Site icon अग्नि आलोक

विपक्ष लामबंद , विपक्ष लामबंद

Share

सनत जैन

शीतकालीन सत्र शुरू हुए 4 दिन का समय हो चुका है। विपक्ष ने अडानी समूह, संभल और मणिपुर पर काम रोको प्रस्ताव लाकर चर्चा कराने की मांग रखी है। चारों दिन दर्जनों की संख्या में काम रोको प्रस्ताव लोकसभा और राज्यसभा में विपक्षी सदस्यों द्वारा दोनों सदनों की आसंदी को देकर चर्चा कराने की मांग की गई है। दोंनो सदनों मैं विपक्ष की यह मांग सरकार और आसंदी द्वारा नहीं मानी गई। जिसके कारण बार-बार लोकसभा और राज्यसभा की कार्यवाही स्थगित करनी पड़ी। काम रोको प्रस्ताव के माध्यम से यदि चर्चा शुरू होती है तो ऐसी स्थिति में मतदान तक की स्थिति आ सकती है।

सरकार के लिए काम रोको प्रस्ताव के माध्यम से चर्चा कराने से बड़ा खतरा हो सकता है। निश्चित रूप से सरकार यह जोखिम लेना नहीं चाहेगी। गौतम अडानी और उनके भतीजे के खिलाफ अमेरिका की कोर्ट में चार्जशीट दायर हुई है उसके बाद सारी दुनिया के देशों में अडानी समूह को लेकर चर्चा हो रही है। कई देशों ने अडानी के साथ हुए समझौतों को रद्द कर दिया है। रेटिंग एजेंसी ने अडानी समूह की रेटिंग घटा दी है। शेयर बाजार में भारी गिरावट देखने को मिली। इसके चलते विपक्ष के हाथ में एक बड़ा मुद्दा लग गया है। इसी बीच संभल की जामा मस्जिद में जिस तरह का विवाद खड़ा किया गया। जिसके कारण वहां पर दंगा हो गया। पांच लोगों की मौत हो गई। यह मामला अभी शांत भी नहीं हुआ था कि अजमेर दरगाह शरीफ मामले में इसी तरह का विवाद सामने आ गया है। मणिपुर में 1 साल से अधिक का समय हो गया है

। वहां हो रही हिंसा में अभी तक 300 से अधिक लोग मारे जा चुके हैं। हजारों नागरिक शरणार्थी शिवरों में रह रहे हैं। बहुत बड़ी संख्या में सुरक्षा बल को तैनात करने के बाद भी मणिपुर में शांति स्थापित नहीं हो पा रही है। इतने लंबे समय के बाद भी केंद्र सरकार इन विवादों का कोई वास्तविक हल नहीं निकाल सकी है। इन सभी मामलों को लेकर विपक्ष के तेवर बहुत कड़े हैं। सरकार को लगता था, महाराष्ट्र और हरियाणा का चुनाव जीत जाने के बाद विपक्ष कोमा में चला जाएगा। लेकिन विपक्ष कोमा में जाने के स्थान पर आक्रामक रूप से सरकार पर हमला कर रहा है।

दोनों चुनाव में चुनाव आयोग की कार्यप्रणाली, पक्षपात और चुनाव में जो गड़बड़ी हुई है। ईवीएम मशीन, मतदान का परसेंटेज बार-बार बढ़ाने तथा 99 फ़ीसदी बैटरी चार्ज रहने का मामला अब तूल पकड़ गया है। पूरा विपक्ष एकजुट हो गया है। विपक्ष अब ईवीएम के स्थान पर वैलट से चुनाव कराने के लिए एकजुट हो गया है। इसके लिए आंदोलन भी शुरू किया जा रहा है। सबसे बड़े आश्चर्य की बात यह है, अडानी का नाम लेते ही लोकसभा और राज्यसभा की आसंदी और सरकार जिस तरह से भड़कती है।

भाजपा अडानी के बचाव में खड़ी हो जाती है। उसको लेकर सभी को आश्चर्य हो रहा है। पिछले 7 दशक में बड़े-बड़े घोटाले और घपलों को लेकर सदन में हमेशा चर्चा होती रही है। सदन के अंदर टाटा-बिरला की सरकार नहीं चलेगी, के नारे 70 और 80 के दशक में हमेशा सदन के अंदर लगते रहे हैं। जनसंघ और भाजपा इसी तरह के नारे सदन के अंदर लगाती रही है। सदन के अंदर सदस्यों को कभी बोलने से नहीं रोका गया। यदि सदस्यों द्वारा कुछ ऐसी बातें कही गई हैं। जो सदन के रिकॉर्ड में रखना सही नहीं होता था, उसे रिकॉर्ड से हटा दिया जाता था। उस समय सदस्य से बोलने के पहले सदन के अंदर सबूत नहीं मांगे गए।

पिछले कुछ वर्षों से जिस तरह के प्रतिबंध संसद सदस्यों पर लगाए जा रहे हैं वैसे प्रतिबंध तो, आपातकाल में भी नहीं लगाए गए थे। आपातकाल में समाचार पत्रों के लिए जो सेंसरशिप लागू की गई थी। उसमें भी इस तरह के प्रतिबंध नहीं थे, जैसा इन दोनों सदन के अंदर देखने को मिल रहे हैं। आसंदी विपक्ष के साथ जिस तरह का व्यवहार कर रही है, वह भी कल्पना से परे है। संसदीय परंपराओं में जब भी सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच में तनातनी देखने को मिलती थी, उस समय लोकसभा के अध्यक्ष और राज्यसभा के सभापति सत्तापक्ष और विपक्ष के सदस्यों को बुलाकर गतिरोध को दूर करने का प्रयास करते थे, लेकिन अब ऐसा लगता है, आसंदी सत्ता पक्ष के प्रतिनिधि के रूप में काम कर रही है।

जिसके कारण सत्ता पक्ष और विपक्ष के बीच में गतिरोध बढ़ता ही चला जा रहा है। चर्चाओं में यह भी कहा जा रहा है, सरकार चाहती है, सदन की कार्यवाही नहीं चले, इसी तरह का गतिरोध बना रहेगा। शीतकालीन सत्र हो हल्ले में निपट जाएगा। सरकार को विपक्ष के सवालों का जवाब भी नही देना पड़ेगा। जो जरूरी संसदीय कार्य हैं। आसन्दी की मदद से सरकार मंजूर करा लेती थी, वैसे ही इस बार भी करा लेगी। जिस तरह की स्थितियां देखने को मिल रही हैं। उसके बाद कयास लगाए जा रहे हैं कि शीतकालीन सत्र समय के पहले समाप्त हो सकता है।

Exit mobile version