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विवश नहीं मजबूत चाहिए विपक्ष?

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शशिकांत गुप्ते

अपना देश विश्व का सबसे बड़ा लोकतांत्रिक देश है। यह वाक्य जब भी पढ़ों या सुनो तो स्वयं के भारतीय होने पर गर्व होता है।
असहमति लोकतंत्र की बुनियाद है। इस सैद्धांतिक उक्ति का स्मरण करने मात्र से मन प्रसन्न हो जाता है।
असहमति से तात्पर्य लोकतंत्र में विपक्ष का मजबूत होना।
इनदिनों विश्व के सबसे बड़े लोकतांत्रिक देश की जनता के समक्ष एक प्रश्न प्रचारित किया गया है? विपक्ष कहाँ है,और विकल्प है कौन?
इन प्रश्नों के कारण आम जनता मानसिक रूप से असमजंस्यता की स्थिति में पहुँच गई है।
जनता की यह असमजंस्यता अहर्निश घूमता हुआ समय का चक्र दूर करेगा।
इनदिनों उदारवादी मानसिकता के साथ सबका,साथ, विकास और विश्वास से ओतप्रोत व्यवस्था, विपक्ष को विभिन्न स्वायत्त संस्थाओं के माध्यम से जाँच के घेरे में लेकर मजबूत कर रही है। विपक्ष इसे मजबूर करना कहता है।
इस मुद्दे पर कुछ व्यंग्यकारों कहना है कि,अव्वल तो यह कहना विपक्ष मजबूत होना चाहिए,यह कोरा औपचारिक वक्तव्य है। दूसरा अहम मुद्दा यह है कि, विपक्ष के मजबूत होने की बात ठीक वैसी ही जैसे समाचार पत्रों में अंधश्रद्धा के विरोध में प्रगतिशील लेखकों के बड़े बड़े लेख प्रकाशित होतें हैं,दूसरी ओर उन्ही समाचारपत्रों में अंधश्रद्धा को बढ़ावा देने वाले बाबाओं के विज्ञापनों को भरमार होती है।
इन बाबाओं के विज्ञापनों में एक बात तो बहुत ही गौर करने वाली होती है। हरएक बाबा का दावा होता है कि उसका कोई विकल्प नहीं है। सभी बाबा एक से बढ़कर एक होतें है।
आश्चर्य तो इस बात का होता है,इन बाबाओं के पास मानव की हर एक समस्याओं का इलाज होता है,इतनी अद्भुत शक्ति होने के बावजूद इन बाबाओं को विज्ञापनों का सहारा लेना पड़ता है।
इन बाबाओं के पास एक ओर
महत्वपूर्ण शक्ति होती है,भूगोल पर जितनी समस्याएं है,उनका हल तो बाबाओं के पास है ही,लेकिन आश्चर्य तो इस बात का है कि सौरमण्डल में विचरण कर रहें ग्रह नक्षत्रों को भी ये बाबा लोग धरा पर बैठ कर शांत कर देतें है।
व्यंग्यकारों की बात विस्तार से सुनने और समझने के बाद यह निष्कर्ष निकलता है।
प्रगतिशील बनने के लिए औपचारिकता का निर्वाह नहीं करना पड़ता है।
सर्वोदय प्रणेता विनोबा भावेजी ने कहा है कि कोई अपने माथे पर गुदवाले की मै शरीफ हूँ तो वह शरीफ नहीं होता है। लोगों ने कहना चाहिए कि फलाँ व्यक्ति शरीफ है।
एक व्यंग्यकार का कहना है कि इन बाबाओं से कहना चाहिए कि, आपकी पास जो अद्भत शक्ति है,उसका प्रयोग गंदा नाला साफ करने में लगा दो,मच्छर मारने की दवाइयां बनानी ही नहीं पड़ेगी?
इतना सब सुनने के बाद भी यही कहावत याद आती है ढाक के तीन पात
हम संस्कार,और संस्कृति आत्मसात करने वालें लोग हैं।
हम आस्थावान लोग है। हमारी आस्था यही भजन गाती है।
तेरे फूलों से भी प्यार, तेरे काँटों से भी प्यार,
तू जो भी देना चाहे देदे मेरे करतार,
हमको दोनो है पसंद, तेरी धूप और छाँव,
दाता किसी भी दिशा में ले चल ज़िंदगी की नाव,
चाहे हमे लगादे पार या डुबो दे मझदार,
हम बहुत ही है समझदार। हममें सब से बड़ा गुण है हम है आस्थावान।

चर्चा के अंत में एक व्यंग्यकार ने एक वैवहारिक प्रश्न उपस्थित किया, हम सभी भारतीय भाई भाई हैं तो स्वाभाविक है हमारे बेटे एक दूसरें के भतीजे हुए। तो भाई-भतीजा वाद कैसे होगा?
शशिकांत गुप्ते इंदौर

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