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हमारी त्री- वृत्तियाँ और जीवन का त्रि- आयामी पथ

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 उपासना (लखनऊ)

      _मनुष्य की तीन वृत्तियों के अनुसार ही उनके कल्याण के लिए तीन प्रकार के मार्ग निर्धारित हैं. तीन वृत्तियाँ हैं : शारीरिक, मानसिक और बौद्धिक। पहले हम इन वृत्तियों के बारे में जानें और फिर मार्गों के बारे में :_

*(1) शारीरिक :*

   इस वृत्ति के लोग शरीर के तल पर अधिक स्थित रहते हैं। इन लोगों की अपने शरीर के प्रति अत्याधिक आसक्ति होती है और जिनकी आसक्ति शरीर के प्रति जितनी होती है उतनी ही संसार के लिए भी होती है।

     _यह लोग धन, संपत्ति, स्वास्थ्य, शारिरिक सुंदरता और अपने परिवार की वृद्धि के लिए ही जीते हैं, इनमें ईश्वर के प्रति या परमसत्य के प्रति विशेष प्यास अथवा तड़प नहीं होती। यह लोग ईश्वरवादी भी हो सकते हैं और अनीश्वरवादी भी हो सकते हैं.  वास्तव में तो इनके ईश्वरवादी या अनीश्वरवादी होने में कोई अंतर है ही नही क्योंकि यह लोग ईश्वर पर भी विश्वास रखते हैं तो केवल एक साधन के रूप में और ईश्वर की भी पूजा करते हैं तो केवल अपने निजी स्वार्थ के चलते, जिससे इनके धन, संपत्ति, परिवार और इनकी प्रतिष्ठा मे ही वृद्धि हो सके और जीवन में कई बार अधिक दुख आ जाने पर यह लोग अथवा अपने अहंकार को तुष्ट करने के लिए भी यह लोग अनीश्वरवादी हो जाते हैं पर थोड़े दुख और बढ़ते हैं तो दुबारा ईश्वर की पूजा करने लगते हैं वह भी केवल स्वार्थपूर्ति के लिए।_

   शारीरिक वृत्ति वाले लोग केवल भय अथवा लालच या भय, लालच दोनों के चलते ही ईश्वर की पूजा करते हैं। 

*(2) मानसिक :*

     इस वृत्ति के लोग मन के तल पर अधिक स्थित रहते हैं और बहुत भावुक प्रकृति के होते हैं। संसार के प्रति इनकी थोड़ी ही आसक्ति होती है। ऐसे लोग चाहकर भी अधिक समय के लिए अनीश्वरवादी नहीं हो पाते फिर चाहे जीवन में कितने ही दुख क्यों न आ जाएँ।

     ऐसे लोगों के लिए भावनाएँ बहुत बड़ी सत्ता होती हैं। मानसिक वृत्ति के लोग दिमाग से कम और दिल से ज्यादा काम लेते हैं अथवा इनके लिए तर्क से अधिक भावनाओं का ज्यादा महत्व रहता है। यह लोग ईश्वर को पाने के लिए तड़पते हैं इनमें गहरी प्यास होती है ईश्वर को जानने और उसे पाने की। पर ऐसे लोग अधिक प्रश्न नही करते, न ही यह लोग ज्यादा जांच परख करनेवाले होते हैं और यह लोग गहरी दार्शनिकता अथवा सिद्धांत को समझने मे भी रूचि नहीं रखते।

     यदि मानसिक वृत्ति वाले लोग गलत कट्टर अथवा विधर्मी मार्ग पर चल पड़ते हैं तो पूरी ताकत और सच्ची श्रद्धा से उस मार्ग का अनुसरण करते हैं और यदि यह लोग सही धार्मिक मार्ग पर चलते हैं तो पूरी ताकत और सच्ची श्रद्धा से उस मार्ग का अनुसरण करते हैं। 

*(3) बौद्धिक :*

      इस वृत्ति के लोग बुद्धि के तल पर अधिक स्थित रहते हैं। और वैचारिक अथवा दार्शनिक वृत्ति के होते हैं। संसार और भावनाओं के प्रति इनकी आसक्ति थोड़ी ही होती है। और ऐसे लोगों का ईश्वरवादी रह पाना बहुत कठिन होता है क्योंकी यह लोग दिल से कम और दिमाग से ज्यादा काम लेते हैं यानी तर्क को भावनाओं से भी ज्यादा महत्व देते हैं।

      ऐसे लोग अनीश्वरवादी होते हैं और यदि ये ईश्वरवादी भी हों तो मजबूरी मे ही ईश्वरवादी होते हैं केवल सहारे के लिए और यदि यह ईश्वर को माने भी तो इनका ईश्वर इनकी अपनी बुद्धि के अनुसार ही होता है। यह लोग बहुत प्रश्न खड़े करते हैं यहाँ तक की ईश्वर पर भी प्रश्नचिन्ह लगा देते हैं। बाल की खाल उतारने मे यह लोग यकीन रखते हैं। और गहरे दर्शन अथवा सिद्धांतों मे इनकी रूचि होती है।

      पर इनके भीतर परमसत्य को जानने की अथवा स्वयं को जानने की बड़ी गहरी प्यास और तड़प होती है, यह भले ही ईश्वर का नकार भी कर दें पर फिर भी इनके भीतर यह प्यास कूट कूट के भरी होती है, यह लोग सत्य के प्रेमी होते हैं। 

_तीनों वृत्तियों के अनुसार कल्याण के मार्ग :_

*(1) कर्मयोग :*

      यह कर्म मार्ग है। यह मार्ग शारीरिक वृत्ति वाले लोगों के लिए है। कर्मयोग के भी दो प्रकार हैं– अपरा कर्मयोग और परा कर्मयोग। शारीरिक वृत्ति वालों के लिए अपरा कर्म योग होता है क्योंकि इसी से वो प्रारंभ करते हैं, परा कर्मयोग तो निस्वार्थ मार्ग है। अपरा कर्म योग में कर्मकांड का महत्व अधिक है।

       इसलिए शारीरिक वृत्ति के लोगों को कर्मकांडों का पालन करने की सलाह दी जाती है। क्योंकि ऐसे लोगों का दिल केवल कर्मकांडों से ही संतुष्ट होता है। इसलिए इन्हें धार्मिक कर्मकांड करने को कहा जाता है और जो इन्हें सच्चे दिल और श्रद्धा से करने भी चाहिए तभी इनका कल्याण संभव है।

     ऐसे लोगों को माला दी जाती है और निश्चित जाप की संख्या में इन्हें थोड़ा समय निकाल के जप करना होता है, या किसी भजन-स्तोत्र अथवा ग्रंथ के थोड़े से अंश का पाठ करने को दिया जाता है अथवा मूर्ति पूजा से संबंधित कर्मकांड करने क दिए जाते हैं।

     ऐसे लोगों को निश्चित समय पर सत्संग सुनने, दान करने और जन सेवा करने पर बल दिया जाता है। और यह सारे काम किसी भय अथवा लालच के चलते ही यह लोग करते हैं इसलिए इन्हें भय और लालच, स्वर्ग-नर्क, पाप पुण्य, पुनर्जन्म का विधान भी बताया जाता है, जिससे इन्हें पता हो की यह कर्म करने से यह लाभ होगा और न करने से यह हानि उठानी पड़ेगी।

      इस वृत्ति वाले लोगों के लिए वैदिक ग्रंथ और इतिहास – पुराण, नीति ग्रंथ, भगवद् गीता आदि की शरण में रहके अपने धार्मिक कर्मकांड श्रद्धा से करने चाहिए, भजन पाठ और स्तोत्र पाठ या ग्रंथ का पाठ करना चाहिए.

      हो सके तो थोड़ा समझने का भी प्रयास करना चाहिए, हो सके तो मूर्ति पूजा और मंदिरों मे दर्शन करने जाना चाहिए और संत सभाएं ग्रहण करनी चाहिए। ईश्वर से अपनी सद्गति की प्रार्थना करनी चाहिए। 

*(2) भक्तियोग :*

यह भक्तिमार्ग है़। और यह मार्ग मानसिक वृत्ति के लोगों के लिए है। कर्म की भांति ही भक्ति के भी दो प्रकार हैं– अपरा भक्ति और परा भक्ति। मानसिक वृत्ति वाले अपरा भक्ति से ही शुरुआत करते हैं, जिसमें भक्त और भगवान में अंतर रहता है। इस योग में मानसिक वृत्ति वाले लोगों के लिए ईश्वर भक्ति पर आधारित सत्संगत करने को कहा जाता है , ईश्वर के नाम को प्रेम सहित निस्वार्थ होके जपने को कहा जाता है।

      भक्ति दर्शन की बारीकियाँ बताई जाती हैं और ईश्वर के गुण और लीलाओं की कथा तथा कीर्तन गाए जाते हैं, सत्संग और सुमिरन इनके लिए प्रधान होते हैं, मूर्ति पूजा मे कर्मकांड न के बराबर या बहुत कम होता है इसलिए प्रायः मन मे ही मूर्ति की धारणा और पूजा की जाती है, इन्हें ईश्वर के सभी रूपों से प्रेम करना चाहिए और उन सभी रूपों की कथा जाननी पढ़नी और सुननी चाहिए फिर जो ईश्वर रूप हृदय के सबसे निकट और प्रिय हो तो उसे ही अपना इष्ट समझना चाहिए, और उस इष्ट से अत्यंत प्रेम होना चाहिए और उस इष्ट को सर्वव्यापी समझना चाहिए और प्रेम इतना गहरा हो की हर जगह वही दिखाई दे। ईश्वर के विभिन्न नामों का कीर्तन करना चाहिए और उन नामों के तात्पर्य को समझना चाहिए और फिर जो नाम हृदय के सबसे निकट हो वही आपका निजनाम है, उसका दिन रात स्मरण करना चाहिए।

      मानसिक वृत्ति वाले लोगों को वैदिक संहिताएँ, अथर्वशिरस् उपनिषद् , नारद भक्ति सूत्र, शाण्डिल्य भक्ति सूत्र, भगवद् गीता, भक्तों की कथाएं, रामचरितमानस, श्री गुरु ग्रंथ साहिब जी(उसमें वर्णित सभी संतों जैसे कबीर जी, नानक जी, रविदास जी आदि की वाणी) और इतिहास – पुराणों की शरण लेनी चाहिए इन्हें अवश्य पढ़ना चाहिए और पूर्ण श्रद्धा सहित निस्वार्थ होके भक्ति और सत्संगत करनी चाहिए तभी इनका कल्याण होगा।

    ईश्वर से अपनी सद्गति की प्रार्थना करनी चाहिए। 

*(4) ज्ञानयोग :*

      यह ज्ञानमार्ग है। यह मार्ग बौद्धिक वृत्ति के लोगों के लिए है। कर्म और भक्ति की भांति ही ज्ञान के भी दो प्रकार है– अपरा ज्ञान और परा ज्ञान। बौद्धिक वृत्ति के लोग अपरा ज्ञान से ही प्रारंभ करते हैं, जिसमें यह वैदिक दर्शन के आधार पर परमसत्य और स्वयं को समझने का प्रयास करते हैं।

       इसमें इन लोगों को 6  दर्शनों(सांख्य, न्याय, वैशेषिक, योग, पूर्वमीमांसा और वेदान्त) को समझना होता है, वेदान्त दर्शन को भली प्रकार जान के ये लोग परमसत्य का रहस्य और “मैं कौन हूँ?” यह रहस्य समझ पाते हैं, इसके लिए इन्हें श्रवण, मनन और निधिध्यासन से गुज़रना होता है।

       वेदान्त दर्शन इन लोगों के लिए सबसे महत्वपूर्ण और सर्वश्रेष्ठ होता है। इसलिए इन लोगों को चाहिए की वेदान्ती आचार्यों और वेदान्ती शिष्यों कि संगति करें उनके प्रवचन सुनें और समझें, प्रश्न करें।

   उपनिषद् (जिनमें 11 मुख्य उपनिषद् और हो सके तो अमुख्य उपनिषद् भी पढ़ने चाहिए; 11 मुख्य उपनिषद्– माँडूक्य, मंडक, कठ, केन, बृहदारण्यक, छांदोग्य, ऐतरेय, तैत्तिरीय, प्रश्न, ईशावास्य और श्वेताश्वतर। अमुख्य उपनिषदों में कैवल्य, ब्रह्म, जाबाल, निरालंब, वज्रसूचिका, अथर्वशिरस् आदि हो सके तो पढ़ने चाहिए) , अष्टावक्र गीता, अवधूत गीता(१), ऋभुगीता, भगवद् गीता, ईश्वर गीता, योगशास्त्र, सांख्यशास्त्र, योगवासिष्ठ, आदि शंकराचार्य जी के प्रकरण ग्रंथ(पञ्चीकरण, तत्वबोध, आत्मबोध, अपरोक्षानुभूति, दृगदृश्यविवेक और विवेकचूड़ामणी) तथा शिवसूत्र और ब्रह्मसूत्र आदि ग्रंथो का अध्ययन करके और मनन करके निधिध्यासन करना चाहिए तभी इनका कल्याण संभव है। ईश्वर से अपनी सद्गति की प्रार्थना करनी चाहिए। 

       _यह तीनों ही योग(कर्म, भक्ति, ज्ञान) महत्वपूर्ण हैं परंतु लोगों की तीन वृत्ति होने के चलते कौन सा योग प्रधान होगा उसी के आधार पर यह कल्याण मार्ग हैं।_

*तीनों मार्गों से कैसा कल्याण का स्वरूप :*

        शारीरिक वृत्ति वाले लोग अपरा कर्म मार्ग पर चलके सुकर्म करने लगते हैं इससे न केवल उनका कल्याण होता है अपितु पूरे समाज का भी कल्याण होता है। यदि शारीरिक वृत्ति वाले लोग इस मार्ग का ईमानदारी और श्रद्धा से अनुसरण करते हैं तो ईश्वर उन्हें मानसिक अथवा बौद्धिक वृत्ति प्रदान करते हैं और उन्हें उच्च योगमार्ग में ले जाते हैं और फिर इनका भक्ति या ज्ञान मार्ग द्वारा इसी जन्म में जीवनमुक्त अद्वैत परम स्थिति को पाके कल्याण हो जाता है.

       यदि यह लोग किसी कारणवश इस जन्म में भक्ति या ज्ञान योग को प्राप्त न होने के कारण कल्याण न करा सके, कुछ त्रुटि रह गई तो मृत्यु पश्चात् इन्हें स्वर्गप्राप्ति होती है और स्वर्ग के बाद फिर मनुष्य जन्म मिलने पर यह लोग भक्ति या ज्ञान योग द्वारा अपना कल्याण कराते हैं। 

मानसिक वृत्ति वाले लोग यदि ईमानदारी से अपरा भक्ति मार्ग पर चलते हैं तो यह ईश्वर को प्रसन्न कर लेते हैं और अपनी चित्तशुद्धि करा लेते हैं, चित्तशुद्ध होने पर ईश्वर इनपर कृपा करके इनकी वृत्ति को ज्ञान की ओर ले जाता है और यह अपरा ज्ञान को प्राप्त कर लेते हैं और फिर अपरा ज्ञान के बल से यह परा भक्ति, परा ज्ञान और पराकर्मयोग को प्राप्त हो जाते हैं.

       जीवनमुक्त अद्वैत परमस्थिति को प्राप्त हो जाते हैं। मानसिक वृत्ति के लोगों के लिए भक्ति मार्ग पर स्वर्ग लाभ आदि वस्तुएं तुच्छ लगती हैं यह तो केवल ईश्वर के निस्वार्थ प्रेमी हैं और उसी में मिलना चाहते हैं। मानसिक वृत्ति वाला साधक यदि किसी कारणवश इस जन्म में कल्याण न करा सका, कुछ त्रुटि रह गई तो ईश्वर अगले जन्म मे उसे अवश्य तार देते हैं। 

बौद्धिक वृत्ति वाले लोग यदि ईमानदारी से अपरा ज्ञान के मार्ग पर चलें तो इनके अधिकतर सभी प्रश्नों के उत्तर इन्हें मिल जाते हैं यह परा ज्ञान को प्राप्त करते हैं तब इनकी सब शंकाओं का पूर्ण निवारण हो जाता है और यह प्रसन्नता और संतुष्टि को प्राप्त होते हैं और फिर अपरा भक्ति को सहज ही स्वीकार करके और उस पर चल कर तत्पश्चात् परा भक्ति और परा कर्मयोग को भी प्राप्त होते हैं फिर परा ज्ञान मे इनकी स्थिति और अधिक दृढ़ हो जाती है.

       ये जीवनमुक्त अद्वैत परमस्थिति को प्राप्त हो जाते हैं। बौद्धिक वृत्ति वाला साधक यदि किसी कारणवश इस जन्म में कल्याण न करा सका त्रुटि रह गई तो ईश्वर अगले जन्म मे उसे अवश्य तार देते हैं।

      _वर्तमान में अपनी वृत्ति को देख के अपने लिए अपना कल्याण मार्ग चुनना चाहिए।_

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