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फिल्मी “राज” की नीति?

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शशिकांत गुप्ते

लोकतंत्र; जनतंत्र; प्रजातंत्र लोकशाही जमहूरियत और वर्तमान की बोलचाल की भाषा
में Democracy.
उक्त सारे शब्द एक दूसरे के
पर्यायवाची शब्द है।
उक्त शब्दों में देश की स्वतंत्रता के लिए दी गई असंख्य शहादत,असंख्य देशभक्तों का संघर्ष और देश प्रेम समाहित है।
उक्त शब्दों को मुंह से उच्चारते ही प्रत्येक देशवासी के अंतर्मन में स्वाभाविक ही देशभक्त होने का भाव जागृत होता है,और होना भी चाहिए।
देश की स्वतंत्रता के संघर्ष के दौरान और स्वतंत्रता के बाद देशभक्ति पर बहुत गीत लिखे गए,बहुत सी फिल्में बनी और भविष्य में भी बनेगी।
इनादिनो देश में जो भी कुछ हो रहा है,किया जा रहा है,उसे देख कर देशभक्ति पर निर्मित होने वाली फिल्मों का स्मरण होता है।
देशभक्ति की फिल्मों में अभिनेता देशी,और खलनायक का अभिनय करने वाले भी देशी ही होते हैं। देशी खलनायक ही देशद्रोही होने का अभिनय करते हैं,ये लोग देश को तबाह करने के सिर्फ संवाद ही नही बोलते हैं,बल्कि देश को आतंकित करने के लिए विस्फोट सामग्री,हथियारों का जखीरा भी एकत्रित करते हैं।
खलनायकों का अभिनय करने वालो के सहयोगी कलाकर भी डरावने क्रूरता के भाव वाले चहरों के मेकअप के साथ देश के दुश्मन होने का अभिनय करतें हैं।
इन सभी कलाकारों का अभिनय के लिए बाकायदा चयन होता है,और फिल्म में जो भी रोल करना होता है,उसके अनुसार मानधन भी तय होता है।
असली देशभक्त शायर बिस्मिल अज़ीमाबादी रचित रचना गाते हैं।
सरफ़रोशी की तमन्ना अब हमारे दिल में है
देखना है ज़ोर कितना बाज़ु-ए-कातिल में है…….
खैंच कर लायी है सब को कत्ल होने की उम्मीद,
आशिकों का आज जमघट कूच-ए-कातिल में है

फिल्मों में देशभक्त होने का अभिनय करने वाले गातें हैं।
दुनिया के हों लाख धरम पर अपना एक करम
चना जोर गरम
चना जोर गरम, बाबू मैं लाई मज़ेदार
चना जोर गरम
चना जोर गरम, बाबू मैं लाया मज़ेदार

उक्त नजारा देख यदि सच्चे देशभक्तों की आत्मा जागृत होगी तो वो क्या सोचती हाेगी?
उपर्युक्त कथन को पढ़ने समझने के बाद ऐसा प्रतीत होता है कि, राजनीति का फिल्मी करण हो गया है या फिल्मों का राजनीति करण हो गया है?
फिल्मों की निर्मिति में लगने वाला धन और राजनीति में व्यय होने वाला धन श्वेत या शाम रंग में कौनसे रंग का होता है,यह सर्वविदित है?
फिल्मों में आजादी के पिचहत्तर वर्षो के बाद भी पूर्ण रूप से सामंती मानसिकता को प्रश्रय दिया जाता हैं। गरीबों,श्रमिको,पर अन्याय के साथ अत्याचार की निर्ममता को दर्शाया जाता है।
गरीबों की बस्ती को बुलडोजर से नेस्तनाबूत करने के दृश्य फिल्माए जाते हैं।
फिल्मों और सियासत में अंतर खोजों?
पाठको पर उक्त प्रश्न छोड़ कर पूर्ण विराम।

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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