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सियासत नहीं है तिज़ारत

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शशिकांत गुप्ते

मरीजे-इश्क़ पर रहमत खुदा की,*
मर्ज़ बढ़ता गया ज्यों-ज्यों दवा की,.,!!!
शायर हैं “मीर तकिं मीर

उक्त शेर प्यार में बीमार हुए मरीज़ के लिए व्यंग्यात्मक लिखा है।
इनदिनों में जनता के साथ यही हो रहा है। जिन्होंने जनता की हर एक समस्या के लिए प्रलोभन युक्त दावे किए थे,वे लोग समस्याओं को हल करने के लिए जो भी निर्णय ले रहें हैं,वह सारे निर्णय उल्टे पड़ रहें हैं।नतीजा जन समस्याएं हल होने के बजाए बढ़ती जा रही है।
असल में मरीज़ की बीमारी दूर करने के लिए योग्य और अनुभवी चिकित्सक चाहिए।
झोलाछाप डॉक्टरों से कभी भी अच्छे इलाज की उम्मीद नहीं रखना चाहिए। एक बहुत पुरानी कहावत है नीम हकीम खतरा-ए-जान। इसका अर्थ यह है कि ऐसा व्यक्ति जिसके पास डॉक्टरी का अधूरा ज्ञान है वह आपकी जान खतरे में डाल सकता है। इसलिए लगातार यह कहा जाता है कि बीमारी का इलाज हमेशा प्रशिक्षित चिकित्सक से ही कराना चाहिए। स्वयं या फिर किसी झोलाछाप डाक्टर को इलाज की जिम्मेदारी नहीं सौंपनी चाहिए। बावजूद इसके अशिक्षा व अंधविश्वास के चक्कर में फंस कर अक्सर हम अपनों की जिंदगी खतरे में डाल देते हैं।
राजनीति कोई व्यापार नहीं होती है। जनसमस्याओं को हल करना मतलब खरीदना बेचना नहीं होता है। नीति गत निर्णय लेकर साफ सुथरी नीयत रखतें हुए समस्याओं का स्थाई हल निकालने की पहल होनी चाहिए।
वर्तमान में तो सब उल्टा हो रहा है। सियासत तिज़ारत बन गई है।
इनदिनों यही हो रहा है।आज यह बेंच दिया कल वह बेचना है।
किसी शायर ने क्या खूब कहा है।
ये दुनिया तो है जैसे सूरत ए बाज़ार है
किसको खबर कल किसे नीलाम किया जाए

इसीलिए यह कहावत महत्वपूर्ण साबित होती है कि,
पूत सपूत तो क्यों धन संचय
पूत कपूत तो क्यों धन संचय
सपूत होगा तो वह स्वयं में ही धनार्जन की क्षमता पैदा करेगा।सपूत पुरखों के द्वारा कठिन संघर्ष के अर्जित धन सम्पदा मान सम्मान को सहेज कर रखेगा और ईमानदारी से परिश्रम कर पुरखों द्वारा अर्जित सम्पदा को दुगुनी चौगुनी करने का प्रयास करेगा।
कपूत तो पुरखों की मेहनत की कमाई को बेशर्मी से स्वयं की विलासिता पर खर्च कर देगा।
इसीलिए कहा गया है कि,
सब कुछ लुटा के होंश में आए तो क्या किया
अनुभव किताबो में नहीं मिलता है।
किसी चिंतक के द्वारा लिखा यह सुविचार है।
बहुत खोजा मगर किताबों में नहीं पाया
जो बुजुर्गों ने अपने अनुभव से सिखाया

शिक्षा प्राप्त करने के लिए कोई उम्र नहीं होती इंसान ताजिंदगी सीख सकता है बशर्ते कि, वह अभिमान को त्याग दे।

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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