अग्नि आलोक

कविताएं… लड़कियां कमजोर नहीं / मेरी अभिलाषा / बेटियाँ / माँ समान है प्रकृति

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लड़कियां कमजोर नहीं

चित्रा जोशी
उत्तारोडा, कपकोट
बागेश्वर, उत्तराखंड

आखिर क्यों बोझ समझते हो?
एक लड़की ही तो हूँ मैं,
जितना प्यार बेटे को देते हो,
उतना हमसे भी करके देखो कभी,
आख़िर मैं भी तो एक इंसान हूँ,
तुम्हारी तरह प्रकृति की संतान हूँ,
बहुत रुलाया इस जिंदगी ने,
कांटों भरी राहों में अकेला ख़ुद को पाया हमने,
माँ बाप के प्यार के लिए तरसते हम,
पर कभी वो प्यार न पाया हमने,
खुले आसमां में उड़ने की चाह है हमारी,
मगर ये चाह कभी पूरी ना हो पाई हमारी,
समय आ गया है अब आवाज उठाने की,
लोगों की बातों को पीछे छोड़ आगे बढ़ जाने की॥

मेरी अभिलाषा

पार्वती
गुलेरा
, कपकोट
बागेश्वर, उत्तराखंड

अब ना बनाना है मुझे माता,
ना देना जवाब मुझे किसी को आता,
क्यों डरूँ मैं इस दुनिया से?
न कातिल मैं, ना ये काम मेरा,
क्यों दुनिया के अंधेरों में,
छुपा बैठा है गुनहगार,
करता बातें सबकी है,
न बताता अपना नाम,
कैसे सुधारे भविष्य अपना,
जहां सुरक्षित नारी ही नहीं है॥

बेटियाँ

करीना दोसाद
पोसारी, गरुड़
बागेश्वर, उत्तराखंड

मैं वादा करती हूँ कि,
कभी ज़िद नहीं करूँगी,
मैं वो करूँगी जो आप कहोगे,
मैं आपके पैसे ज्यादा खर्च नहीं करूँगी,
क्यों ऐसा बोलती हैं बेटियाँ?
घर, परिवार और दुनिया के,
हर काम को संभालती है बेटियां,
हर आंगन को खुशियों से भर देती है बेटियाँ,
हर दुख का समाधान है बेटियाँ,
दया की एक मूरत है बेटियाँ,
सारे दुखों को भुला देती हैं बेटियां,
क्यों ये दुनिया नकारती है बेटियों को ,
फिर भी सबसे आगे पाई जाती है बेटियाँ।।

माँ समान है प्रकृति

महिमा जोशी
कपकोट, उत्तराखंड

माँ समान है प्रकृति,
सबका पालन पोषण करती,
मानव हानि इसको पहुँचाते,
फिर भी ये सहन कर जाती,
हरियाली इसकी बहुत लुभाये,
मन करता इसकी चोटियों तक जाये,
अंग्रेज़ी दवाइयां ले लेती है जान,
जड़ी बूटियाँ मानो है भगवान,
साइड इफेक्ट न इसका होता,
ना पहुंचाती कोई नुकसान,
प्रकृति हमें सब कुछ देती है,
वस्त्र, भोजन या कहो मकान,
इस पर उम्मीद सबने बांधी,
पशु पक्षी हो या हो इंसान,
अन्न उगाने के लिए धरती चाहिए,
सांस लेने के लिये ऑक्सीजन चाहिए,
जीवित रहने के लिए पानी चाहिए,
सुरक्षित रहने के लिए मकान चाहिए,
पर इन सबको पूरा करने के लिए,
प्रकृति को जिंदा रहना चाहिए॥

चरखा फीचर्स

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