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बिहार में रिहाई की सियासत

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27 अप्रैल, 2023 को ही राज्य दंडादेश पर्षद ने आनंद मोहन को रिहा करने के आदेश देने के साथ ही 26 अन्य सजायाफ्ताओं को रिहा करने का आदेश दिया। इनमें आनंद मोहन के अलावा अवधेश मंडल, अशोक यादव, किरथ यादव, मनोज प्रसाद महतो आदि ऐसे कैदी हैं, जिनका प्रभाव स्थानीय राजनीति में महत्वपूर्ण माना जा रहा है

पूर्व सांसद व बिहार पीपुल्स पार्टी के संस्थापक आनंद मोहन अब 75 साल के हो चुके हैं। उन्हें 3 अक्टूबर, 2007 को गोपालगंज के भूतपूर्व जिलाधिकारी जी. कृष्णैया की हत्या के आरोप में उम्र कैद की सजा सुनाई गई थी। मामला 1994 का है जब एक भीड़ ने जी. कृष्णैया की हत्या कर दी थी। आनंद मोहन पर भीड़ को हत्या के लिए उकसाने का दोष सिद्ध हुआ था। अब उन्हें बिहार सरकार ने रिहा कर दिया है। इसे लेकर जहां एक ओर सूबाई राजनीति उफान पर है, वहीं दूसरी ओर आनंद मोहन की रिहाई का मामला अब सुप्रीम कोर्ट पहुंच गया है। जी. कृष्णैया की पत्नी उमा कृष्णैया ने सुप्रीम कोर्ट में याचिका दायर कर दिया है। उनका तर्क है कि उम्र कैद की सजा को 14 साल की सजा में नहीं बदला जा सकता है। सुप्रीम कोर्ट इस मामले में आगामी 8 मई, 2023 को सुनवाई करेगा।

खैर, बिहार की राजनीति में ‘आनंद मोहन’ बीते दो साल से फैक्टर बनाए जा रहे थे। दो साल पहले भाजपा के नेताओं द्वारा आनंद मोहन को रिहा कराने की कोशिशें की जा रही थीं। इसकी वजह उत्तर भारत में राजपूत बिरादरी का वोट बैंक था। 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा नेताओं के द्वारा उत्तर बिहार के राजपूतों को यह आश्वासन दिया गया था कि आनंद मोहन को जल्द ही रिहा किया जाएगा। उनके इस आश्वसन का लाभ भी उन्हें मिला। लेकिन तब दो पेंच थे। एक पेंच था जेल मैनुअल में वर्ष 2002 में तत्कालीन राबड़ी देवी सरकार द्वारा किया गया संशोधन, जिसके तहत राज्य दंडादेश परिहार पर्षद को ऐसे दोष सिद्ध अपराधी को रिहा करने से रोक दिया गया था, जिसने किसी सरकारी अधिकारी अथवा कर्मचारी की हत्या की हो या संलिप्त रहा हो। दूसरा पेंच यह कि अदालत ने आनंद मोहन को उम्र कैद की सजा सुनाई थी, जो जेल मैनुअल के हिसाब से कम-से-कम 14 वर्ष की मानी जाती है। 

ध्यातव्य है कि 27 अप्रैल, 2023 को ही राज्य दंडादेश पर्षद ने आनंद मोहन को रिहा करने के आदेश देने के साथ ही 26 अन्य सजायाफ्ताओं को रिहा करने का आदेश दिया। इनमें सबसे अधिक उम्र के कैदी पतिराम राय रहे, जिनकी उम्र 93 साल है। उन्हें मुक्त कारागार, बक्सर से रिहा किया गया। उन्हें 16 जनवरी, 1998 को सिमरी थाना कांड संख्या – 02/7/78 के मामले में उम्रकैद की सजा सुनाई गई थी। जाति के आधार पर देखें तो 27 रिहा किये गये अपराधियों में करीब 70 फीसदी गैर-सवर्ण हैं। इनमें आनंद मोहन के अलावा अवधेश मंडल, अशोक यादव, किरथ यादव, मनोज प्रसाद महतो आदि ऐसे कैदी हैं, जिनका प्रभाव स्थानीय राजनीति में महत्वपूर्ण माना जा रहा है।

क्रमकैदी का नामउम्रजेल जाति/वर्ग**
1.दस्तगीर खान74मंडल कारा, अररियाअशराफ/सवर्ण
2.पप्पू सिंह ऊर्फ राजीव रंजन सिंह*43केंद्रीय कारा, मोतिहारीराजपूत/सवर्ण
3.अशोक यादव* 45मंडल कारा, लखीसराययादव/ओबीसी
4.शिवजी यादव*42आदर्श केंद्रीय कारा, बेऊर, पटनायादव/ओबीसी
5.किरथ यादव65विशेष केंद्रीय कारा, भागलपुरयादव/ओबीसी
6.कलक्टर पासवान ऊर्फ घुरफेकन45मंडल कारा, आरापासवान/दलित
7.राज वल्लभ यादव ऊर्फ बिजली82मुक्त कारागार, बक्सरयादव/ओबीसी
8.किशुनदेव राय55मुक्त कारागार, बक्सरयादव/ओबीसी
9.सुरेंद्र शर्मा68केंद्रीय कारा, गयाभूमिहार/सवर्ण
10.देवनंदन नोनिया*48केंद्रीय कारा, गयानोनिया/अति पिछड़ा
11.आनंद मोहन75मंडल कारा, सहरसाराजपूत/सवर्ण
12.रामप्रवेश सिंह69केंद्रीय कारा, गयाअज्ञात
13.विजय सिंह ऊर्फ मुन्ना सिंह59केंद्रीय कारा, मुजफ्फरपुरराजपूत/सवर्ण
14.रामाधार राम* 50मुक्त कारागार, बक्सरचमार/दलित
15.पतिराम राय93मुक्त कारागार, बक्सरभूमिहार/सवर्ण
16.मनोज प्रसाद महतो57आदर्श केंद्रीय कारा बेऊर, पटनाकोइरी/ओबीसी
17.हृदयनारायण शर्मा ऊर्फ बबुन शर्मा 55केंद्रीय कारा, गयाभूमिहार/सवर्ण
18.पंचा उर्फ पंचानंद पासवान43शहीद जुब्बा साहनी, केंद्रीय कारा, भागलपुरपासवान/दलित
19.जितेंद्र सिंह78मुक्त कारागार, बक्सरराजपूत/सवर्ण
20.चंदेश्वरी यादव83शहीद जुब्बा सहनी, केंद्रीय कारा, भागलपुरयादव/ओबीसी
21.खेलावन यादव85मंडल कारा, बिहारशरीफयादव/ओबीसी
22.अल्लाउद्दीन अंसारी42विशेष केंद्रीय कारा, भागलपुरपसमांदा/ओबीसी
23.हलीम अंसारी57विशेष केंद्रीय कारा, भागलपुरपसमांदा/ओबीसी
24.अख्तर अंसारी 52विशेष केंद्रीय कारा,  भागलपुरपसमांदा/ओबीसी
25.मो. खुदबुद्दीन36विशेष केंद्रीय कारा,  भागलपुरपसमांदा/ओबीसी
26.सिकंदर महतो 44मंडल कारा, कटिहारकोइरी/ओबीसी
27.अवधेश मंडल 42विशेष केंद्रीय कारा, भागलपुरधानुक/ओबीसी
* अगले दो साल तक स्थानीय थाने में हर सप्ताह हाजिरी दर्ज कराने का आदेश

** स्थानीय लोगों से बातचीत के आधार पर

दरअसल, रिहाई की सियासत के में तीन मोर्चे हैं। पहला मोर्चा भाजपा ने खोल रखा है। यह मोर्चा एक तरफ तो इसका श्रेय लेने की कोशिशों में जुटा है कि उसकी मांग के कारण ही राज्य सरकार ने आनंद मोहन को रिहा किया है। इस संबंध में पूर्व उपमुख्यमंत्री सुशील कुमार मोदी ने 13 फरवरी, 2023 को प्रेस कांफ्रेंस में कहा था कि “आनंद मोहन एनडीए के पुराने साथी रहे। उन्होंने नीतीश कुमार के साथ मिलकर चुनाव लड़ा था। दुर्भाग्यपूर्ण घटना आनंद मोहन जी के जीवन और परिवार पर बहुत भारी पड़ी। उन्हें मुक्ति मिलनी चाहिए ताकि वे सार्वजनिक जीवन में योगदान कर सकें। हत्याकांड में उनकी कोई भूमिका नहीं थी।”

पुराने सियासी ताल्लुकात : (बाएं से दाएं) उपेंद्र कुशवाहा, नीतीश कुमार, आनंद मोहन और रामा सिंह

लेकिन जैसे ही इस मामले में नीतीश कुमार ने पहल किया, भाजपा ने अपने स्वर बदल लिये हैं। हालांकि इसमें बड़ी भूमिका बहुजन समाज पार्टी की प्रमुख मायावती ने निभायी। उन्होंने आनंद मोहन की रिहाई की राजनीति पर दलित राजनीति का रंग चढ़ा दिया। मायावती के मुताबिक जी. कृष्णैया दलित थे और उनके हत्यारे आनंद मोहन सवर्ण जाति से आते हैं। 

मायावती के हस्तक्षेप ने भाजपा को नया मुद्दा दे दिया है। अब सुशील मोदी कह रहे हैं कि आनंद मोहन की रिहाई असंवैधानिक और दलित विरोधी है। 

वहीं सियासत के मामले में जदयू का पलड़ा भारी है। यह इस कारण भी कि उपेंद्र कुशवाहा जदयू से अलग हो गए हैं। हालांकि अभी तक उपेंद्र कुशवाहा ने भाजपा में जाने की बात नहीं कही है, लेकिन अंदरखाने में यह तय माना जा रहा है कि वे राजद और जदयू के खिलाफ भाजपा का मोहरा बनेंगे। लिहाजा राजनीति के चाणक्य कहे जाने वाले नीतीश कुमार ने भाजपा के सवर्ण वोट बैंक पर निशाना साधा है। दरअसल, आनंद मोहन की रिहाई का असर उत्तर बिहार की राजनीति पर पड़ना निश्चित है। आनंद मोहन की पत्नी लवली आनंद वैसे भी जदयू से जुड़ी हैं।

बताते चलें कि सियासत के लिए बाहुबलियों का साथ नीतीश कुमार के लिए कोई नई बात नहीं है। वर्ष 2005 में चुनाव के समय अनंत सिंह और रामा सिंह सरीखे बाहुबलियों के सामने हाथ जोड़े वह तस्वीर आज भी इसका प्रमाण है।

वहीं इस मामले में भाकपा माले के राष्ट्रीय महासचिव दीपंकर भट्टाचार्य एक नया कोण सामने लाते हैं। उन्होंने केवल चुनिंदा कैदियों की रिहाई पर सवाल उठाया है। उनका कहना है कि 14 साल से अधिक जेल में पूरा कर चुके 27 कैदी जब छोड़े जा रहे हैं तो अरवल के छह वामपंथी कार्यकर्ताओं – जगदीश यादव, चुरामन भगत, अरविंद चौधरी, अजित साव, लक्ष्मण साव और श्याम चौधरी – जो जेल में 22 साल से अधिक समय से कैद हैं, को रिहा क्यों नहीं किया जा रहा है।

गौर तलब है कि दीपंकर की पार्टी बिहार में सत्तासीन महागठबंधन सरकार में भले ही शामिल नहीं है, लेकिन वह गठबंधन में शामिल जरूर है। दीपंकर ने राज्य सरकार से टाडा के सभी बंदियों और शराबबंदी कानून के तहत जेलों में बंद सभी लोगों को रिहा करने की मांग की है। 

बहरहाल, इस रिहाई की इस राजनीति में एक हिस्सेदार सरकार में शामिल राजद भी है। माना जा रहा है कि राजद ने भी अपनी राजनीति के लिए अपने लोगों को रिहा कराया है।

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