Site icon अग्नि आलोक

प्यार के नाम पर खेल, बस धोखा है सब 

Share

    सोनी कुमारी 

प्यार क्या है? सवाल सबका है, जवाब भी सबका अपना है।

आपके वक्त को अपनी जागीर समझने वाला नहीं,आपके वक्त की कद्र करने वाला मिल जाए. ये प्यार है।

  आपको पीछे भगाने वाला नहीं,आपके साथ चलने वाला मिल जाए. ये प्यार है।

   तुम मुझसे मिलने भी नहीं आ सकते क्या?नहीं तुम्हें कोई परेशानी न हों तो तुमसे मिलने आ जाऊं? ये कहने वाला मिल जाए. ये प्यार है।

जरा देखूं तुम कितना जानते हो मुझे, ये कहने वाला नहीं, मुझे तुम्हें और जानना है कहने वाला मिल जाए. ये प्यार है।

  बात करनी है तो तुम्हें करनी होगी, मेरे पास कुछ नहीं बोलने को, ये कहने वाला नहीं, तुम बोलते बहुत हो, ये कहने वाला मिल जाए. ये प्यार है।

    जिसने सिर्फ आपको छूना चाहा हो, पाना चाहा हो, वो प्यार नहीं है, प्यार जिस्म नहीं है, प्यार आत्मा है।

   ये जानते हुए की प्यार को आप जिस्मानी नहीं मानते, आपको कोई ये एहसास दिलाए की आप प्यार नहीं करते, ये प्यार नहीं, आपकी एक आवाज जिसके सीने में सुकून का सैलाब ले आए. वो प्यार है।

   आपके लाख समझदार बनने पर भी,आपके अंदर का छोटा बच्चा तलाश लेने वाला मिल जाए. ये प्यार है।

   प्रैक्टिकल बनो, ये कहने वाला नहीं, आपकी भावनाओं को सीने से लगाकर सुनने वाला मिल जाए. ये प्यार है।

    ये जानते हुए भी की आप खुद के लिए काफी हो, फिर भी आपकी फिक्र करने वाला मिल जाए. ये प्यार है।

अपने लिए आपकी आंखों में आंसू देखकर खुश होने वाला नहीं,जो आपकी आंखों से आंसू भी चुरा ले जाए …वो प्यार है।

आपसे दूर रहना हकीकत में क्या सपने में भी संभव न हो. ये प्यार है।

   सबसे जरूरी, “जिस रिश्ते में रहकर आपके जीवन में बेइंतहा सुकून, चेहरे पर बेखौफ मुस्कान और मन में अटूट विश्वास हो. वही प्यार हैI

प्यार तो बहुत सीधा और साफसुथरा है, बहुत ही सरल सा है…बस आज की दुनिया में अजीब सा खेल बन कर रह गया है। किसने अपने मतलब का कौन सा ’लेवल’ पार कर लिया ऐसा खेल…और अक्सर इस खेल में जीतता वही है जिसने कभी प्यार किया ही न हो। यकीन मानिए जहां हारजीत और परखने का गंदा खेल चल रहा हो, वहां प्यार हो ही नहीं सकता…वो प्यार की शक्ल में एक धोखा है, बहुत बड़ा धोखा।

प्रेम कुछ ऐसा है
कैसे परिभाषित हो वह प्रेम
जिसे सोचा भी नही
कभी बोया भी नही
स्वयं पनपा हो दिल की जमीं पर
और एक वट वृक्ष बन गया हो
जिसकी हर डाल पर हो प्रेम का बसेरा
हर पत्ते पर हो नाम उसी का
न कभी सींचा था जिसे
न कभी खाद ही डाली
कब और कैसे पनपा कहाँ पता चला
ये तो वैसे ही है ना
तुलसी के बिरवा से झड़े बीज
स्वयं अपनी जगह मिट्टी में बना लेते है
और पनप जाते है पवित्रता के साथ
जिन्हें शुद्ध हाथों से छुआ जाता है
उसके पत्ते जिसमे रख दो
प्रभुभोग हो , दवा हो या भोजन
सब अमृत हो जाता है
प्रेम बिल्कुल ऐसा ही पवित्र बंधन है
जो स्वयं पनपता है दिल की जमीं पर
बिना किसी सोच विचार के
हर रिश्ते से अलग एक अपनेपन का प्यारा रिश्ता
जिसके खत्म हो जाने का भय नही
आवश्यकता ही नही किसी भय की
आनन्द! आनन्द!! और आनन्द!!!
लेकिन :
यहां न कोई व्यवहारी है सभी कारोबारी हैं।
कोई आपका दोस्त नहीं यहां सभी व्यापारी हैं।
डूबते हुए सूरज को करता नहीं कोई सलाम –
उगते हुए सूरज के तो यहां लाखों पुजारी हैं।

Exit mobile version