–सुसंस्कृति परिहार
सत्य और अहिंसा का पुजारी हमारा भारत देश पिछले दस वर्षों से किस रास्ते पर चल पड़ा है यह बहुत त्रासद है।देश की जो हालत इस वक्त है वह सभी जानते हैं।चंद अमीरों की खातिर देश के तमाम संस्थानों को बेचकर आम लोगों को असहाय बना दिया वहीं साहिब जी के गृहराज्य गुजरात से लुटेरे भारी भरकम धन लेकर लगातार भाग रहे हैं।गरीब निरंतर गरीब हो रहा है मंहगाई, भ्रष्टाचार और बेरोजगारी ने लोगों का जीना हराम कर दिया है।सनातन धर्म के वसुधैव कुटुम्बकम को छोड़कर देश में साम्प्रदायिक ताकतों को भड़काकर अल्पसंख्यकों के साथ तथा दलित और आदिवासी लोगों के साथ आज जो घृणित व्यवहार हो रहा है ऐसा तो अंग्रेजों और मुगलों के राज में भी नहीं देखा गया। आज तो शोषण के तमाम तरीके क्रूरतम और गुप्त हैं जिसे वह समझ भी नहीं पाते। सामाजिक सद्भावना का माहौल कुछ हद तक बनते बनते इन दस वर्षों में हम मनुवादी युग में पदार्पण कर चुके हैं।उनका अमृत काल हमारा विष काल बन चुका है। जिसमें स्त्रियों पिछड़ों, आदिवासियों और दलितों को पराधीन होना होगा गुलाम की तरह।
खैर देश जिस चिंताजनक हाल में है उसकी चर्चा का कोई ओर छोर नहीं । समता, समानता , न्याय और शांति के मूल विचारों पर आधारित हमारी विदेशनीति को पहली बार इस सरकार से गहरी ठोकर लगी है जब इज़राइल और फिलीस्तीन के ग़ाज़ा में मुक्ति सैनिकों की मुठभेड़ में पूरे ग़ाज़ा को तहस नहस कर दिया। अस्पतालों और बच्चों को भी नहीं बख्शा गया। भारत ने शनिवार को संयुक्त राष्ट्र महासभा (UNGA) में जॉर्डन द्वारा पेश किए गए मसौदा प्रस्ताव पर मतदान करने से परहेज किया। इसमें इजरायल-हमास युद्ध को मानवीय सहायता के लिए तत्काल संघर्ष विराम का आह्वान किया गया था। भारत ने इसलिए इस मसौदे पर मतदान से परहेज किया क्योंकि इसमें आतंकवादी समूह हमास का कोई उल्लेख नहीं किया गया था। इस मसौदे में गाजा पट्टी में निर्बाध मानवीय सहायता का आह्वान किया गया था।यह देश के मानवतावादी रुख के खिलाफ है और देश शर्मसार है ।
विदित हो,इजरायल की सेना ने गाजा पट्टी पर अपने हवाई और जमीनी हमले तेज कर दिए हैं। इस बीच फलिस्तीनियों के प्रति समर्थन दिखाने के लिए शनिवार को यूरोप मध्य पूर्व और एशिया के शहरों में सैकड़ों-हजारों प्रदर्शनकारियों ने रैलियां निकालीं। वहीं लंदन में प्रधानमंत्री ऋषि सुनक की सरकार से युद्धविराम की मांग करने के लिए बड़ी भीड़ को राजधानी में मार्च करते हुए देखा गया।एक प्रदर्शनकारी केमिली रेवुएल्टा ने कहा, “इस समय महाशक्तियां पर्याप्त कार्य नहीं कर रही हैं। यही कारण है कि हम यहां हैं। हम युद्धविराम का आह्वान कर रहे हैं। हम फलिस्तीनी अधिकारों, अस्तित्व के अधिकार, जीने के अधिकार, मानवाधिकारों, हमारे सभी अधिकारों की मांग कर रहे हैं।” उन्होंने कहा, “यह मांग हमास को लेकर नहीं है। यह फलिस्तीनी जीवन की रक्षा के बारे में है।”
वाशिंगटन के रुख को दोहराते हुए सुनक की सरकार ने युद्धविराम का आह्वान करना बंद कर दिया है, और इसके बजाय गाजा में लोगों तक सहायता पहुंचाने के लिए मानवीय रुकावटों की वकालत की है।
भारत में मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी ने एक संयुक्त बयान में कहा कि गाजा में संघर्ष विराम के लिए संयुक्त राष्ट्र के प्रस्ताव पर मतदान से भारत का अनुपस्थित रहना ‘चौंकाने वाला’ है और यह दर्शाता है कि भारतीय विदेश नीति अब ‘अमेरिकी साम्राज्यवाद के अधीनस्थ सहयोगी होने’ के रूप में आकार ले रही है। कांग्रेस महासचिव प्रियंका गांधी ने कहा कि इससे भारत शर्मिंदा हुआ है।
एक समाचार एजेंसी के अनुसार संयुक्त राष्ट्र महासभा के युद्धविराम प्रस्ताव के पक्ष में 120 और विरोध में मात्र 14 वोट पड़े। भारत, कनाडा, जर्मनी और ब्रिटेन समेत 45 देशों ने इस मतदान प्रक्रिया से खुद को बाहर रखा। प्रस्ताव को सदन में यह कह कर पारित किया गया कि अरब देशों के प्रस्ताव बाध्यकारी नहीं है, लेकिन यह राजनीतिक महत्व रखता है।बड़े देशों की सहमति ना होने करके कारण युद्धविराम की घोषणा के बाद भी इज़राइली हमले तेजतर हैं उधर अरब के कई राष्ट्रों पर हमले बढ़े हैं ।और वे। जवाबी हमले के लिए तैयार हो रहे हैं। लेबनान तो लड़ाई में कूद ही चुका है।
इजरायल और हमास के मामले पर पूरी दुनिया दो भागों में तो पहले ही बंट चुकी थी लेकिन अब दो तरह की सोच वाले मुल्कों के बीच टकराव दिखाई दे रहा है, जो चिंता की बात है।इन हालातों को देखते हुए भारत विभाजन का अंग्रेजों का फार्मूला बार बार याद आता है जब पंडित जवाहरलाल नेहरू ने पाकिस्तान से अपने रिश्ते कायम रखे तथा अपने विवादों में किसी अन्य की मध्यस्थता से इंकार किया।भारत शांतिपूर्ण तरीके से अपने मसले हल करता रहा है। शास्त्री जी और इंदिरा गांधी ने उसकी परम्परा का निर्वहन किया वरना आज भारत भी फिलीपींस की तरह लड़ते लड़ते अपना अस्तित्व खो चुका होता।
महात्मा गांधी ने कहा था-‘फिलिस्तीन इस तरह अरबों का निवास स्थान है जिस तरह इंग्लैंड अंग्रेजों का, फ्रांस फ्रांसीसियों का । यह गलत मानवीय होगा कि यहूदियों को अरबों पर बैठा दिया जाए। निश्चय ही यह मानवता के खिलाफ अपराध होगा कि अरबों के गौरव को घटाकर फिलिस्तीन के किसी भाग या पूरे यहूदियों को उनके गृह राष्ट्र के रूप में दे दिया जाए ‘