अग्नि आलोक

15 साल में 20 राज्यों में फैला PFI

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कर्नाटक में BJP युवा मोर्चा कार्यकर्ता की हत्या, उत्तर प्रदेश के कानपुर में हिंसा, मध्य प्रदेश के खरगौन में सांप्रदायिक दंगा, राजस्थान के करौली में हिंसा, उदयपुर में दर्जी कन्हैयालाल का सिर कलम और कर्नाटक के शिवमोगा में बजरंग दल कार्यकर्ता का कत्ल। इन सभी मामलों में एक संगठन का नाम बार-बार आता रहा है। वो है- PFI यानी पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया।

हाल ही में पटना में पुलिस ने कई संदिग्धों को गिरफ्तार किया और इनके भी PFI से जुड़े होने का दावा किया। अब राष्ट्रीय जांच एजेंसी (NIA) बिहार में PFI की जड़ें तलाश रही है।

केरल हाईकोर्ट ने अपनी एक टिप्पणी में PFI को एक ‘चरमपंथी संगठन’ बताया था। हिंदूवादी संगठन PFI को प्रतिबंधित करने की मांग करते रहे हैं और मीडिया में केंद्र सरकार से इस संगठन को प्रतिबंधित करने पर विचार करने की रिपोर्टें भी आती रही हैं।

हालांकि अब तक झारखंड के अलावा कहीं भी PFI पर बैन नहीं लगा है। झारखंड के बैन को भी अदालत में चुनौती दी गई है।

वहीं PFI खुद को एक सामाजिक संगठन बताता है और कहता है कि वो दबे-कुचले वर्ग के उत्थान के लिए काम करता है।

2010 में केरल से चर्चा में आया PFI

PFI सबसे पहले चर्चा में आया था 2010 में केरल में प्रोफेसर टीजे जोसेफ का हाथ काटने की घटना के बाद। प्रोफेसर जोसेफ पर एक प्रश्नपत्र में पूछे गए सवाल के जरिए पैगंबर मोहम्मद साहब के अपमान का आरोप लगा था। इसके बाद आरोप है कि PFI कार्यकर्ताओं ने प्रोफेसर जोसेफ के हाथ काट दिए थे।

बातचीत में प्रोफेसर जोसेफ कहते हैं, “पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया एक आतंकवादी संगठन है जो इस्लाम की कट्टरपंथी विचारधारा को फैलाता है और लागू करता है। उनकी सभी गतिविधियां, जिनमें 2010 में मुझ पर हुआ हमला भी शामिल है, ने समूचे भारत में आतंक की एक लहर पैदा की है। ये संगठन लोगों के शांतिपूर्वक जीवन और देश की धर्मनिरपेक्षता के लिए खतरा बन गया है।”

कब-कब PFI पर पड़े आरोपों के छींटे

2018 में केरल के एर्नाकुलम में CFI के कार्यकर्ताओं ने वामपंथी छात्र संगठन SFI (स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया) के छात्र नेता अभिमन्यु की चाकू मार कर हत्या कर दी थी। तब भी PFI सवालों में घिरा था।

कर्नाटक में हिजाब आंदोलन के लिए मुस्लिम लड़कियों को भड़काने में PFI के ही छात्र संगठन CFI का नाम चर्चा में आया था।

इस साल उडुपी में जब मुस्लिम छात्राओं ने हिजाब को लेकर प्रोटेस्ट किए तो उनके पीछे भी PFI के छात्र संगठन कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया यानी CFI की ही रणनीति बताई गई। दक्षिणी राज्यों में ये संगठन उत्तर भारत के मुकाबले अधिक सक्रिय है। PFI पर जेहाद को बढ़ावा देने के आरोप भी लगते रहे हैं।

हाल ही में कानपुर हिंसा, उदयपुर में दर्जी कन्हैयालाल की हत्या और पटना में संदिग्धों की गिरफ्तारी में भी PFI का नाम आया है।

हमने कानपुर, उदयपुर और पटना में PFI की कार्य शैली की पड़ताल की।

पटना: पुलिस ने देश के खिलाफ साजिश रचने के आरोप में चार संदिग्धों को गिरफ्तार किया है। ये हैं अतहर परवेज, मो. जलालुद्दीन, अरमान मलिक और एडवोकेट नूरुद्दीन जंगी। पुलिस के मुताबिक ये चारों ही PFI से जुड़े हैं।

PFI बिहार में साल 2016 से सक्रिय है। पूर्णिया जिले में संगठन ने हेडक्वार्टर स्थापित करने की तैयारियां की थीं। इसके अलावा राज्य के 15 से अधिक जिले में ट्रेनिंग सेंटर भी चलाए हैं।

पटना में गिरफ्तारियों के बाद अब जांच NIA कर रही है। NIA ने PFI का नेटवर्क तलाशने के लिए बिहार के कई शहरों में छापेमारी भी की है।

पटना में जांच से जुड़े अधिकारियों ने भास्कर को बताया है कि PFI अनपढ़, बेरोजगार मुस्लिम युवाओं को टारगेट करके अपने साथ जोड़ रहा है। पुलिस जांच में सामने आया है कि युवाओं को हथियार चलाने की ट्रेनिंग भी दी गई है।

PFI के तार विदेशों से जुड़े होने और बाहर से फंडिंग की भी जांच की जा रही है। पुलिस को PFI के अकाउंट में 90 लाख रुपए मिले हैं।

कानपुर में CAA-NRC विरोधी आंदोलन में गिरफ्तार 5 आरोपी PFI से जुड़े बताए गए हैं।

कानपुर: कानपुर में PFI काफी सक्रिय रहा है, लेकिन इसका कोई आधिकारिक दफ्तर शहर में नहीं है। पुलिस के मुताबिक बाबूपुरवा इलाके में PFI की गतिविधियां दिखती रही हैं। स्टूडेंट इस्लामिक मूवमेंट ऑफ इंडिया यानी SIMI पर बैन लगने के बाद इससे जुड़े लोग भी PFI से जुड़ गए थे।

कानपुर में CAA-NRC विरोधी आंदोलन के दौरान PFI काफी सक्रिय रहा था और इसके पांच सदस्यों को गिरफ्तार भी किया गया था। इन सभी को बाबूपुरवा इलाके से ही गिरफ्तार किया गया था। पुलिस के मुताबिक PFI ने CAA विरोधी आंदोलन की फंडिंग की थी। पुलिस ने इस संबंध में चार्जशीट भी दाखिल की थी।

हाल ही में 3 जून को कानपुर में हुई हिंसा की जांच के दौरान भी PFI की भूमिका सामने आई थी। पुलिस के मुताबिक गिरफ्तार किए गए लोगों में से तीन PFI के सदस्य हैं। कानपुर में हिंसा की जांच SIT कर रही है। सूत्रों के मुताबिक चार्जशीट में PFI सदस्यों पर भी आरोप तय किए जा रहे हैं।

उदयपुर: टेलर कन्हैयालाल की हत्या के बाद पुलिस ने हत्यारों का कनेक्शन PFI से जुड़े होने का दावा किया था, लेकिन अब तक की जांच में PFI के खिलाफ कुछ सामने नहीं आया है।

जांच से जुड़े अधिकारियों के मुताबिक हत्यारों या उनके सहयोगियों के PFI से जुड़े होने के सबूत नहीं मिले हैं।

उदयपुर में PFI का कोई दफ्तर भी नहीं है। हालांकि अधिकारी ये मानते हैं कि देश के बाकी हिस्सों की तरह उदयपुर में भी PFI का नेटवर्क हो सकता है। राजस्थान में PFI का नेटवर्क जांच एजेंसियों के रडार पर है।

2007 में बना, 20 राज्यों में फैला PFI

PFI की जड़ें 1992 में बाबरी मस्जिद विध्वंस के बाद मुसलमानों के हितों की रक्षा के लिए खड़े हुए आंदोलनों से जुड़ती हैं। 1994 में केरल में मुसलमानों ने नेशनल डेवलपमेंट फंड (NDF) की स्थापना की थी।

स्थापना के बाद से ही NDF ने केरल में अपनी जड़ें मजबूत कीं और इसकी लोकप्रियता बढ़ती गई और इस संगठन की सांप्रदायिक गतिविधियों में संलिप्तता भी सामने आती गई।

साल 2003 में कोझिकोड के मराड बीच पर 8 हिंदुओं की हत्या में NDF के कार्यकर्ता गिरफ्तार हुए। इस घटना के बाद BJP ने NDF के ISI से संबंध होने के आरोप लगाए, जिन्हें साबित नहीं किया जा सका।

केरल के अलावा दक्षिण भारतीय राज्यों, तमिलनाडु और कर्नाटक में भी मुसलमानों के लिए काम कर रहे संगठन सक्रिय थे। कर्नाटक में कर्नाटक फोरम फॉर डिग्निटी यानी KFD और तमिलनाडु में मनिथा नीति पसाराई (MNP) नाम के संगठन जमीनी स्तर पर मुसलमानों के लिए काम कर रहे थे।

इन संगठनों का भी हिंसक गतिविधियों में नाम आता रहा था। नवंबर 2006 में दिल्ली में हुई एक बैठक के बाद NDF और ये संगठन एक होकर PFI बन गए। इस तरह साल 2007 में PFI अस्तित्व में आया और आज 20 राज्यों में ये संगठन काम कर रहा है।

अब PFI एक संगठित नेटवर्क है जिसकी देश के बीस से अधिक राज्यों में मौजूदगी है। PFI की एक राष्ट्रीय समिति होती है और राज्यों की अलग समितियां होती हैं। ग्राउंड लेवल पर इसके वर्कर होते हैं। समिति के सदस्य हर तीन साल में होने वाले चुनाव से चुने जाते हैं।

2009 में PFIने अपने राजनीतिक दल SDPI (सोशल डेमोक्रेटिक पार्टी आफ इंडिया) और छात्र संगठन CFI (कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया) का गठन किया था।

जैसे-जैसे PFI का प्रभाव बढ़ा, कई राज्यों के अन्य संगठन भी PFI के साथ जुड़ते चले गए। गोवा का सिटीजन फोरम, पश्चिम बंगाल का नागरिक अधिकार सुरक्षा समिति, आंध्र प्रदेश का एसोसिएशन ऑफ सोशल जस्टिस और राजस्थान का कम्युनिटी सोशल एंड एजुकेशन सोसायटी- ये सभी संगठन PFI का हिस्सा हो गए।

देश भर में आधार बनाने के बाद PFI ने अपना मुख्यालय भी कोझिकोड से दिल्ली स्थानांतरित कर लिया।

अब PFI देश के अधिकतर हिस्सों में सक्रिय है, लेकिन इसका मजबूत आधार दक्षिण भारत में ही है। हाल ही में जब कर्नाटक में हिजाब विवाद हुआ तो कैंपस फ्रंट ऑफ इंडिया और PFI ने अपनी जड़ें मजबूत करने के लिए उसका जमकर इस्तेमाल किया।

मैंगलोर, उडुपी, मंड्या और बेंगलुरु में इस संवाददाता को PFI और CFI का प्रभाव स्पष्ट नजर आया। हिजाब के लिए आंदोलन कर रहीं छात्राएं और मंड्या में नारेबाजी के बाद चर्चित हुई छात्रा ने PFI से अनुमति मिलने के बाद ही दैनिक भास्कर से बात की थी।

PFI पर उठ रहे सवालों के बीच हमने PFI के चर्चित नेता और राष्ट्रीय महासचिव अनीस अहमद से बात की और उनके सामने वो सवाल रखे जो PFI पर उठते रहे हैं।

सवाल: PFI को एक ऐसे संगठन के रूप में देखा जाता है जो भारत में हिंसा को बढ़ावा दे रहा है, हम आपसे समझना चाहेंगे कि PFI है क्या?

जवाब: हम एक सामाजिक संगठन हैं जो गरीबों, वंचितों और दबे-कुचले वर्ग के उत्थान के लिए काम करता है। हम कई फोकस एरिया में काम करते हैं। हम सबसे ज्यादा ध्यान शिक्षा पर देते हैं और इसे लेकर कई प्रोजेक्ट चल रहे हैं। इसके अलावा हम गरीब लोगों को लीगल एड (कानूनी सहायता) देते हैं। हम जनविरोधी नीतियों के खिलाफ सामाजिक-राजनीतिक स्टैंड लेते हैं और विरोध दर्ज कराते हैं।

सवाल: केरल हाईकोर्ट ने PFI को एक चरमपंथी संगठन कहा है, इस पर आप क्या कहेंगे?

जवाब: केरल हाईकोर्ट ने एक ऐसे मामले में ये टिप्पणी की थी जिसमें हम पक्ष ही नहीं थे। अगर PFI के वकील मौजूद होते तो हम अपना पक्ष रख पाते। अदालत में सुनवाई के दौरान, बिना कारण जज ने ये टिप्पणी की थी, जिसका हम विरोध करते हैं। हमें अपनी बात रखने का न कोई मौका मिला और न ही हम इस बयान का जवाब दे पाए।

सवाल: हाल ही में पटना में पुलिस ने संदिग्धों की गिरफ्तारी की है और कुछ आपत्तिजनक दस्तावेज भी बरामद किए। क्या वो लोग PFI से जुड़े हैं?

जवाब: हमने ये स्पष्ट किया है कि ये दोनों ही PFI के सदस्य नहीं है। इन्हें गिरफ्तार करने के बाद पुलिस ने कुछ दस्तावेज मिलने का दावा किया था।

हम ये मानते हैं कि जो दस्तावेज मिले हैं वो पुलिस ने फेब्रिकेट किए और वहां रखे हैं। इन दस्तावेज को 2047 तक भारत को मुस्लिम राष्ट्र बनाने का मास्टर प्लान बताया गया है। UP के बस्ती में एक केस हुआ था, उसकी चार्जशीट में भी यही दस्तावेज शामिल किया गया था। हमारा सवाल है कि जो दस्तावेज यूपी पुलिस की चार्जशीट में था, वो बिहार पुलिस के पास कहां से आया? इससे एक बात साफ होती है कि पूरे भारत में PFI के खिलाफ एक बहुत बड़ा अभियान चल रहा है।

जो FIR पटना में की गई, उसमें पहले PFI का नाम नहीं था। बाद में कई और लोगों के नाम इसमें जोड़े गए। इनमें से कई लोग PFI के सदस्य और नेता हैं। ये वहां के हैं ही नहीं, बल्कि अलग-अलग इलाकों के हैं। इन्हें फंसाया गया है। PFI के अलग-अलग जिले में काम करने वाले लोगों का नाम एक साजिश के तहत इस FIR में जोड़ा गया है।

हम 2016 से बिहार में काम कर रहे हैं। हमने बिहार में कई बड़े सम्मेलन किए हैं। ये कहना कि हमने PFI का पर्दाफाश किया है, अपने आप में हास्यास्पद है।

सवाल: UP सरकार ने PFI पर प्रतिबंध की मांग की है। केंद्र सरकार के भी PFI को प्रतिबंध करने पर विचार करने की चर्चा है। PFI पर बैन लगा तो आप क्या करेंगे?

जवाब: 2017 से ही PFI पर प्रतिबंध की बातें चल रही हैं। कुछ लोगों ने कहा कि एक महीने में ही प्रतिबंधित हो जाएगा, लेकिन अब तक प्रतिबंध नहीं लगा है। इसका कारण ये है कि सरकार के पास ऐसा करने का कोई कानूनी आधार नहीं है।

हम कोई टेररिस्ट ऑर्गेनाइजेशन नहीं हैं। हम एक स्वतंत्र संगठन हैं जो जनता के बीच काम करता है। हम खुले आम प्रेस कॉन्फ्रेंस करते हैं। हम एक पंजीकृत संगठन हैं और समय पर टैक्स भरते हैं। हमें सिर्फ आरोपों के आधार पर प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता है।

जिस तरह के आरोप PFI पर लगाए गए हैं, वैसे ही आरोप कई संगठनों और पार्टियों पर लगते ही रहे हैं। केरल में ही देखिए, 240 से अधिक कत्ल के मामलों में RSS का नाम आया है। CPIM कार्यकर्ताओं का नाम भी कई मर्डर केस में आया है। पश्चिम बंगाल में तृणमूल के कार्यकर्ताओं पर कितने आपराधिक मामले हैं?

आपराधिक मामलों के जो आरोप हम पर लगाए गए हैं, उनकी तुलना अगर आप दूसरे दलों से करेंगे तो हम पर तो एक प्रतिशत भी आरोप नहीं हैं। सिर्फ ऐसे आरोपों के आधार पर हमें प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता है।

सवाल: अभी PFI किन-किन राज्यों में प्रतिबंधित है, क्या इन प्रतिबंधों को आपने अदालत में चुनौती दी है?

जवाब: मीडिया में दावा किया जाता है कि कई राज्यों में PFI प्रतिबंधित है। सिर्फ झारखंड में हम पर प्रतिबंध लगा था, जो BJP सरकार ने लगाया था। हम रांची हाईकोर्ट गए और कोर्ट ने बैन हटा दिया।

कोविड से ठीक पहले BJP सरकार ने फिर से प्रतिबंध लगाया, कोविड के समय सुनवाई नहीं हो सकी, अब फिर केस हाईकोर्ट में आ गया है और हम निश्चिंत हैं कि ये प्रतिबंध फिर से हट जाएगा।

सरकार जानती है कि हमें प्रतिबंधित नहीं किया जा सकता है, लेकिन अगर फिर भी राजनीतिक वजहों से हमें प्रतिबंधित किया गया तो हमारे पास जो भी कानूनी और लोकतांत्रिक अधिकार हैं हम उनका इस्तेमाल करेंगे और प्रतिबंधों के खिलाफ लड़ेंगे।

सवाल: जब भी देश में कहीं सांप्रदायिक हिंसा होती है या माहौल खराब होता है, PFI का नाम जरूर उछलता है, ऐसा क्यों होता है?

जवाब: पॉपुलर फ्रंट ऑफ इंडिया को निशाना बनाने की वजह यही है कि हम एक अलग एटीट्यूड (रवैये) के साथ काम करते हैं। भारतीय मुसलमानों की बहुत सी समस्याएं हैं। अशिक्षा है, बेरोजगारी है, कौशल की कमी है। पॉपुलर फ्रंट इन सबको दूर करने के लिए काम कर रहा है और इसलिए ही बाकी संगठनों से अलग है। सरकार चाहती है कि मुसलमान दब्बू रहें, लेकिन हम ऐसे नहीं है। हम मुसलमानों को बराबर खड़ा कर रहे हैं।

हम लोकतांत्रिक तरीकों से मुद्दे उठाते हैं और कई मामलों को लेकर हम सुप्रीम कोर्ट तक गए हैं। हम मुसलमानों को समझा रहे हैं कि हमें लोकतांत्रिक प्रक्रिया का हिस्सा होना है। पॉपुलर फ्रंट के इसी काम से BJP सरकार हमसे नाराज है और हमें निशाना बना रही है।

सवाल: 2010 में प्रोफेसर जोसेफ पर हमला, कर्नाटक में BJP कार्यकर्ता की हत्या, PFI कार्यकर्ताओं पर हिंसा के आरोप लगते रहे हैं?

जवाब: 2010 में जब केरल में प्रोफेसर जोसेफ का हाथ काटने की घटना हुई थी तब PFI ने इसकी आलोचना की थी और कहा था कि PFI दोषियों को सजा दिलाने में मदद करेगी।

PFI के किसी भी कार्यकर्ता को आज तक दोषी करार नहीं दिया गया है, लेकिन जब भी कोई मामला होता है सबसे पहले PFI का नाम लिया जाता है। करौली में दंगे हुए तो PFI का नाम लिया गया, लेकिन वहां के SP ने बयान देकर कहा कि इसका PFI से कोई संबंध नहीं है।

खरगौन में भी BJP के नेताओं ने PFI का नाम लिया, लेकिन PFI का कोई कार्यकर्ता गिरफ्तार नहीं हुआ। उदयपुर की घटना को PFI से जोड़ा गया, लेकिन वो आदमी BJP का सदस्य निकला। कानपुर दंगों का मास्टरमाइंड बताया गया, लेकिन वहां हमारा सदस्य ही नहीं है।

जब भी कभी ऐसी घटना होती है तो सनसनीखेज तरीके से PFI को जोड़ दिया जाता है, लेकिन बाद में जब PFI का कोई लिंक नहीं निकलता तो कोई नहीं पूछता कि क्या हुआ। आज कोई नहीं पूछ रहा है कि करौली, खरगौन, कानपुर या उदयपुर में PFI का लिंक नहीं था।

सवाल: मीडिया में PFI को हमेशा नकारात्मक ही दिखाया जाता है, इसकी कुछ तो वजह जरूर होगी?

जवाब: मीडिया हमें आरोपी नहीं बताता, सीधे अपराधी घोषित कर देता है। आज भारत में सबसे अधिक नजर PFI पर रखी जा रही है। ED की हम पर निगरानी है, NIA और लोकल पुलिस हम पर नजर रखती है। फिर भी PFI के लोग आर्म्स ट्रेनिंग दे देते हैं, सम्मेलन कर लेते हैं, ये सब कैसे हो जाता है?

बिहार में गिरफ्तारियों के बाद पुलिस ने कहा कि प्रधानमंत्री की यात्रा के दौरान PFI आर्म्स ट्रेनिंग दे रही थी, लेकिन किसी ने पुलिस से नहीं पूछा कि इस दौरान पुलिस क्या कर रही थी। मीडिया पुलिस के इकतरफा बयानों पर भरोसा कर PFI पर सवाल खड़े करता है और हमें अपनी बात रखने का मौका भी नहीं देता।

(इस रिपोर्ट में दिलीप ने कानपुर से, अमित जायसवाल ने पटना और निखिल ने उदयपुर से सहयोग किया)

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