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भक्ति और भावना का खेल नहीं है राजनीति

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( गोपाल राठी )

मेरी नरेंद्र भाई से कोई  व्यक्तिगत दुश्मनी नहीं है और ना कोई प्रतिस्पर्धा. लेकिन मेरा मानना है कि एक प्रधानमंत्री के रूप में वे असफल साबित हुए है.  उनके कार्यकाल की असफ़लता को सामने लाना ,उस पर सवाल उठाना मोदी का अंध विरोध नहीं बल्कि एक सजग नागरिक के रूप में इस लोकतांत्रिक व्यवस्था में मेरा हस्तक्षेप है l मोटी बुद्धि के भक्त गण ये समझते है कि जैसे हमने गप्पू  का विरोध करने के लिए पप्पू से सुपारी ले रखी है l हम पूंजीवादी मुनाफाखोरी ,लूट  और निजीकरण , विदेशीकरण  के विरोधी तब भी थे जब कांग्रेसी सरकार थी l हर तरह की गैरबराबरी और शोषण के खिलाफ हम तब भी थे आज भी है l साम्प्रदायिकता ,जातिवादी शक्तियों का हमने हमेशा प्रतिकार किया है और करते रहेंगे सरकार किसी की भी हो क्या फर्क पड़ता है l  हर तरह की संकीर्णता ,झूठ ,पाखंड के खिलाफ वैज्ञानिक चेतना से लैस होकर मैदान में डटे रहेंगे चाहे प्रधानमंत्री कोई भी हो l  1991 में जब नरसिंहराव सरकार नई आर्थिक नीतियां लेकर आई थी तब इन पूंजीवाद परस्त गरीब किसान मजदूर विरोधी नीतियों का विरोध करने सबसे अग्रिम दस्ते में हम ही खड़े थे l 

इसलिये प्यारे भक्तो राजनीति को मुद्दे से मत भटकाओ ,मोदी – राहुल में मत अटकाओ  क्योकि ये देश मोदी राहुल से बहुत बड़ा है l हिन्दू – ,मुसलमान में मत उलझाओ l बात नीतियों की करो , मुद्दों की करो , अपनी प्राथमिकताओं की करो , अपनी उपलब्धियों की करो ,देश के सामने जो चुनौती है उसकी करो l देश को तोड़ो मत जोड़ो l देश हित के मुद्दों पर आमसहमति बनाकर काम करने की संस्कृति विकसित करो  l विपक्ष को गरियाओ मत ,बदनाम मत करो , उन्हें विश्वास में लेकर नया भारत बनाओ 

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