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काव्य प्रेम 

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कब किताबों के पनों से
प्यार हो गया
पता ही न चला।

कब अल्फाज़ो का
लफ्ज़ो से इकरार हो गया
पता ही न चला।

कब शब्दों को
मात्राओंं से नूरी इश्क़ हो गया
पता ही न चला।

कब प्रकृति का
मानव से आलिगन हो गया
पता ही न चला।

कब हिंदी की बिंदी ने
प्रेम की अनुभूति करवा दी
पता ही न चला।

डॉ.राजीव डोगरा
(युवा कवि व लेखक)
पता-गांव जनयानकड़
पिन कोड -176038
कांगड़ा हिमाचल प्रदेश

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