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स्वतंत्रता आंदोलन के वीर सपूत पीर अली खान 

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अपना खून देकर तिरंगे की बुलंदी को संवारा है, फरिश्ते तुम देश के हो, तुम्हें सजदा हमारा है। इतिहास के पन्नों को पलटेंगे तो पाएंगे कि देश की आजादी के लिए न जाने कितने देशभक्तों ने अपने प्राण न्योछावर कर दिए। कुछ का जिक्र तो इतिहास की किताबों में मिल भी जाता है लेकिन, कुछ ऐसे वीर सपूत भी हैं जिनकी चर्चा या कहें उन की शौर्यगाथा का जिक्र। कम ही हुआ। समय के साथ उनके योगदान को उतनी जगह नहीं मिली। लेकिन, अगर उनकी देश के लिए त्याग की कहानी सुनेंगे तो आपका भी सीना गर्व से चौड़ा हो जाएगा। हमारी ‘ अनसुने नायक’ सीरीज की अगली कड़ी में आज हम बात करेंगे एक ऐसे वीर योद्धा की जिसका नाम सुनते ही अंग्रेज अफसर थर-थर कांपते थे। नाम था पीर अली खान। यह नाम आपने विरलय ही कहीं किताबों में पढ़ा या देखा हो लेकिन, 1857 की पहली क्रांति में पीर खान का योगदान देश के लिए खासा महत्व रखता है। पीर अली खान, जिसका जन्म तो उत्तर प्रदेश में हुआ लेकिन उनकी कर्मभूमि बिहार ही रही। पीर का खौफ ऐसा रहा कि अंग्रेज अफसरों ने उनपर मुकदमा चलाए बिना ही फांसी दे दी थी।

जन्म यूपी और निकल गए बिहार
पीर अली खान का जन्म साल 1812 के उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ जिले के मोहम्मदपुर गांव में हुआ था। हालांकि 7 वर्ष की आयु में वह अपना घर छोड़कर पटना चले गए थे। पटना पहुंचने के बाद उनका पालन-पोषण वहां के एक जमींदार के घर हुआ। नाम था नवाब मीर अबदुल्ला। पीर अली खान जब बड़े हुए तो उन्होंने नवाब मीर की मदद से एक किताब की दुकान खोली। पटना में खुली यह दुकान उस समय क्रांतिकारियों का अड्डा बन गया। देश की आजादी की लौ सीने में लिए और अंग्रेजों को मात देने का इरादा रखने वाले लोगों का वहां जमावड़ा लगने लगा। इसे देखते हुए पीर अली खान अपनी दुकान में क्रांतिकारी साहित्य मंगाने लगे।

देश की आजादी को बना लिया लक्ष्य
अपनी दुकान में क्रांतिकारी लोगों के जमावड़े को देखते-देखते उनके मन में भी आजादी को लेकर जोश उमड़ने लगा। बाद में उन्होंने देश को आजादी को ही अपना लक्ष्य बना लिया। 3 जुलाई 1857,यह वो तारीख थी जब पीर अली खान ने देश के लिए पहली बार अंग्रेजों से लोहा लिया था। 200 क्रांतिकारियों के साथ पीर अली ने पटना के एक प्रशासनिक भवन पर हमला कर दिया। यह हमला विलियम टेलर पर किया गया था। टेलर तो बच गया लेकिन, डॉक्टर लायल मारा गया। लायल अफीम एजेंट का प्रमुख सहायक था। अंग्रेजों के हमले में क्रांतिकारी भी कई थे जो शहीद हुए थे। कहा जाता है कि पीर अली खान ने अंग्रेजों के खिलाफ कई पर्चे ओर कोडेड संदेश भिजवाए थे। अंग्रेजों को इसकी भी भन लग गई थी।

हमले के बाद 33 लोगों के साथ गिरफ्तार हुए पीर अली
पटना में प्रशासनिक भवन में हमले के बाद पीर अली खान अपने 33 सांसदों के साथ गिरफ्तार हुए थे। उस वक्त का डिप्टी मजिस्ट्रेट मौलाबक्श ने पीर अली के घर और उनकी दुकान की तालाशी ली। वहां से उन्हें कुछ घातक हथियार और चिट्ठियां मिली थीं। हमले से संबंधित यह सबूत पर्याप्त थे। 33 में से 21 लोगों को एक ही दिन पेड़ के सहारे फांसी पर चढ़ा दिया गया। पीर अली को छोड़ दिया गया क्योंकि विलियम टेलर उनसे कुछ जनकारी चाह रहा था।

फांसी की सजा सुन नहीं कांपा कलेजा
अंग्रेजों को लगा कि फांसी की सजा सुनाते ही पीर अली खान डर जाएगा। लेकिन ऐसा हुआ नहीं। फांसी की सजा सुनाने के बाद पीर अली को अकेले पूछताछ के लिए बुलाया गया। फांसी की जगह बरी करने के सवाल पर पीर अली ने कहा कि कुछ मामलों में जीवन बचाना अच्छा होता है, लेकिन कुछ मामलों में इसे खो देना ही अच्छा होता है। इसके बाद पीर अली ने जो कहा वो वाकई अंग्रेज अफसर को अंदर से डरा गया। पीर अली ने कहा कि आप बेशक मुझे आज फांसी पर चढ़ा दो लेकिन मेरे जाने के बाद तुम्हारे इरादों को ध्वस्त करने हजारों क्रांतिकारी जन्म लेंगे।

1857 में पीर अली खान की शहादत के बाद पटना अब काफी बदल चुका है। लेकिन,जिलाधीश की कोठी के पास से गुजरते हुए लोगों को पीर अली खान बरबस याद आ ही जाते हैं। शहीद पीर अली खान पार्क के नाम से यह जगह आज भी पीर अली खान की कुर्बानी को यायद करता है।

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