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लोकप्रिय बनाम नेतृत्व?

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शशिकांत गुप्ते

आज सीतारामजी विनोदी मानसिकता में दिखाई दिए।
मिलते ही उन्होंने मुझे विनोद सुनाया।
एक छाते के नीचे दस लोग खड़े थे। एक भी व्यक्ति गीला नहीं हुआ। पता है क्यों बारिश ही नही हो रही थी।
वे दूसरा विनोद सुनाते उसके पूर्व ही मैंने कहा, मैं समझ गया आप आज बहुत हास्य विनोदी मूड में हैं। इसका कोई खास कारण है?
सीतारामजी ने कहा उक्त विनोद,हास्य व्यंग्य के प्रसिद्ध व्यक्ति स्व.जसपाल भट्टी के द्वारा सुनाया गया है।
भट्टी साहब की लोकप्रियता हास्य व्यंग्य के रूप में हुई थी।
ऐसे ही विभिन्न क्षेत्रों में अनेक व्यक्तियों ने लोकप्रियता प्राप्त की है।
मैने सीतारामजी से पूछा आज आपकी बात लोकप्रियता पर ही केंद्रित क्यों हैं?
सीतारामजी ने कहा,दुर्भाग्य से इनदिनों लोकप्रियता का मापदंड व्यक्ति पूजक मानसिकता तक सीमित हो गया है।
कोई व्यक्ति किसी भी सृजनात्मक क्षेत्र में उपलब्धि प्राप्त कर लोकप्रिय हो सकता है।
ऐसे व्यक्तियों की सराहना की जानी चाहिए,बशर्ते उपलब्धि उसने स्वयं की गुणवत्ता पूर्ण योग्यता से प्राप्त की हो?
सीतारामजी ने अपनी बात को जारी रखते हुए कहा, बहुत से लोगों की लोकप्रियता मियादी होती है,मतलब कुछ समय तक ही टिकी रहती है।
मैने कहा बहुत से लोग विज्ञापनों के माध्यम से अपनी लोकप्रियता प्राप्त कर लेते हैं?
सीतारामजी ने कहा विज्ञापनों की लोकप्रियता उत्पादों के विज्ञापनों जैसी हो होती है। जिस तरह बहुत से उत्पादों की गुणवत्ता को विज्ञापनों में बढ़ा चढ़ा कर दर्शाया जाता है। उसी तरह किसी व्यक्ति को सिर्फ विज्ञापनों में महिमा मंडित किया जाता है।
इनदिनों तो कथा वाचक भी
अपनी लोकप्रियता स्थापित कर रहे हैं। यह व्यापारिक मानसिकता है।
मैने पूछा,सियासी क्षेत्र में लोकप्रियता का क्या मापदंड होता है?
सीतारामजी ने कहा सियासी क्षेत्र में लोकप्रिय होने से ज्यादा व्यक्ति में नेतृत्व की क्षमता होनी चाहिए।
लोकप्रिय तो कोई भी हो सकता है। लेकिन नेतृत्व की क्षमता हर किसी व्यक्ति में होना संभव नहीं है।
नेतृत्व क्षमता के मापदंड,सियासी क्षेत्र में जो व्यक्ति जनकल्याण के लिए योजना बनाकर,योजनाओं का ईमानदारी से क्रियान्वयन भी करें। जनता से जीवंत संपर्क बनाए रखें। जिसकी सोच लोकतांत्रिक हो। जो व्यक्ति
सस्ती लोकप्रियता को दर किनार करें। व्यक्ति को सिर्फ सत्ता में बने रहने के बजाए वह प्रशासनिक व्यवस्था को संभालने में निपुण हो। प्रशासनिक व्यवस्था में उसका निष्पक्ष होना निहायत जरूरी है।
मुख्य मुद्दा जिसकी कथनी करनी में अंतर न हो ऐसे व्यक्ति को सफल नेतृत्व देना वाला कह सकतें हैं।
नेतृत्व का सबसे बड़ा गुण व्यक्ति को अहंकार रहित होना चाहिए है। अंहकार तानाशाह प्रवृत्ति का जनक है। तानाशाह हमेशा पर्दे में छिपा रहता है।
नेतृत्व की क्षमता जिसमे होती है,उसके अनुयायी बनते हैं। तानाशाह के पीछे चाटुकारों की फ़ौज होती है।
जनचर्चा तो खल दुष्टों की होती है,और सज्जन व्यक्तियों की भी होती है। अंतर जानने के लिए विवेक का जागृत होना अनिवार्य है।
अंत में सीतारामजी ने शायर
डॉ वसीम बरेलवी का यह शेर सुना कर चर्चा को विराम दिया।
आसमान अपनी बलंदी पर इतराता है
ये भूल जाता है कि, ज़मीं से नजर आता है

शशिकांत गुप्ते इंदौर

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