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भारत में लोकतंत्र को बचा सकता हैं स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव आयोग ही

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मुनेश त्यागी 

     चंडीगढ़ में मेयर के चुनाव में यह पूर्ण तरह से साबित हो गया है कि भारत में जनतंत्र को जिंदा रखने के लिए एक स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव का चुनाव आयोग का होना सबसे ज्यादा जरूरी है। यही बात भारत के सर्वोच्च न्यायालय ने चंडीगढ़ में मेयर के चुनाव में चुनाव अधिकारी की बेईमानी भरी हरकतों को देखकर कही है।

      सर्वोच्च न्यायालय ने अपने बहुत ही महत्वपूर्ण फैसले में कहा है कि चंडीगढ़ के मेयर चुनाव में लोकतंत्र की हत्या की गई है और हम इसे हम इसकी कतई भी इजाजत नहीं दे सकते। मुख्य न्यायाधीश ने स्पष्ट शब्दों में कहा है कि “चुनाव अधिकारी ने मत पत्रों को विकृत कर दिया है और उनमें छेड़छाड़ की है। यह लोकतंत्र का मजाक है और लोकतंत्र की हत्या है। ऐसे आदमी पर मुकदमा चलाया जाना चाहिए।”

     चंडीगढ़ मेयर के इस चुनाव अधिकारी ने कांग्रेस और आपके गठबंधन के आठ पार्षदों के आठ वोट अवैध घोषित कर दिए थे और भाजपा प्रत्याशी को विजेता घोषित कर दिया था। सर्वोच्च न्यायालय ने अपने आदेश में कहा है कि अफसर को मतपत्र में बदलाव करते देखा गया है। उसे यह बता दिया जाना चाहिए कि सुप्रीम कोर्ट इस मामले पर नजर रख रहा है। सुप्रीम कोर्ट ने चंडीगढ़ नगर निगम की बैठक को स्थापित कर दिया है और मत पत्रों व वीडियो ग्राफी को सुरक्षित रखने का भी निर्देश दिया है।

      चंडीगढ़ का मेयर का यह चुनाव साबित कर रहा है कि अगर चुनाव अधिकारी निष्पक्ष और स्वतंत्र नहीं है और वह बेईमान और पक्षपाती है तो वह किसी भी चुनाव को भली-भांति कंडक्ट नहीं कर सकता है और जहां चुनाव अधिकारी बेईमान और पक्षपाती हो जाए तो फिर वहां निष्पक्ष चुनाव हो ही नहीं सकता और फिर वहां जनतंत्र की सरेआम हत्या की जाती है।

     हमने अपने जीवन में कई बार देखा है कि जब-जब चुनाव अधिकारी निष्पक्ष और स्वतंत्र होता है तो वह अपने संगठन की भी हिफाजत करता है और लोकतंत्र की भावना को आगे बढ़ता है और बेईमान लोगों द्वारा बेईमानी पूर्ण तरीकों से चुनाव जीतने की लालसा पर रोक लगाता है। जब हम वकील बनकर अपनी बार में आए तो हमने देखा कि वहां के बार के चुनावों में धांधली की जाती है, बेईमानी की जाती है, बाहर के लोग और कालेजों के लड़के आकर वोट डालते हैं। 

     इस पर चुनाव अधिकारी कुछ नहीं कर पाता, पूरी बार हताश और निराश हो जाती है और इसके आगे यह भी देखा कि जब चुनाव अधिकारी बेईमान होता है तो वह मतगणना भी सही तरीके से नहीं करवाता  और मतगणना में भी बेईमानी करता है। हमने इस बेईमानीपूर्ण तरीके से चुनाव जीतने को लेकर अपने वकील साथियों से सलाह मशविरा किया और ऑल इंडिया लायर्स यूनियन मेरठ की एक इकाई गठित की और उसने मेरठ बार एसोसिएशन में स्वतंत्र और निष्पक्ष चुनाव कराने के लिए बीड़ा उठाया।

     इस मामले में बार एसोसिएशन के अधिकारियों से बातचीत की और उनसे बातचीत करने के बाद कचहरी के ईमानदार और निष्पक्ष वकीलों की एक टीम चुनी गई जिसमें से ईमानदार वकीलों को चुनाव अधिकारी बनाया गया और चुनाव कराने के लिए ईमानदार और निष्पक्ष वकीलों की एक टीम गठित की गई। वकीलों का फोटो सहित एक रजिस्टर तैयार कराया गया और उसके बाद रजिस्टर में लगे फोटो को देखकर ही किसी वकील मतदाता को वोट डालने की इजाजत दी गई। इसके बाद हम पिछले 30 सालों से देख रहे हैं कि एक निष्पक्ष और ईमानदार चुनाव कराने की टीम होने की वजह से, अब यहां पर कोई बेइमानी नहीं होती है, चुनाव पूर्ण तरीके से स्वतंत्र और निष्पक्ष कराए जाते हैं।

     हमने यह भी देखा है कि जब-जब चुनाव अधिकारी गड़बड़ करता है, बेईमानी करता है, तो वह चुनाव के प्रक्रिया को प्रभावित करता है और चुनाव को एक तमाशा बना देता है। इस प्रकार हमारे देश में होने वाले हर चुनावों पर भी यही बात लागू होती है। जहां-जहां, जब-जब भी चुनाव अधिकारी और चुनाव टीम स्वतंत्र, निष्पक्ष और ईमानदार होती है तो वहां पर चुनाव में कोई गड़बड़ी नहीं की जाती और चुनाव ईमानदारी पूर्ण तरीके से संपन्न कराए जाते हैं और इस प्रकार एक स्वस्थ लोकतंत्र को फूलन फैलने का मौका मिलता है।

      सुप्रीम कोर्ट ने सख्त रवैया अपना कर और न्याय पूर्ण फैसला देकर यह साबित कर दिया है कि बेईमान चुनाव अधिकारी पर सख्त कानूनी कार्रवाई करना जरूरी है, क्योंकि बेईमान चुनाव अधिकारी निष्पक्ष और स्वतंत्र चुनाव नहीं कर सकता। वह लोकतंत्र की हत्या कर देता है और लोकतंत्र का एक मजाक बना देता है जिससे लोकतंत्र किसी भी दशा में फूल फल नहीं सकता, पनप नहीं सकता। भारत के सर्वोच्च न्यायालय के मुख्य न्यायाधीश के पिछले एक साल का यह सर्वोत्तम फैसला है जिसकी पूरे समाज में प्रशंसा हो रही है और अब एक बार फिर लोग उनकी तरफ आशा भरी नजरों से देखने लगे हैं। हमारा पूरी तरह से मानना है कि सर्वोच्च न्यायालय का यह फैसला भारत की चुनाव प्रक्रिया में निष्पक्षता और स्वतंत्रता को और जोरदार तरीके से कायम करेगा और चुनाव आयोग के लोग चुनावों में अब गड़बड़ी करने से डरेंगे।

      चंडीगढ़ के मेयर के चुनाव यह भी साबित कर रहे हैं कि भारत के मुख्य चुनाव अधिकारी पर निष्पक्षता और स्वतंत्रता को बरकरार रखने के लिए जो बात की जा रही है, वह बिल्कुल सही है क्योंकि यदि किसी संस्था या देश का चुनाव अधिकारी स्वतंत्र, निष्पक्ष और ईमानदार नहीं है, तो वह निष्पक्ष चुनाव नहीं कर सकता। वह जनतंत्र को फूलन फैलने से रोकता है और किसी भी शासन व्यवस्था में बेईमान लोगों को सत्ता में आने का अवसर प्रदान करता है।

     इस सारे मामले में चंडीगढ़ प्रशासन का और भारत की केंद्र सरकार का रवैया बिल्कुल असंतुष्ट, असंतोषजनक और ना काबिले तारीफ है क्योंकि शासक पार्टी और शासक दल के किसी भी नेता ने चंडीगढ़ मेयर के चुनाव में इस बेईमान चुनाव अधिकारी की कोई आलोचना नहीं की है, उसको पद से हटाने की बात नहीं की है, उसके खिलाफ कोई कानूनी एक्शन लेने की बात नहीं की है, बल्कि वह इस अति गंभीर मामले की अनदेखी ही कर रही है और इस सारे मामले में उसने बिल्कुल चुप्पी साथ रखी है, जो भारतीय जनतंत्र की हिफाजत के हिसाब से एकदम अनुचित और अवांछित है।

      इस प्रकार यह सबसे ज्यादा जरूरी हो गया है कि आज के समय में पंचायत से लेकर संसद के चुनाव निष्पक्ष और ईमानदारी पूर्ण तरीके से करने के लिए एक निष्पक्ष, स्वतंत्र और ईमानदार चुनाव आयोग का होना बहुत जरूरी है। ऐसा चुनाव आयोग ही भारत में जनतंत्र पर हो रहे हमलों से उसकी रक्षा कर सकता है और सुप्रीम कोर्ट ने अपने इस महत्वपूर्ण फैसले से इस बात को बल दिया है कि बेईमान चुनाव अधिकारी के खिलाफ सख्त से सख्त कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए अन्यथा वह लोकतंत्र की हत्या करेगा और लोकतंत्र को एक मजाक बना देगा।

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