*(व्यंग्य : विष्णु नागर)*
अपने मोदी जी को लगने लगा है कि वे देवदूत हैं। इन्हें ऐसी अनुभूति होने लगी है कि इन्हें इनकी मां ने जन्म नहीं दिया है। इन्होंने बायोलाजिकली शरीर धारण किया ही नहीं है, बल्कि ये ‘प्रगट’ हुए हैं। ‘परमात्मा’ ने इन्हें ऊपर से टपकाया है। ये ‘प्रगट कृपाला, दीनदयाला’ हैं। इनका रूप ‘अद्भुत’ है। इनके लोचन ‘अभिराम’ हैं, इनके नयन ‘विशाल’ हैं। ये सब गुणों के आगर हैं, खान हैं। ये वे हैं, जिनकी स्तुति संत गाते हैं, ये जन अनुरागी हैं। बहुत सारे मुगालते इन्होंने अपने बारे में पाल रखे हैं, जबकि ‘प्रगट कृपाला’ राम के बारे में जितना पढ़ने को मिलता है, उससे लगता है कि उन्हें ऐसा कोई भ्रम नहीं था। उनका जन्म मां के पेट से हुआ था। वे कहीं से न टपके थे, न टपकाए गए थे। उनकी मां थी, पिता थे, भाई थे। सभी भाइयों की पत्नियां थीं। उन्होंने कभी इससे मना नहीं किया कि कौशल्या उनकी मां नहीं थी। उन्होंने बायोलॉजिकली उन्हें जन्म नहीं दिया था। लगता है वे इतने कृतघ्न नहीं थे। उच्च कोटि के ऐसे ‘महाप्रभु’ नहीं थे, जितने ये हैं! इनका तो जन्म ही नहीं हुआ है, प्रकटीकरण हुआ है। ये तो राम के भी ऊपर हैं। बेचारे व्यर्थ ही अहमदाबाद मां के ‘दर्शनों’ के लिए टीवी कैमरा ले जाते रहे, न्यूज बनवाते रहे, जबकि वह इनकी मां थी ही नहीं! फिलहाल इन्होंने गंगा को मां का दर्जा दे रखा है। कह रहे हैं, गंगा मां ने उन्हें गोद ले रखा है। वह भी कितने दिन तक इनकी मां रह पाती हैं, कौन जाने! कब कौन इनकी मां बन जाए और कब अपदस्थ कर दी जाए, कुछ पता नहीं!
पाखंडेश्वर जी कहते हैं, परमात्मा ने इन्हें विशेष उद्देश्य की पूर्ति के लिए भारत भू पर टपकाया है। जिसने इन्हें टपकाया है, वही इनको दिशा भी दे रहा है, सामर्थ्य भी दे रहा है, ऊर्जा भी दे रहा है, प्रेरणा भी दे रहा है और भी जाने क्या-क्या दे रहा है और ये लेते जा रहे हैं और ‘परमात्मा’ की इन पर ऐसी अटूट कृपा है कि ये 2047 में भारत को ‘विकसित’ बनाकर ही इस धरा धाम से विदा लेंगे, तो लेंगे! यानी उम्र के 97 वर्ष तक ये हमारी छाती पर मूंग, उड़द सब दलना चाहते हैं, जबकि हमारी छाती इतनी मजबूत नहीं है! जनता का मूड इन ‘अविनाशी’ जी को अभी ही विदा करने का है!
आप क्या समझते हैं, होश में रहकर कोई आदमी ऐसी बहकी-बहकी बातें कर सकता है? एक स्वस्थ दिमाग का आदमी ऐसा कर सकता है क्या? कर सकता है? नहीं कर सकता। लगता है इंडिया गठबंधन ने इन्हें गहरा मानसिक आघात पहुंचाया है। अभी ये इतने गहरे सदमे में हैं कि ये कम-से-कम चार बार ऐसी बेतुकी-हास्यापद बात कर चुके हैं। ये इनकी रणनीति नहीं, इनकी विकल मानसिक अवस्था का संकेत है। हर संवेदनशील आदमी को उनकी इस मानसिक अवस्था से सहानुभूति होना चाहिए। इस वक्त उनका मज़ाक नहीं उड़ाना चाहिए। यह नहीं कहना चाहिए कि क्या ‘परमात्मा’ को भारत भूमि पर एक अनोखा ये ही नमूना मिला था – भेजने के लिए? 2002 का यह ‘खलनायक’ उन्हें इतना पसंद आया? अडानी-अंबानी का ये सेवक इतना अच्छा है कि गंगा ने उसे गोद ले लिया? जिसने पूरे मीडिया को अपनी गोद में बैठा रखा है, उसे आपने गोद ले लिया गंगा जी? इतना बोझ सह लेंगी आप?
जब बिना भांग धतूरा खाए कोई ऐसी बात करने लग जाए, तो साफ है कि ऐसा आदमी ‘परमावस्था’ में पहुंच गया है। वह होश में नहीं रहा। ये उस अवस्था से भी आगे पहुंच गया है, जहां आदमी अकसर भांग-धतूरा खाकर पहुंचता है, मगर नशा उतरते ही फिर जमीन पर लौट भी आता है। ये चूंकि बिना खाये ही वहां पहुंच गए हैं, इसलिए ये अधिक खतरनाक हैं। हमें तो वैसे भी चुनाव के जरिए एक सांसद चाहिए, एक प्रधानमंत्री चाहिए।अडानी का सेवक, नफरत का मसीहा ‘देवदूत’ के रूप में नहीं चाहिए। हम ‘देवदूत’ चुनने के लिए वोट देते नहीं।देवदूत चुनना-न चुनना ‘परमात्मा’ का विषय है, हमारा नहीं!
वैसे अगर मोदी जी देवदूत हो चुके हैं, तो उन्हें वोट की जरूरत भी क्या? जिसे परमात्मा अपना वोट दे चुका है, उसे हम मनुष्यों के वोट की आवश्यकता क्यों हो? उसे प्रधानमंत्री बनने की भी जरूरत क्या? जिसे ईश्वर ने भेजा है, जनता भी उसे संसद में भेजे, यह मजबूरी क्यों?यह तो वैसे भी उस ‘ देवदूत’ के साथ ज्यादती है? वह देवदूत है, तो रहे, हम तो वैसे भी उसे अपना दूत चुन नहीं रहे हैं। हमने उसे ‘परमात्मा’ को पूरी तरह समर्पित कर दिया है, अब वे जानें और मोदी जी जानें!
मोदी जी को दिशा, शिक्षा, सामर्थ्य सब ‘परमात्मा’ दे रहा है, तो ये उसी का काम करें। डबल ड्यूटी न करें! ये उसके एजेंट हैं, तो उसका काम ईमानदारी से करे! हमें अपना सही या गलत एजेंट चुनने दे। पछताएंगे तो हम पछताएंगे, हमारी ओर से ‘परमात्मा’ पछताने नहीं आएंगे!
वैसे आज तक हमने कोई देवदूत कहीं देखा नहीं। कोई देवदूत चुनाव लड़ा है, यह सुना नहीं! उसे लोगों ने प्रधानमंत्री बनाया है, यह कहीं लिखा हुआ देखा नहीं! हम परंपरा पर चलनेवाले लोग हैं। हम परमात्मा के दूत को वोट देकर परमात्मा का काम मुश्किल नहीं बनाएंगे।हम डबल ड्यूटी के खिलाफ हैं!
ये बातें देवदूत जी को आसानी से ही क्या, मुश्किल से भी समझ में नहीं आएंगी! वोटर, अभी भी थोड़ा-सा मौका है। इन्हें इस बार इतना ज्यादा अच्छी तरह समझा दो कि ये अपना देवदूतपन भूल जाएं! फिर भले ये 97 क्या, डेढ़ सौ साल तक जिएं, मगर भारत का पीछा छोड़ें। उसे विकसित बनाने में दिलचस्पी लेना बंद करें। इसे जो बनाना होगा, हम सब मिलकर बनाएंगे।
ओके, परमात्मा के प्रतिनिधि जी, आपको हमारा नमस्कार।
*(व्यंग्यकार पत्रकार-साहित्यकार हैं। कई साहित्यिक पुरस्कारों से सम्मानित। स्वतंत्र लेखन में संलग्न। संपर्क : 098108 92198)*