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राजनेता चरित्रहीनता का ही पोषण करते दिखाई पड़ रहे हैं

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बिहार के बाहुबली आनंद मोहन की रिहाई पर सुप्रीम कोर्ट सुनवाई करेगा. तत्कालीन डीएम जिनकी हत्या के आरोप में आनंद मोहन जेल में थे उनकी धर्मपत्नी ने सर्वोच्च न्यायालय में रिहाई के विरुद्ध याचिका लगाई है. अपराध और अपराधी राजनीति के ढोल-नगाड़े जैसे हो गए हैं. कोई भी राजनीति बिना अपराधियों को प्रश्रय दिए क्या पूरी नहीं हो सकती? राजनीतिक नैतिकता तो यह कहती है कि बाहुबली अपराधियों और माफिया को संरक्षण देना तो दूर ऐसा करते  हुए दिखना भी नहीं चाहिए.

किसी नौजवान को डीएम बनने के लिए लगने वाली मेहनत का हर व्यक्ति अंदाजा भी नहीं लगा सकता. डीएम बनने के बाद उसकी हत्या हो जाना केवल उसके परिवार के लिए ही नहीं देश और समाज के लिए भी अपूरणीय क्षति मानी जाएगी. इसके लिए जिम्मेदार व्यक्ति न्यायालय के आदेश पर जेल में सजा भुगत रहा हो और कोई भी सरकार नियमों में कोई भी संशोधन कर यदि उसकी रिहाई करती है तो सवाल उठना लाजमी है.

राजनीतिक चरित्रहीनता इस सीमा तक पहुंच गई है कि सुशासन अब शीर्षासन करता दिख रहा है. चुनावी राजनीति में बेहतर संभावनाओं के लिए अपराधियों को जेलों से छोड़ने की रणनीति पर काम करना पड़े. अब सर्वोच्च न्यायालय सुनवाई करेगा तो निश्चित ही न्याय की उम्मीद की जा सकती है.

बिहार भगवान बुद्ध का प्रदेश है. इस प्रदेश में आज शांति के अलावा सब कुछ उपलब्ध है. राजनीतिक रूप से जागरुक इस प्रदेश में राजनीतिक चरित्रहीनता भी सबसे ज्यादा दिखाई पड़ती है. नीतीश कुमार देश में विपक्षी एकता के सूत्रधार बन रहे हैं. पिछले 18 सालों से बिहार में मुख्यमंत्री हैं. हर बार अलग-अलग दल और गठबंधन के साथ संबंध स्थापित कर मुख्यमंत्री की कुर्सी पर काबिज रहना उनकी सबसे बड़ी खूबी मानी जा सकती है. सामान्य जनजीवन में कोई भी संबंध इतनी बार जोड़े और तोड़े नहीं जा सकते जितनी बार उनके द्वारा राजनीतिक संबंध जोड़े और तोड़े गए हैं. इसे राजनीतिक चरित्रहीनता नहीं तो क्या कहा जाएगा? 

चरित्रहीनता एक जीवन शून्यता होती है. इसे पहचानने की जरूरत होती है. देश समाज और व्यक्ति के चरित्र को लेकर आये दिन पाठ पढ़ाए जाते हैं. पाठ पढ़ाने वाले यही राजनीतिज्ञ होते हैं. जिनका खुद का कोई चरित्र दिखाई नहीं पड़ता. लोगों का दुख बदलते चरित्र का दुख है. चरित्र से खाली हृदय में चरित्रहीनता निर्द्वंद विराजमान होती है. ईश्वरहीन और सत्यहीन होती राजनीति का बड़ा कारण राजनीतिक चरित्रहीनता ही है.

बाहुबली आनंद मोहन पर तत्कालीन डीएम की हत्या का आरोप है. उन्हें पहले फांसी की सजा दी गई थी जिसे बाद में आजीवन कारावास में बदल दिया गया था. बिहार सरकार में ऐसा नियम था कि जघन्य अपराध में आजीवन कारावास पाए व्यक्ति अपना पूरा जीवन जेल में ही बिताएंगे. लोकसेवकों की सेवा के दौरान हत्या को जघन्य अपराध के रूप में अधिसूचित किया गया था. इसी अधिसूचना को बिहार सरकार द्वारा बदला गया है.

लोकसेवकों की हत्या के मामले को जघन्य अपराधों की श्रेणी से हटा दिया गया है. नीतीश सरकार के इस निर्णय का फायदा उठाकर आनंद मोहन सहित 27 दूसरे हत्या के आरोपियों को रिहाई मिल गई है. रिहा होने वाले सभी अपराधी लंबी सजा भुगत चुके हैं लेकिन ऐसे अपराधियों को किसी सहानुभूति का हक नहीं है जिन्होंने लोकसेवकों की बर्बर ढंग से हत्या की हो.

ऐसे बाहुबलियों का भय शासन-प्रशासन और लोकसेवकों पर आगे भी जारी रह सकता है. ऐसे अपराधियों के खुलेआम फिर से सक्रिय होने पर शासन प्रशासन की गुणवत्ता प्रभावित होगी. रिहाई पर जो राजनीतिक प्रतिक्रियाएं आ रही हैं उनको देखकर ऐसा लगता है कि बिहार सरकार द्वारा यह निर्णय अपराधियों के जातिगत गणित को देखते हुए आगामी चुनाव में राजनीतिक लाभ के लिए लिया गया है.

नीतीश कुमार अब विपक्षी एकता के लिए काम कर रहे हैं. बिहार की राजनीतिक चरित्रहीनता की राजनीति क्या पूरे देश में लागू होने का समय आ गया है? जो राजनीति देश और समाज के लिए कल्याणकारी मानी जाती है वही राजनीति आज देश और समाज को गलत संदेश और उदाहरण दे रही है. अपराधियों और माफियाओं का बोलबाला कमोबेश हर दौर में बना रहता है. माफियाओं को लेकर राजनीतिक गैंगवार की स्थिति बनती दिखाई पड़ती है. 

अलग-अलग राज्यों में बाहुबली और माफियाओं को लेकर अलग-अलग दृश्य दिखाई पड़ते हैं. लोकतंत्र के लिए यह शुभ संकेत हो सकता है कि माफियाओं पर कार्यवाही अब राजनीति का मुद्दा बनने लगी है. यूपी में तो माफियाओं का सफाया मतदाताओं को पसंद आने लगा है. बिहार में जंगलराज की शिकायतें आम हुआ करती हैं. एक ही व्यक्ति अलग-अलग समय में अलग-अलग धारा से  जुड़कर सियासत की ऐसी धारा चलाने में सफल रहा जो कि शांतिपूर्ण समाज की धारा नहीं कही जा सकती.

राजनीति में भ्रष्टाचार, बाहुबली और माफिया ज्वलंत मुद्दा बने हुए हैं. राजनीति में इतना चरित्र बचा ही नहीं है कि कोई अपनी गलती मानने का साहस दिखा सके. राजनीति दूसरे को गलत साबित करने पर ही टिकी हुई है. नैतिकता और शुचिता राजनीति से गायब हो गए हैं. तत्कालीन डीएम कृष्णा का परिवार जिन विपरीत परिस्थितियों में अपना जीवन यापन कर रहा है उसके लिए क्या हमारी राजनीतिक व्यवस्था दोषी नहीं है और वही राजनीतिक व्यवस्था आज उनके हत्यारों को रिहाई पर आनंद मना रही है.

कुछ लोग चरित्र प्रमाणपत्र बांटते  हैं. ऐसे लोग अपने जीवन में कभी भी नहीं झांकते. अनर्गल बातें करना और दूसरों को दोषी ठहराना उनका जीवन चरित्र बन जाता है. सिर्फ स्त्री-पुरुष के संबंध के पैमाने से चरित्र को परखना ही चरित्रहीनता नहीं है. चरित्रहीनता लोगों के सपनों को मार डालना है. चरित्रहीनता अपने अहंकार को पुष्ट करना है. सेवा के संस्कार का पालन नहीं करना, कर्तव्य निर्वहन में स्वार्थ का पुट होना भी चरित्रहीनता ही कहा जाएगा.

राजनीति में श्रेष्ठता का दंभ पालने वाले तमाम राजनेता अपने कामकाज और शासन-प्रशासन से राजनीतिक चरित्रहीनता का ही पोषण करते दिखाई पड़ रहे हैं. तत्कालीन डीएम का परिवार बिहार की राजनीतिक चरित्रहीनता का कष्ट नहीं भोगे यही लोकतंत्र के लिए मंगलकारी होगा.

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