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*सियासी सिनेमा राजनैतिक फ़िल्म

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शशिकांत गुप्ते

फिल्मों में अभिनय करने के इच्छुकों कलाकारो का फ़ोटोसेशन होता है।फोटो सेशन के दौरान विभिन्न प्रकार आकर के वेश धारण कर विभिन्न तरह अभिनय करते हुए फ़ोटो शूट किए जातें हैं।
वर्तमान अत्याधुनिक तकनीक के दौर में कैमेरे की गुणवत्ता (Quality) में भी बहुत प्रगति हुई है।
सन 2014 से सियासत में भी फ़ोटो सेशन की शुरुआत हो गई है। वर्तमान सियासी फ़िल्म का मुख्य अभिनेता अपने इर्दगिर्द किसी सहायक अभिनेता को फटकने नहीं देता है।
फिल्मों में भी बहुत से अभिनेता सम्पूर्ण फ़िल्म में कैमरे को स्वयं पर भी केंद्रित रखतें हैं।
फिल्मों में जिस तरह गरीब निर्धन आदमी का रोल अदा करने के लिए अभिनेता, फ़िल्म निर्माता से अच्छीखासी रखम मांगता है।
सियासत में थोड़ा उलट पलट होता है। सियासी अभिनेता अभिनय के पूर्व सच में निर्धन होता है साथ ही रहन सहन और तकरीबन स्वभाव से भी गरीब रहता है।सियासत में सफल होने पर यकायक बेतहाशा सम्पत्ति का मालिक बन जाता है, और उसके स्वभाव में अभिमान आ जाता है।
इनदिनों चर्चा का विषय है,फ़िल्म उद्योग और सियासत की अंतरंगता?
फिल्म उद्योग में गुटबाजी के साथ पूँजी और व्यक्ति का महत्व सर्वविदित है।
सियासत में व्यक्तिवाद,पूँजीवाद
और गुटबाजी प्रचलन में है,यह निर्विवाद होते हुए भी सर्वविदित है।
फिल्म उद्योग में अभिनेता गरीब व्यक्ति का रोल अदा करने के लिए निर्माता से बाकायदा अनुबंध कर पेटियों और खोकों ( लाखों करोडों रुपयों) में मानधन की मांग करता है।
सियासत में नेता उद्योगपतियों से अलिखित अनुबंध कर जो मानधन प्राप्त करता है,उसे चंदा कहा जाता है। सियासतदान का उद्योगपतियों से जो अलिखत अनुबंध होता है,उसमें मौखिक रूप से गोपनीय करार होतें हैं।यह गोपनीय करार जिस भाषा में होतें है वह भाषा, खग ही जाने खग की भाषा होती है।
जिस तरह पौराणिक कथाओं पर आधारित निर्मित फिल्मों में तात्कालीन भौगोलिक स्थिति को दर्शाने के लिए तमाम टेलीफोन, बिजली के तार और खम्बों के साथ रेल की पटरियों को कैमरों के माध्यम से अदृश्य किया जाता है।
इसी तरह सियासी अभिनेता की विभिन्न कीमती वेशभूषाओं में शूटिंग के दौरान कैमरों में देश की गरीबी,बेरोजगारी,कुपोषण,
महंगाई बिगड़ती कानून व्यवस्था आदि को अदृश्य की जाता है।
सियासत के नए दौर में छप्पन इंच के मापदंड के लिए पचपन कैमरों के बाद भी तमाम कैमरों में उपर्युक्त बुनियादी समस्याएं नजरअंदाज की जाती है।
वैसे कैमेरा वही शूट करता है जो फोटोग्राफर शूट करता है। कंप्यूटर के युग में बहुत सी ऐसी तकनीक विकसित हुई है,जिससे फ़ोटो शूट करते समय बहुत कुछ बदला जा सकता है।
यह तकनीक राजनीति के लिए वरदान सिद्ध हो रही है।
जो भी हो रहा है या निहितस्वार्थ के लिए किया जा रहा है। बावजूद इसके यह बात सभी लोगों ने अच्छे से समझ लेना चाहिए कि,
सच्चाई छुप नहीं सकती बनावटी उसूलों से
खुशबू आ नहीं सकती कभी कागज़ के फूलों से

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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