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लोग मर रहे हैं, पूनावाला परिवार लंदन में छुट्टियां मना रहा है

Adar Poonawalla, chief executive officer of Serum Institute of India Ltd., speaks during an interview in Pune, Maharashtra, India, on Wednesday, Sept. 16, 2015. Serum is in talks with private equity firms and sovereign funds about selling as much as a 10 percent stake. Asia's largest vaccine maker is seeking a valuation of as much as 800 billion rupees ($12 billion), Poonawalla said. Photographer: Dhiraj Singh/Bloomberg *** Local Caption *** Adar Poonawalla

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कोरोना संक्रमण : सीरम इंस्टीट्यूट के प्रमुख की नीयत पर उठने लगी संदेह की अंगुलियां

कोरोना से तबाह भारत की 130 करोड़ आबादी जान बचाने की जद्दोजहद में जुटी है। अब जबकि यह प्रमाणित हो चुका है कि कोरोना संक्रमण से बचाने का एकमात्र उपाय टीका है, तब इसे बनानेवाला परिवार लंदन में छुट्टियां मना रहा है। ऐसा दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र में हो रहा है कि जब लोगों को टीके की सबसे अधिक जरूरत है और उसके लिए वे कीमत चुकाने को तैयार हैं, तब एक परिवार पूरी व्यवस्था को अपनी मर्जी से चला रहा है। पूनावाला परिवार के तमाम सदस्य एक-एक कर लंदन चले गये हैं, जबकि उनकी कंपनी सीरम इंस्टीट्यूट पर देश के लोगों को टीके की आपूर्ति करने का जिम्मा है। यह भारत की उस कमजोरी को दिखाता है, जिसमें कोई भी व्यक्ति पूरी व्यवस्था को बंधक बना सकता है और अपनी मर्जी से काम कर सकता है। पूनावाला परिवार के इस आचरण पर तत्काल ध्यान देना जरूरी है, वरना स्थिति दूसरा रूप भी ले सकती है और तब भारत के सामने हाथ मलने के अलावा कोई विकल्प नहीं बचेगा। टीके के लिए देश में जारी हाहाकार और पूनावाला परिवार के आचरण पर आजाद सिपाही के टीकाकार राहुल सिंह की विशेष रिपोर्ट।

घटना बहुत पुरानी नहीं है। पीवी नरसिंह राव के कार्यकाल में एक बड़ा घोटाला हुआ था, जिसने भारतीय शेयर बाजार को बुरी तरह हिला दिया था। इस पूरे घोटाले का सूत्रधार हर्षद मेहता नामक एक शेयर कारोबारी था, जिसने बाद में सार्वजनिक रूप से कहा था कि उसने प्रधानमंत्री को एक करोड़ रुपये की घूस दी थी। उसने वह बैग भी दिखाया था, जिसमें घूस की रकम देश की सत्ता के केंद्र तक पहुंचायी गयी थी। बाद में हर्षद मेहता जेल चला गया और वहीं उसकी मौत हो गयी। लेकिन उस घोटाले के बारे में जानकारों ने कहा था कि किसी भी अदालत में हर्षद मेहता को दोषी नहीं ठहराया जा सकता था, क्योंकि उसने कुछ भी गलत नहीं किया था, बल्कि उसने कानूनों में बनाये गये छेदों का इस्तेमाल किया और इतने बड़े घोटाले का नायक बन गया।

हर्षद मेहता से जुड़ी इस घटना का जिक्र यहां इसलिए किया जा रहा है, क्योंकि आज भारत आपदा के जिस दौर से गुजर रहा है, जिसमें एक परिवार 130 करोड़ लोगों को मंझधार में छोड़ कर लंदन में अपनी छुट्टियां मना रहा है। यह आजाद सिपाही का आकलन नहीं है, बल्कि खुद सायरस पूनावाला का बयान है। वह भारत से अभी चार दिन पहले ही लंदन में छुट्टी बिता रहे अपने बेटे अदार पूनावाला और उनके परिवार के पास लंदन पहुंच गये हैं। उन्होंने लंदन पहुंच कर बयान दिया है कि उन्होंने देश नहीं छोड़ा है। पूनावाला परिवार उस सीरम इंस्टीट्यूट कंपनी का मालिक है, जो आॅक्सफोर्ड यूनिवर्सिटी और एस्ट्रा जेनेका द्वारा विकसित वैक्सीन कोवीशील्ड भारत में बना और बेच रही है। सायरस से पहले अदार पूनावाला, जो सीरम इंंस्टीट्यूट के सीइओ हैं, इस महीने की शुरूआत में लंदन चले गये थे। वहां जाकर उन्होंने बयान दिया कि देश के कई राज्यों के मुख्यमंत्री और नेता कोवीशील्ड को लेकर धमकी दे रहे हैं। उसके बाद उनका बयान आया कि वह बिजनेस बढ़ाने के सिलसिले में वहां गये हैं। वह लंदन में 2800 करोड़ रुपये की लागत से बिजनेस स्थापित करना चाहते हैं। मीडिया में यह खबर भी आयी कि वहां की सरकार से उनकी बातचीत फाइनल भी हो गयी है।

सीरम इंस्टीट्यूट को देश में कोरोना का टीका आपूर्ति करने का जिम्मा मिला हुआ है। केंद्र और राज्य सरकारों ने इसे आॅर्डर के साथ-साथ अग्रिम का भुगतान भी कर दिया है। जानकारी के अनुसार कंपनी को करीब 20 हजार करोड़ रुपये का भुगतान किया जा चुका है। कंपनी ने पहले कहा था कि वह मार्च से लगातार टीके की आपूर्ति करेगी और अपनी उत्पादन क्षमता को इतना बढ़ायेगी कि देश को जुलाई तक टीका लग जाये। पूनावाला के लंदन जाने के बाद उन्होंने यह भी बताना बंद कर दिया है कि आखिर टीके की आपूर्ति कब तक होगी। इतना ही नहीं, सीरम इंस्टीट्यूट ने राज्य सरकारों के पत्र का जवाब देना भी बंद कर दिया है। राज्य सरकारें कंपनी को बार-बार टीका आपूर्ति के लिए लिख रही हैं, लेकिन कंपनी की तरफ से यह आश्वस्त नहीं किया जा रहा है कि आखिर कब तक उनके टीके की आपूर्ति हो पायेगी।

वास्तव में यह पूरा प्रकरण भारत की कमजोर व्यवस्था को ही सामने लाता है। पूनावाला परिवार को पता है कि भारत की व्यवस्था उसका कुछ नहीं बिगाड़ सकती। इसलिए पहले उसने कोवीशील्ड की दो खुराकों के बीच 28 दिन का अंतर जरूरी बताया, फिर उसे बढ़ा कर 42 से 58 दिन किया गया और अब कहा जा रहा है कि यह अंतर 12 से 16 सप्ताह का होना चाहिए। अब यह समझ से परे है कि जब शुय में 28 दिन के बाद दूसरी डोज लेने की बात कंपनी की तरफ से बतायी गयी थी, तो अचानक यह अब 90 से 120 दिन कैसे हो गयी। जो भी व्यक्ति पहली डोज ले चुके हैं, उनके मन में तमाम तरह की भ्रांतियां घर कर रही हैं। कंपनी की तरफ से यह भी नहीं बताया जा रहा है कि उसने जो टीका दिया है, उसका असर कितने दिन तक रहेगा। क्या दो डोज के बाद भी टीका लेना पड़ेगा। और अगर हां, तो कितने दिन बाद यह प्रक्रिया शुरू होगी। इससे पहले टीके की कीमत पर भी पूनावाला ने खूब हंगामा किया। एक ही टीके की तीन कीमत तय कर उसने साफ कर दिया कि इस व्यवस्था को वह अपनी मर्जी के अनुसार आसानी से चला सकता है। केंद्र को टीका 150 रुपये में, राज्यों को 300 रुपये में और प्राइवेट अस्पतालों को 600 रुपये में। आखिर उस टीके का एमआरपी क्या है। केंद्र से लेकर राज्य सरकारें उसकी शर्तों के आगे झुक गयीं, क्योंकि देश को टीके की जरूरत थी। पूनावाला को न किसी अदालत ने पूछा कि एक ही टीके की तीन कीमत तय करने का औचित्य क्या है और न किसी सरकार ने। उसने कहा कि वह अपने उत्पादन का आधा हिस्सा केंद्र को देगा और बाकी से राज्यों और निजी अस्पतालों की जरूरत को पूरा करेगा। उसके इस फैसले पर किसी ने सवाल नहीं उठाया। अब पता चल रहा है कि वास्तव में सीरम इंस्टीट्यूट के कुल उत्पादन का 84 प्रतिशत हिस्सा पहले उन देशों को भेजा जायेगा, जहां से पूनावाला ने आॅर्डर लिया है या कच्चा माल लिया है। बाकी 16 प्रतिशत उत्पादन ही वह भारत में देगा।

पूनावाला का यह रवैया आपदा से घिरे भारत के मुंह पर एक तमाचा है। यदि सीरम इंस्टीट्यूट का यही रवैया रहा, तो इसके खतरनाक परिणाम भी हो सकते हैं। सीरम इंस्टीट्यूट और पूनावाला परिवार के खिलाफ बड़ी तेजी से देश के लोगों में एक माहौल बन रहा है, जिसके बवंडर में कई संस्थाएं आयेंगी। समय रहते इसे शांत करना जरूरी है। केंद्र सरकार उसकी सत्यता को जाचें। अगर कहीं कुछ गड़बड़ है, तो अभी भी समय है, दूसरी कंपनियों से टीका लिया जा सकता है। दूसरी कंपनियों को बढ़ावा दिया जा सकता है। उन्हीं कंपनियों का टीका लगवाया जाये, जो समय से आपूर्ति कर सकें।

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