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*लिबास बदलते हैं लोग किरदार नहीं*

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शशिकांत गुप्ते

आज सीतारामजी चालीस,पचास साठ के दशक में निर्मित फिल्मों का स्मरण कर रहें थे।
मैने कहा पचास और साठ के दशक में तो फिल्म उद्योग में देव,दिलीप और राज इन तीनों अभिनेताओं का ही वर्चस्व रहा है।
सीतारामजी ने कहा सामाजिक, राजनैतिक व्यापारिक,और सांस्कृतिक हर क्षेत्र में हमेशा दो या तीन लोगों का ही वर्चस्व रहता है।
मैने कहा अभिनेता राज कपूर को तो शो मेन (show man) कहा जाता था। इस शो मेन ने आवारा,श्री ४२०, मेरा नाम जोकर नामक फिल्में निर्मित की है,और फिल्मों में आवारा,श्री ४२० और जोकर का अभिनय भी किया है।
सीतारामजी ने कहा फिल्मों में सब संभव है। फिल्मों में अच्छा खासा मानधन प्राप्त कर अभिनेता बेरोजगार होने का अभिनय करता है।
फिल्मों में कुछ व्यापारिक संस्थानों के द्वार पर No vacancy का सूचना पट्ट टांग दिया जाता है। अभिनेता no vacancy का बोर्ड देखकर हताश,निराश होने का अभिनय करता है।
अभिनेता फिल्मों में भिखारी साधु
संत,योगी,डाकू,चोर,लुटेरा,तस्कर,
ठग,जेबकतरा आदि रोल हुबहू करता है।
अभिनेता और अभिनेत्री एक ही गाने के दृश्य को फिल्माते समय कईं बार ड्रेस बदलते हैं।
अभिनेता फिल्म निर्माता से ईमानदार होने का अभिनय करने के लिए भी मानधन लेता है।
ईमानदार होने के अभिनय के लिए,जो मानधन लेता है,वह धन कुछ श्वेत रंग और अधिक श्याम रंग में लेता है। ऐसा आरोप भी अभिनेता पर लगाता हैं।
मैने सीतारामजी से कहा आप तो वर्तमान राजनैतिक व्यवस्था पर हुबहू व्यंग्य कर रहें हैं।
सीतारामजी ने कहा अभिनेता शब्द में भी नेता शब्द समाहित है।
फिल्मों में भी प्रमाणिक व्यक्ति का मनोबल कमजोर करने के लिए हर संभव प्रयास किए जाते हैं।
यह फिल्म की कहानी लिखने वाले भारतीय लेखक की भारतीय मानसिकता का द्योतक है।
अपने देश में फिल्म की निर्मित भी बेशकीमती लागत से होती है।
फिल्म के विज्ञापन में भी बहुत खर्च होता है।
एक विचारक ने कहा है कि,फिल्म के प्रारंभ से अंत के पांच से दस मिनिट तक फिल्म में खलनायक ही छाया रहता है।
अंत के कुछ मिनिटों में अभिनेता करिश्माई तरीके से खलनायक का अंत करता है।
मनोविज्ञान के अनुसार दर्शकों पर हावी खलनायक ही रहता है।
इसीलिए कहा गया है कि, खेल,युद्ध,प्यार और राजनीति में सब जायज है।
हमारी आपसी चर्चा का अंत करते हुए सीतारामजी ने मुझे दो
अशआर सुनाए।
यह शेर शायर स्व.राहत इंदौरीजी का है।
नए किरदार आते जा रहे हैं
मगर नाटक पुराना चल रहा है
और यह शेर शायर इफ़्तिख़ार आरिफ़ रचित है।
कहानी में नए किरदार शामिल हो गए हैं
नहीं मा’लूम अब किस ढब तमाशा ख़त्म होगा

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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