12 जनवरी, 1998 को मुलताई में किसान आंदोलन पर हुई थी फायरिंग,24 किसानों की हुई थी मौत,एमपी के इतिहास में काले दिन के रूप में दर्ज है यह तारीख
मुलताई किसान आंदोलन पर कांग्रेस सरकार द्वारा कराये गये गोली चालन को 12 जनवरी को आज 27 वर्ष पूरे हो रहे हैं।12 जनवरी, 1998। मध्य प्रदेश के लिए काला दिन। यही वो तारीख थी जब बैतूल के मुलताई में किसानों के शांतिपूर्ण आंदोलन पर पुलिसवाले कहर बनकर टूट पड़े थे। पुलिस की अंधाधुंध फायरिंग में 24 किसानों की जान चली गई थी। इसके बाद जमकर सियासी हंगामा भी हुआ
12 जनवरी, 1998 का दिन किसानों की स्मृति में अमिट छाप छोड़ गया क्योंकि इस दिन मध्य प्रदेश की कांग्रेस सरकार ने अतिवृष्टि से फसल नष्ट हो जाने के कारण मुआवजा और फसल बीमा की मांग को लेकर किसान आंदोलन कर रहे अहिंसक किसानों पर बर्बर गोली चालन किया था। जिसमें 24 किसान शहीद हुए, 150 किसानों को गोली लगी थी।250 किसानों पर 67 फ़र्ज़ी मुकदमे दर्ज किए गए थे।
साल 1997 में प्रदेश के किसान बेहद परेशान थे। बीते चार वर्षों से उनकी सोयाबीन और गेहूं की फसलें लगातार खराब हो रही थीं। ये बात 1997 की है। सोयाबीन और गेहूं की फसल लगातार 4 वर्षों से खराब हो रही थी। लगातार कर्ज के जाल में फंसते जा रहे किसानों ने सरकार से मदद मांगी। दिग्विजय सिंह के नेतृत्व वाली सरकार ने उनकी मांगों पर ध्यान नहीं दिया। इसके बाद किसानों ने आंदोलन का रास्ता अख्तियार करने का फैसला किया। 25 दिसंबर 1997 को किसानों ने संघर्ष समिति बनाई और सरकार से 5 हजार रुपये प्रति हेक्टेयर मुआवजे की मांग की। संघर्ष समिति ने सरकार से कहा कि उन्हें कर्जमाफी दी जाए, बिजली बिल माफ किया जाए और मवेशियों के लिए चारा उपलब्ध कराया जाए।
पहले रैली, फिर बंद और फिर…
संघर्ष समिति के बैनर तले लामबंद होकर किसान जमा हुए और नौ जनवरी, 1998 को विशाल रैली निकाली। बैतूल तक 50 किलोमीटर लंबी रैली में 75 हजार किसान शामिल हुए। ऐतिहासिक रैली के बाद भी सरकार पर असर नहीं पड़ा तो उन्होंने 11 जनवरी को बंद आयोजित किया। बंद को भी ऐतिहासिक सफलता मिली। तब जाकर सरकार को लगा कि आंदोलन को दबाने के लिए अब कुछ करना होगा। अगले दिन यानी 12 जनवरी को सरकार पूरी तरह ऐक्शन में आ गई। आंदोलन के नेताओं में शामिल रहे डॉ सुनीलम सोनेगांव से मुलताई की ओर बढ़े तो हजारों किसान उनके साथ हो लिए। किसान मुलताई के गुड़ बाजार के पास पहुंचे तो वहां भागमभाग का माहौल था। महिलाएं और पुरुष यहां-वहां भाग रहे थे। उनमें से कई खून से लथपथ थे। उन्हीं लोगों ने सुनीलम को बताया कि तहसील पर पुलिस की फायरिंग शुरू हो गई है।
अचानक शुरू हुई पुलिस की फायरिंग
उसी दिन तत्कालीन बसपा सुप्रीमो काशीराम भी मुलताई आए थे, लेकिन वे अपनी सभा जल्दी खत्म कर लौट गए थे। पुलिस को आंदोलन के बारे में सारी जानकारी पहले से दे दी गई थी। यह तय था कि काशीराम की सभा के बाद किसान तहसील कार्यालय में तालाबंदी करेंगे। लेकिन पुलिस का ऐक्शन इससे पहले ही शुरू हो गया।अस्पताल में भी गोलियां बरसा रहे थे पुलिसकर्मी
तहसील पर पुलिसवाले अंधाधुंध फायरिंग कर रहे थे। इतना ही नहीं, वे किसानों पर पत्थर भी फेंक रहे थे। माहौल देखकर लग रहा था कि पुलिस-प्रशासन ने पूरी तैयारी के साथ आंदोलन पर हमला बोला था। सुनीलम और आंदोलन के दूसरे नेता पुलिस से फायरिंग रोकने की गुहार लगा रहे थे, लेकिन इसका कोई असर नहीं हो रहा था। किसान लगातार घायल होकर अस्पताल पहुंच रहे थे। अस्पताल के सभी वॉर्ड में घायल किसानों की कराहें सुनाई पड़ रही थीं। हालत यह थी कि पुलिसवाले अस्पताल पर भी गोलियां बरसा रहे थे।
थमा नहीं पुलिसिया अत्याचार
इसके बाद शहर में कर्फ्यू लगा दिया गया, लेकिन पुलिस के अत्याचार यहीं नहीं रुके। पुलिस और प्रशासन आंदोलन के नेताओं की तलाश में जुट गए। सुनीलम किसानों के साथ अस्पताल में थे। रात होने पर कलेक्टर और एसपी अस्पताल आए और सुनीलम को मुलताई की जेल लेकर गए। वहां उनकी बेरहमी से पिटाई की गई। अगले दिन उन्हें बेहोशी की हालत में पारेगांव रोड पर बंदूक के साथ झाड़ियों में फेंक दिया गया। उनका एनकाउंटर करने की योजना थी, लेकिन पुलिसवाले के आपसी झगड़े में उनकी जान बच गई।
24 किसानों की हो गई मौत, सुनीलम के खिलाफ सरकार ने 60 से ज्यादा मुकदमे दर्ज किए
इस पूरे वाकये में 24 किसानों की मौत हो गई। बताया जाता है कि पुलिस ने 150 राउंड से ज्यादा फायरिंग की थी। इस घटना को कई बार एमपी के जालियांवाला कांड के रूप में याद किया जाता है। कई घर उजड़ गए। पुलिस ने सैकड़ों किसानों पर केस दर्ज किया गया। सुनीलम के खिलाफ सरकार ने 60 से ज्यादा मुकदमे दर्ज किए। उन्हें हथकड़ी से बांधकर कोर्ट में पेश किया गया। जज ने सबसे पहले उनकी हथकड़ियां खुलवाईं। चार महीने जेल में रहने के बाद उन्हें जमानत मिली थी।
मुलताई किसान आंदोलन से किसानों ने तमाम सकारात्मक परिणाम निकाले थे। 1998 के पहले मध्य प्रदेश में अनावरी तय करने की इकाई तहसील थी जिसके कारण मुलताई में मुआवजा नहीं दिया जा रहा था लेकिन आंदोलन के बाद सरकारों को इकाई बदलकर पटवारी हल्का करनी पड़ी। जिसके चलते राजस्व का मुआवजा पहले की तुलना में कहीं अधिक किसानों को मिलने लगा।
मुलताई किसान आंदोलन की बड़ी उपलब्धि फसल बीमा का भुगतान के तौर पर सामने आयी। फसल बीमा का प्रीमियम देशभर में किसानों से 1985 से काटा जा रहा था परंतु पहली बार फसल बीमा का भुगतान बैतूल जिले में 1998 में हुआ। तब से लेकर आज तक फसल बीमा का मुद्दा सभी सरकारों के लिए अहम मुद्दा बना हुआ है। हालांकि जिस तरह से फसल बीमा योजना चलाई जा रही है उससे बीमा कंपनियां लाखों करोड़ रुपये कमाकर मालामाल हो गई हैं परंतु पहले की तुलना में किसानों को अधिक फसल बीमा देने के लिए बीमा कंपनियां आज मजबूर हो गई हैं। किसान संघर्ष समिति आजकल सन 2020 का सोयाबीन की फसल का मुआवजा देने के लिए आंदोलन चला रही है।