अग्नि आलोक

पेसा कानून पर गरमाई राजनीति

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कुमार कृष्णन

लंबे जन संघर्ष के बाद 1996 में देश में पंचायत के प्रावधान (अनुसूचित क्षेत्रों में विस्तार) अधिनियम, जिसे पेसा के नाम से जाना जाता है, लागू हुआ। मध्य प्रदेश के झाबुआ से सांसद रहे दिलीप सिंह भूरिया की अध्यक्षता में समिति बनी थी, उसकी अनुशंसा पर ही यह मॉडल कानून बना था। इस क़ानून के अनुसार, पांचवीं अनुसूची के क्षेत्रों में पंचायती राज व्यवस्था को आदिवासी समुदायों के गांव, समाज, पारंपरिक स्वशासन व्यवस्था और संस्कृति के अनुरूप लागू किया जाना है। अनुसूचित क्षेत्र ऐसे स्थान हैं जहां मुख्य रूप से आदिवासी समुदायों का वर्चस्व है। ये क्षेत्र 73वें संविधान संशोधन या पंचायती राज अधिनियम के अंतर्गत नहीं आते थे। पेसा अधिनियम का उद्देश्य भारतीय संविधान के भाग IX के प्रावधानों को अनुसूचित क्षेत्रों तक विस्तारित करना है। यह पंचायतों और ग्राम सभाओं को इन क्षेत्रों में स्वशासन की प्रणाली को लागू करने में सक्षम बनाता है।पांचवीं अनुसूची आदिवासियों की स्वशासन प्रणाली के संरक्षण और उनके सामाजिक, आर्थिक व राजनैतिक विकास के लिए संवैधानिक ढांचा देती है।पेसा स्पष्ट रूप से कहता है कि आदिवासी समुदाय की समझ एवं परंपरा के अनुसार ‘गांव’ को परिभाषित किया जाना है।गांव की ग्राम सभा, जिसमें गांव के सभी मतदाता सदस्य होंगे, ही सामुदायिक संपत्तियों जैसे जल, जंगल, ज़मीन आदि की मालिक होगी। गांव में किसी प्रकार का भी विकास का कार्य ग्राम सभा की अनुमति से ही किया जाएगा।ग्राम सभा का निर्णय और राय सर्वोच्च माने जाएंगे।

यह अधिनियम अनुसूचित क्षेत्र में एक गांव के लिए ग्राम सभा की स्थापना की अनुमति देता है। प्रत्येक ग्राम सभा एक स्वायत्त निकाय के रूप में कार्य करेगी जो अनुसूचित क्षेत्र के कुछ पहलुओं, विशेष रूप से संसाधन प्रबंधन करती है। यह अधिनियम ग्राम पंचायतों को उन मामलों पर निर्णय लेने की भी अनुमति देता है जो सरकारी योजनाओं के कार्यान्वयन के साथ-साथ लघु वन उपज, भूमि और छोटे जल निकायों से संबंधित हैं। जिसे अनुसूचित क्षेत्रों में बंधुआ मजदूरी की प्रथा के उन्मूलन के लिए प्रवासी मजदूरों का रिकॉर्ड भी रखने का भी अधिकार देता है।देश के सात आदिवासी बहुल राज्यों ने इसे लागू कर दिया है।इसमें ग्राम सभा को अधिकार दिये जाने का प्रावधान है। झारखंड में होनेवाले विधानसभा चुनाव से पहले एक बार फिर आदिवासियों के अधिकार को लेकर पेसा एक्ट, 1996 यानी पंचायत एक्सटेंशन टू शिड्यूल एरिया का मामला गरमाने लगा है

।कई जगह नारा गुंजने लगा है- पहले पेसा कानून फिर वोट, नहीं पेसा कानून तो नहीं वोट। राज्यपाल संतोष गंगवार भी कह चुके हैं कि राज्य में पेसा कानून लागू करने की जरूरत है। वहीं झारखंड दौरे पर आयी राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति आयोग के अध्यक्ष अंतर सिंह आर्या ने कहा कि आने वाले समय में राज्य सरकार झारखंड में पेसा कानून लागू करें। झारखंड में आदिवासियों की जमीन गैर आदिवासियों को हस्तांतरित हो रही है।झारखंड में इस प्रकार का अन्याय नहीं होना चाहिए।गांव के गांव खाली हो गए हैं।उन्होंने कहा कि देश के 10 राज्यों में पेसा कानून लागू है, लेकिन झारखंड में नहीं।


हालांकि आदिवासी बुद्धिजीवी मंच पी-पेसा एक्ट के तहत नियमावली की बात कर रहा है। यहां पी— पेसा में पी का मतलब उन 23 प्रावधान से है, जो अनुसूचित क्षेत्रों को विशेष अधिकार देता है।
यह मामला इसलिए भी गंभीर हो गया है क्योंकि 29 जुलाई 2024 को आदिवासी बुद्धिजीवी मंच की जनहित याचिका पर सुनवाई के बाद झारखंड हाईकोर्ट ने दो माह के भीतर पेसा नियमावली अधिसूचित करने का आदेश दिया है। यह मियाद कुछ दिन में पूरी होने वाली है। लेकिन पंचायती राज विभाग की ओर से अभी तक नियमावली को लेकर तस्वीर साफ नहीं की गई है। बहुत जल्द झारखंड में विधानसभा का चुनाव होना है।इसलिए आदिवासियों के हक की लड़ाई लड़ने वाले बुद्धिजीवी संगठनों ने सरकार को घेरना शुरू कर दिया है।
आदिवासी बुद्धिजीवी मंच के विक्टर मालतो का कहना है कि झारखंड में जब पी-पेसा के तहत नियमावली बनी ही नहीं है तो फिर अनुसूचित क्षेत्रों में ग्राम सभा कैसे गठित हो सकती है। स्पष्ट है कि फर्जी ग्रामसभा बनाकर जमीन अधिग्रहण, बालू घाटों की नीलामी हो रही है, जो संविधान के खिलाफ है। इससे अदिवासियों का हक छीना जा रहा है। यही नहीं फर्जी ग्राम सभा के जरिए डीएमएफटी और ट्राइबल सब प्लान के फंड का दुरुपयोग हो रहा है।


विक्टर मालतो के अनुसार तीन तरह की ग्राम सभाएं होती हैं। एक अनुच्छेद 243(ए) के तहत ग्राम सभा होती है जो ग्राम पंचायत के माध्यम से चलती है। दूसरा वनाधिकार अधिनियमौ, 2006 के तहत ग्राम सभा होती है जो जमीन आवंटन के लिए होती है। तीसरी ग्राम सभा पारंपरिक होती है,जो संसद से पारित पेसा कानून के तहत चलती है।लेकिन राज्य सरकार इस संवैधानिक अधिकार का उल्लंघन कर रही है। इसलिए हाईकोर्ट का दरवाजा खटखटाया गया। तब कोर्ट ने हमारे हक में आदेश पारित करते हुए राज्य सरकार को दो माह के भीतर पी-पेसा के तहत नियमावली अधिसूचित करने का आदेश दिया है।


पंचायती राज विभाग की निदेशक निशा उरांव का कहना है कि- अनुसार ड्राफ्ट नियमावली को लेकर जनजातीय अनुसंधान संस्थान (टीआरआई) से सुझाव लिए गये थे। इसके अलावा 14 विभागों का भी मंतव्य लिया गया था। इसके बाद अगस्त 2023 में ड्राफ्ट नियमावली प्रकाशित की गई थी। इस आधार पर करीब 400 अतिरिक्त सुझाव आए। इनमें से 267 सुझाव लिए जा चुके हैं। इस मामले में विधि विभाग से भी सहमति मिल गई है। इसी बीच ट्राइबल एडवाइज़री कमेटी में भी बात उठी।कुछ विधायकों की ओर से आपत्तियां भी आईं। उन आपत्तियों पर मंथन किया जा चुका है।
निदेशक निशा उरांव के मुताबिक इस मसले पर मुख्य सचिव के स्तर पर एक और समीक्षा संभव है। कोर्ट के आदेश के आलोक में फाइनल नियमावली जारी करने की तो सरकार के स्तर पर कोर्ट में राय प्रस्तुत की जाएगी। उन्होंने यह भी कहा कि आदिवासी बुद्धिजीवी मंच के जो सुझाव हैं वो सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट के 2010 और 2017 के आदेश के दायरे में नहीं आते हैं।
पेसा के तहत ग्राम सभा को सशक्त बनाने के लिए मॉड्यूल बनाने को लेकर केंद्र सरकार के पंचायती राज मंत्रालय ने 15 मार्च 2024 को एक आदेश जारी किया था। इसके तहत लघु वन उत्पाद, लघु खनिज, भूमि के हस्तांतरण की रोकथाम, शराब और नशीले पदार्थों के सेवन पर प्रतिबंध, धन उधार देने पर नियंत्रण, प्रथागत तरीके से विवाद के समाधान जैसे छह बिंदुओं पर अलग-अलग कमेटी गठित कर ग्राम सभा को मजबूत करने के लिए मॉड्यूल बनाने को कहा था। मंत्रालय ने 30 जून 2024 तक ड्राफ्ट मॉड्यूल और 15 जुलाई 2024 तक फाइनल एसओपी ड्राफ्ट तैयार करने को कहा था। इस मामले में मॉड्यूल तैयार हो चुका है और चयनित मास्टर ट्रेनर को प्रशिक्षित किया जा रहा है। यही ट्रेनर ग्राम प्रधान को तमाम विषयों पर जागरूक करेंगे।
दरअसल, 1992 में 73वें संविधान संशोधन के तहत त्रि-स्तरीय पंचायती राज संस्था को कानूनी रूप मिला था। लेकिन इसमें आदिवासी बहुल (शिड्यूल एरिया) के लिए कोई प्रावधान नहीं था। इसलिए 1992 में पेसा (पंचायत एक्सटेंशन टू शिड्यूल एरिया) एक्ट कानून को संसद ने पारित किया। यह कानून शिड्यूल एरिया में पेसा के तहत ग्राम सभाओं को विशेष शक्ति देता है।
लगातार बढ़ते दबाव के बीच पंचायती राज विभाग ने 26 जुलाई 2023 को पेसा नियम को लेकर गजट प्रकाशित कर आम लोगों से राय मांगी। इस नियमावली को झारखंड पंचायत उपबंध अनुसूचित क्षेत्रों पर विस्तार नियमावली , 2022 नाम दिया गया।इसके जरिए शिड्यूल एरिया के ग्राम सभाओं को लघु वन उत्पाद, लघु खनिज, भूमि के हस्तांतरण की रोकथाम, शराब और नशीले पदार्थों के सेवन पर प्रतिबंध, धन उधार देने पर नियंत्रण, प्रथागत तरीके से विवाद के समाधान के अधिकार को जोड़ा गया। लेकिन इसको आजतक अंतिम रूप नहीं दिया गया है।
देश में पांचवी अनुसूची में छत्तीसगढ़, झारखंड, ओडिशा, मध्य प्रदेश, आंध्र प्रदेश, तेलंगाना, महाराष्ट्र, हिमाचल प्रदेश, राजस्थान और गुजरात समेत कुल 10 राज्य शामिल हैं। झारखंड में 24 में से 13 जिले अनुसूचित क्षेत्र में आते हैं। इनमें रांची, गुमला, लोहरदगा, सिमडेगा, लातेहार, पश्चिमी सिंहभूम, पूर्वी सिंहभूम, सरायकेला-खरसांवा, दुमका, साहिबगंज, जामताड़ा, पाकुड़ के अलावा पलामू जिला के सतबरवा प्रखंड के रबदा और बकोरिया पंचायत के साथ-साथ गोड्डा जिला के सुंदरपहाड़ी और बोआरीजोर प्रखंड शामिल हैं। लेकिन अभी तक इन क्षेत्र के लोगों को पी-पेसा के तहत अधिकार नहीं मिला है। सबसे बड़ी बात है कि फाइनल नियमावली नहीं बनने पर केंद्र से मिलने वाला फंड मिलना बंद हो सकता है।
सोरेन सरकार अगर नवंबर-दिसंबर 2024 में होने वाले चुनावों से पहले पेसा को लागू करने में सफल हो जाती है, तो राज्य में आदिवासी मतदाताओं का दिल जीतने में सफल हो सकती है।

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