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समाजवादी रीति, नीतियां और सोच ही भ्रष्टाचार से मुक्ति दिला सकती हैं

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मुनेश त्यागी 

       आज भारत में भ्रष्टाचार अपने चरम पर है। भ्रष्टाचार ने शासन-प्रशासन के सब अंगों को लील लिया है। सरकार का कोई भी विभाग जैसे तहसील, अस्पताल, पीडब्ल्यूडी, नगरनिगम, बिजली विभाग, पुलिस विभाग, अदालतें, सैन्य विभाग, श्रम विभाग, भविष्य निधि विभाग और पूरी पूंजीवादी व्यवस्था भ्रष्टाचार से अछूते नहीं हैं। ये सब के सब भ्रष्टाचार के गर्त में डूब गए हैं।

       जब हम बच्चे थे तो समाज में भ्रष्टाचारी लोगों को पसंद नहीं किया जाता था। सामाजिक सोच में आजादी के आंदोलन का प्रभाव था। समाज में आजादी की विरासत और इमानदारी मौजूद थीं। अधिकांश लोग यही सपना देखते थे कि हमारे बच्चे आगे चलकर इमानदार बनेंगे, वे भ्रष्टाचार नहीं करेंगे। यही शिक्षा और सोच वे अपने बच्चों को देते थे और ज्यादातर मां बाप अपने बच्चों से यही उम्मीद करते थे।

      मगर धीरे-धीरे यह विरासत और विचार पीछे छूट गये। लोग “ऊपरी आमदनी” का, रिश्वत का समर्थन करने लगे और इस प्रकार भ्रष्टाचार ने धीरे-धीरे विकराल रूप धारण कर लिया। हालांकि भारतीय समाज में भ्रष्टाचार को खत्म करने के लिए भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम भी बनाए गए। इन अधिनियमों के बाद भी भ्रष्टाचार का खात्मा नहीं हुआ और यह दिन रात द्रुतगति से बढ़ता ही चला गया। 

       जब हम भ्रष्टाचार के इतिहास पर नजर डालते हैं तो हम देखते हैं कि भ्रष्टाचार हमारे समाज में, हमारे रीति-रिवाजों में, हमारे अंधविश्वासों में, हमारी मान्यताओं में मौजूद था। उसे कभी खत्म करने की सही कोशिश नहीं की गई। वह धीरे-धीरे हमारे दिलों दिमाग में रचा बसा ही रहा। उसके कभी आमूलचूल खात्मे की कोशिश नहीं की गई।

      भारत में सामंतवाद को और उसकी भ्रष्टाचारी नीतियों और सोच को खत्म नहीं किया गया और पूंजीवादी ताकतों ने उसके साथ समझौता कर लिया। धीरे-धीरे भ्रष्टाचार का वृक्ष बढ़ता चला गया, इसकी शाखाएं, उपशाखाएं बढ़ती चली गई और आज इसने हमारे देश के, हमारे समाज के, अधिकांश लोगों के मन के, हर कोने को प्रदूषित कर दिया है।

      सुप्रीम कोर्ट ने इन्हीं समस्याओं को लेकर अभी हाल में, भ्रष्टाचार के उपर कहा है कि भ्रष्टाचार को किसी भी कीमत पर बर्दाश्त नहीं किया जाना। भ्रष्टाचारी को पकड़ने के लिए किसी पूर्व अनुमति की जरूरत नहीं है और भ्रष्टाचार को मजबूत दिलों दिमाग से और सख्त तरीके से, खत्म करने की और रोकने की कोशिश होनी चाहिए।

      सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि भ्रष्टाचार किसी भी आदमी का अधिकार नहीं है। वह अपने भ्रष्टाचार को पकड़े जाने के लिए किसी स्वतंत्रता की मांग नहीं कर सकता है। सर्वोच्च न्यायालय का कहना है कि भ्रष्टाचार हमारे समाज में एक बहुत बड़ी चुनौती और थ्रेट बन गया है और यह हमारे राजकाज के लिए और समाज के लिए, एक बहुत बड़ी चुनौती और धब्बा बन गया है।

     भ्रष्टाचार जनता के धन को गटक जाता है। शासन प्रशासन की नीतियों को रौंद देता है। भ्रष्टाचार की वजह से सामाजिक कल्याण की नीतियों को सबसे ज्यादा नुकसान होता है, जिसका लाभ आम जनता को और पीड़ित जनता को नहीं मिल पाता और इस प्रकार भ्रष्टाचारी तोर तरीके अपनाकर भ्रष्टाचारी, अपने भ्रष्टाचार के बल पर समाज में आगे बढ़ते चले जाते हैं और जरूरतमंदों के लिए आबंटित धन और संसाधनों को गटक जाते हैं और जनता ठगी सी रह जाती है।

     भारत को आजाद हुए 75 साल से ज्यादा हो गए हैं, मगर भारत में भ्रष्टाचार मुक्त शासन प्रशासन कहीं देखने में नहीं आ रहा है। आज हम देख रहे हैं कि शासन प्रशासन के अधिकांश विभाग भ्रष्टाचार की गंगोत्री में डुबकी लगा रहे हैं। भ्रष्टाचार इन सब विभागों में रच बस गया है। अब यहां जनता की, किसानों की, मजदूरों की, गरीबों की, कोई सुनवाई नहीं होती है। उन सबको जमकर लूटा जा रहा है और वे सब मजबूर होकर भी इन भ्रष्टाचारियों की कहीं शिकायत नहीं कर पाते, क्योंकि भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कहीं भी कोई प्रभावी कानूनी कार्यवाही करने को तैयार नहीं है।

    भ्रष्टाचार की इस सर्वव्यापी भयावहता और रुग्णता से निपटने के लिए, अब जनता के सामने एक ही रास्ता है कि वह अपने सशक्त संगठनों द्वारा, अपने प्रतिनिधियों द्वारा भ्रष्टाचार पर बड़े पैमाने पर विचार विमर्श करे, भ्रष्टाचार के समस्त कारणों को ढूंढें और भ्रष्टाचार का खात्मा करने के लिए सामंती, पूंजीवादी और सांप्रदायिक तत्वों के गठजोड़ को नेशनाबूद करने के आंदोलन की शुरुआत करे और समाजवादी व्यवस्था कायम करने का अभियान शुरू करें और पूरी जनता जनता को, किसानों मजदूरों को, जनता के सब तबको को इस महाअभियान में शामिल करे।

     समाजवादी व्यवस्था में पूरा समाज पूरे समाज के कल्याण के लिए काम करता है और आदमी समाज के कल्याण का काम करता है उत्पादन, वितरण और विनियमित तमाम संसाधनों पर समाज का कब्जा हो जाता है। समाज के हर एक आदमी को अनिवार्य रोटी कपड़ा मकान शिक्षा स्वास्थ्य और रोजगार का इंतजाम कर दिया जाता है। शोषण, जुल्म, अन्याय, बेईमानी और भ्रष्टाचार के तमाम रास्ते बंद कर दिए जाते हैं । समाज में एक नई मानव चेतना का निर्माण शुरू हो जाता है जिसमें आदमी आदमी से प्यार करने लगता है, समाज के सारे लोग एक दूसरे को अपना भाई बहन और साथी समझने लगते हैं, समाज में साथीपन और आपसी भाईचारे और सहयोग की भावना पैदा हो जाती है। आदमी पूरे समाज के बारे में सोचना लगता है और पूरे समाज के सभी लोगों का कल्याण करना उसका अंतिम लक्ष्य बन जाता है।

     हमारा निश्चित मत है कि वर्तमान जनविरोधी और लुटेरी पूंजीवादी आदमखोर व्यवस्था भ्रष्टाचार के भंवर से बाहर नहीं निकल सकती। इसका खात्मा करने के लिए भ्रष्टाचार की समस्त परिस्थितियों को जड़ से उखाड़ कर फेंकना होगा। शोषण, जुल्म, अन्याय, भेदभाव और भ्रष्टाचार करने के समस्त कारणों को, समस्त सुरागों को और समस्त परिस्थितियों को, जड़ से उखाड़ कर फेंकना होगा और इसके स्थान पर सामंतवादरहित, पूंजीवादरहित और सांप्रदायिकतारहित वातावरण और शासन प्रशासन का निर्माण करना पड़ेगा और इसके स्थान पर समाजवादी नीतियों, कार्यक्रमों और रीतियों नीतियों को शुरू करना पड़ेगा जिसमें शोषण, जुर्म, अन्याय, भेदभाव और भ्रष्टाचार की कोई गुंजाइश नहीं होगी। वैज्ञानिक समाजवादी नीतियों को अपनाकर ही हम अपने देश में, समाज में, रीतियों नीतियों और व्यवहार और सोच में, सर्वत्र फैले भ्रष्टाचार से मुक्ति पा सकते हैं।

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