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आमदनी का अंतर:नुस्ली वाडिया हर महीने हज़ारों करोड़ो कमाते हैं. TOWER OF SILENCE में खंडिया का काम करने वाले PERVEZ WADIA मुश्किल से 18,000 रुपए

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क्रांति कुमार

कहानी पारसी MASAAN की, जिसे हम तीन नामों से जानते है ईरानी नाम “दखमा”, गुजराती नाम “डोंगेरवाड़ी” और अंग्रेजों का दिया हुआ नाम “टॉवर ऑफ साइलेंस”.
टॉवर ऑफ साइलेंस पारसी समुदाय का मसान है जहां खांडिया द्वारा पारसी धर्म रीति रिवाजों से मृत देह का अंतिम संस्कार किया जाता है.
खांडिया मसान के कर्मचारी होते हैं जो शुद्ध रूप से पारसी समुदाय से ही होते हैं, गैर धर्म के लोगों को खांडिया नही बनाया जाता. लेकिन पारसी समुदाय खंडिया से अछूतों जैसा बर्ताव करता है. आप खंडिया को पारसी धर्म का डोम कह सकते हैं.
पारसी धर्म जिसका असली नाम जोरास्ट्रियन है अपने समृद्धि और विकास की बड़ी बड़ी बात करता है. उसके पास WADIA, GODREJ, TATA, MISTRY, DAMANIA, JEEJEEBOUY, POONAWALA, NARIMAN जैसे बड़े बड़े नाम है जिनकी अमीरी की कहानियां सुनाकर हमें बताया जाता हम कितने गरीब और कामचोर हैं जबकि ऐसा नही ?
खांडिया की कहानी हमने कभी सुनी ही नही, कारण हमें इसके बारे कभी बताया ही नही गया. पारसी समुदाय खांडिया लोगों से अछूतों जैसा व्यवहार करते हैं इसी कारण आज तक खांडिया लोगों का दर्द पूरी दुनिया को पता नही चल पाया.
खांडिया व्यक्ति को टॉवर ऑफ साइलेंस के भीतर अलग मटके में पानी रखने का नियम है. सार्वजनिक नल से वे पानी नही पी सकते. मुंबई के टावर ऑफ साइलेंस में 20 से अधिक खांडिया काम करते हैं जिन्हें आराम करने और रहने के लिए एक छोटा सा कमरा मिला है.
खांडिया का काम करने वाला पारसी अपने धर्मस्थल यानी फायर टेम्पल में नही जा सकता. टेम्पल में जाने से पहले खांडिया को अपना शुद्धिकरण कराना पड़ता तभी उसे धर्मस्थल के भीतर प्रवेश दिया जाता है.
टॉवर ऑफ साइलेंस में लाश आते ही खांडिया का काम शुरू हो जाता है. मृतक के रिश्तेदार दूर खड़े रहते हैं और खांडिया अपने हाथों से लाश को पानी से नहलाते हैं. उसके लाश को उठाकर टॉवर ऑफ साइलेंस के सेंट्रल वेल में ले जाकर रख दिया जाता है और कुछ दिनों तक इंतजार किया जाता है ताकि गिद्ध लाश को खा सकें. उसके बाद बचे खुचे हड्डियों को समेट कर खांडिया अंतिम संस्कार का अंतिम चरण समाप्त करते हैं.
पारसी धर्म के अनुसार देह संस्कार करना पवित्र कार्य है. इसके बावजूद पारसी समुदाय खांडिया का कार्य करने वालों को अपना पड़ोसी या अपने मोहल्ले में भी बर्दाश्त नही करते. 
अमीर पारसी खांडिया को नीचे बैठाकर खुद सोफा पर बैठते हैं. कुछ पारसी उदारवादी हैं लेकिन कट्टर पारसियों के डर से वे इस भेदभाव के खिलाफ मुखर होकर बोल नही पाते. एक बार किसी खांडिया ने अपने बेटे के उच्च शिक्षा के लिए अमीर पारसी से मदद मांगी, उस अमीर पारसी ने जवाब दिया अगर तुम लोगों के बाल बच्चे पढ़ लिख लेंगे तो खांडिया का काम कौन करेगा ?
Kranti Kumar

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