों-हाथ मिल जाता है। आकर्षक व्यक्तित्व कितनों को ही लुभाता और सुहाता है। इतने पर भी चरित्र अपने स्थान पर चट्टान की तरह अटल है। उसका आदर मित्र ही नहीं, शत्रु भी करते हैं। जबकि चरित्रहीन का साथ अवसर आने पर उसके मित्र भी छोड़ देते हैं। 

      फॉक्स कहते थे- “चरित्र एक शक्ति एवं प्रतिभा है। उसका प्रभाव हर क्षेत्र में हर व्यक्ति पर पड़ता है। वह मित्र उत्पन्न करता है। सहायक खींच बुलाता है और सुरक्षा प्रदान करता है। इतना ही नहीं, वह प्रसन्नता और प्रगति का द्वार भी खोलता है। इसीलिए बहुत कुछ गँवाना पड़े, तो भी चरित्र नहीं गंँवाना चाहिए।”

       गँवा देने पर स्वास्थ्य, धन आदि तो फिर से भी उपार्जित किये जा सकते हैं, किन्तु चरित्र पर एक बार धब्बा लग जाने पर उस कालिख को फिर किसी प्रकार धोया नहीं जा सकता है।

      सुधरा हुआ व्यक्ति आत्मा और परमात्मा के क्षेत्र में क्षमा हो सकता है, पर जनसाधारण के स्मरण में तो एक बार बरती गई दुष्टता अमिट ही बनी रहती है और हर समय सन्देह बना रहता है, कि उसी की पुनरावृत्ति फिर से न होने लगे।

       वाणी से छलकने वाले उथलेपन में किसी के अनगढ़ व्यक्तित्व एवं ओछे स्वभाव का पता चलता है। चरित्र वस्तुतः मनुष्य के हर क्षेत्र को पूरी तरह आन्दोलित किये रहता है। बनावटी भलमनसाहत या ओढ़ी हुई नैतिकता से सच्चाई थोड़े ही समय छिपी रह सकती है।

    कुछ ही समय के सम्पर्क से लोगों के चरित्रगत सामान्य व्यवहार द्वारा यह प्रकट होने लगता है कि कौन कितने पानी में है? (चेतना विकास मिशन).

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