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राजनीति और लोकतंत्र?

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शशिकांत गुप्ते

सीतारामजी और राधेश्यामजी की आपस में बहस हो रही थी।
बहस का मुद्दा है लोकतंत्र और राजनीति
राधेश्यामजी राजनीति को कोस रहे थे,और कह रहे थे कि, अपने देश में लोकतंत्र विफल है।
सीतारामजी ने राधेश्यामजी से पूछा, अपन स्वयं के ज़ेहन में झांक कर देखो और यह स्पष्ट रूप से समझलो की अपन, मानव है या पशु?
राधेश्यामजी को गुस्सा आ गया कहने लगे अपने मानव होने में कोई संदेह ही नहीं होना चाहिए।
सीतारामजी कहा यही मै भी कहना चाहता हूँ यदि हम मानव है तो हमें हाँकने वाले चरवाहे की क्या आवश्यकता है?
सीतारामजी ने कहा राजनीति को बुराभला कहने वाले निराशावादी सोच रखने वाले लोग होतें हैं।
इसी मानसिकता के लोग घर की चारदिवारी में बैठ कर सुविधाभोगी मानसिकता से ग्रस्त होकर,पारिवारिक, सामाजिक और राष्ट्र के प्रति अपने कर्तव्य से विमुख होकर राजनीति को कोसते हैं। यह इन लोगों का शग़ल होता है।
प्रख्यात समाजवादी विचारक, चिंतक,गांधीजी के आदर्शों को आमलीजामा पहनाने वाले स्वतंत्रता सैनानी डॉ राममनोहर लोहियाजी ने कहा है हर तरह की बुराई का विरोध करना ही राजनीति है।
बहुत से साहित्यकार साहित्य में सामाजिक परिवर्तन के लिए व्यंग्य, कविता,लघुकथा और लेख लिखतें हैं लेकिन स्वयं की सोच को बदल ही नही पातें है। इन लोगो की सोच यथास्थितिवादी ही बनी रहती है।
राजनीति नीतिनिर्धारण का मोर्चा है। जिस दल की सत्ता होती है उसकी विचारधारा के अनुरूप उसकी नीति होती है और वैसे नीति का निर्धारण होता है।
प्रख्यात गांधीवादी,आदिवासियों के मसीहा स्वतंत्रता सैनानी मामा बालेश्वरजी कहते थे नीति और नीयत पर सतत बहस होना चाहिए।
मान लो कि, देश की जन संख्या एक सौ पैंतीस करोड़
है,तो यह भी समझना जरूरी है कि, मै स्वयं एक बटा एक सौ पैंतीस करोड़ हूँ। मैं भी देश का एक अंग हूँ।
राजनीति में परिवारवाद को लेकर बहुत आलोचना की जाती है।
डॉक्टर का लड़का डॉक्टर ही बनता है। इंजीनियर का लड़का इंजीनियर ही बनता है। उद्योगपतियों की पीढ़ी-दर-पीढ़ी उद्योग में सलग्न रहती है।
यह एक स्वाभाविक प्रक्रिया है।
निष्पक्षता से विचार करने पर कॉंग्रेस के परिवारवाद की आलोचना करना ग़लत है।
कॉंग्रेस के परिवारवाद की आलोचना करते समय हम व्यक्तिगत आरोप करने लगतें हैं। जब की हम भूल जातें हैं कि, नेहरूजी स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय भूमिका निभाते हुए लगभग ग्यारह वर्ष जेल में रहें हैं। इसी परिवार की इंदिराजी और राजीवजी ने शहादत दी है।
वैचारिक भिन्नता और वैमनस्यता के अंतर को समझना जरूरी है।
परिवारवाद का जो दल ज्यादा विरोध करता है, उसके स्वयं के दल के लोगों ने अपने परिवार के सदस्यों राजनीति में लाभार्थी बनाया है। लंबी फेरहिस्त है।
सीतारामजी ने कहा सबसे पहले तो यह बात अपने ज़ेहन में साफ कर लेनी चाहिए कि, राजनीति सिर्फ राजनीति नहीं है, यह राजनीति शास्त्र है (Political science) है। जो विश्वविद्यालय में पढ़ाया जाता है।
सीतारामजी ने कहा स्वयं को बुद्धिजीवी समझना और लोकतंत्र का भरपूर लाभ उठाने के बाद लोकतंत्र को कोसना कथित बुद्धिजीवियों का फैशन है। वास्तव में यदि कोई बुद्धिजीवी है,तो उसका तो बुराइयों से लड़ने के लिए Paission पैशन मतलब जुनून होना चाहिए।
कोई भी शास्त्र बुरा नहीं होता है।
उदाहरणार्थ यदि चिकित्सा शास्त्र के विद्यार्थी चिकित्सा को सेवा न समझते हुए उसका व्यापार करने लग जाएं तो इसमें चिकित्सा शास्त्र का दोष कैसे होगा?
व्यवहारिक धरातल पर होता क्या है,उदाहरणार्थ एक घड़ी विक्रेता अपने बेटे के साथ सुबह जब मंदिर जाता है और मंदिर में स्थापित भगवान की मूर्ति के आगे नतमस्तक होता है। बेटे को आचरण की सभ्यता का पाठ पढ़ता है। सत्य की राह पर चलने का उपदेश देता है, वही घड़ी विक्रेता दुकान में ग्राहक से कहता है,यदि चार घड़ी एक साथ लेनी हो तो दो का बिल मिलेगा और दो बगैर बिल की। यह सुन बेटा मानसिक रुप से दुविधा में आ जाता है?
सीतारामजी की बात सुनकर राधेश्यामजी ने कहा मेरे सारे भ्रमों का आपने दूर कर दिया धन्यवाद।
सीतारामजी ने वार्ता खत्म होने पर मेरी ओर देखा मैने उनके बीच सम्पन्न हुई वार्ता का वृतांत जस का तस लिख कर उनके समक्ष प्रस्तुत किया।
सीतारामजी ने कहा बधाई आज भी आपका लेख तैयार हो गया।

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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