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सांसदों की सैलरी बढ़ाने वाले बिल पर बोले थे प्रमोद महाजन ‘ऐसा क्यों लग रहा है कि पाप कर रहे हैं’

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नई दिल्ली: सांसदों का वेतन बढ़ाए जाने का विधेयक संसद में 2001 में जब वाजपेयी सरकार में आया तो इसकी कई जगहों पर आलोचना हो रही थी। इस विधेयक को पेश करते हुए तत्कालीन संसदीय कार्यमंत्री प्रमोद महाजन का सदन के भीतर भाषण काफी चर्चित रहा। अगस्त 2001 में संसद में बोलते हुए प्रमोद महाजन ने कहा कि दुर्भाग्य ये है इस विधेयक का कि इससे कोई सहमत नहीं है। कुछ लोगों को लगता है बहुत देरी से आया है और बहुत कम आया है। कुछ लोगों को लगता है कि यह क्यों आया है और बहुत ज्यादा आया है। ठीक-ठाक आया है और वक्त पर आया है ऐसा कहने वाला सदस्य नहीं है।

वेतन बढ़ने पर कब-कब हुई आलोचना
प्रमोद महाजन ने कहा कि ये इस विधेयक का दुर्भाग्य है। यह सच है कि पिछले 5-7 दिनों से जब से पता चला है कि सांसदों के वेतन और भत्ते बढ़ने वाले हैं तब से समाचार पत्रों में काफी आलोचना हो रही है। प्रमोद महाजन ने राज्यसभा में कहा कि एक सदस्य ने कहा कि बढ़ाया तो नहीं अभी तक लेकिन तीन बार आलोचना करा दी। पहली बार जब समिति की रिपोर्ट आई तब हुई। कैबिनेट की मंजूरी के बाद दोबारा इसकी आलोचना हुई और अब जब बढ़ाने जा रहे हैं तब आलोचना हो रही है। प्रमोद महाजन ने कहा कि मैं कोई बहुत पुराना नहीं लेकिन नया भी नहीं। संसद सदस्य के तौर चार बार वेतन बढ़ा। उस वक्त भी जब-जब वेतन बढ़ा आलोचना हुई।

‘जब गाली तीन गुना तो पैसे भी तीन गुना बढ़ाते’
प्रमोद महाजन ने सदन में बोलते हुए कि अब 4 हजार से बढ़ाकर 12 हजार कर रहे हैं तो फिर आलोचना हो रही है। मैं कहना चाहूंगा कि पहले वेतन कम बढ़ता था लेकिन भत्ते अधिक बढ़ते थे। ताकि सदस्यों को आयकर के फॉर्म से रिश्ता न रहे। अब पहली बार जब संसद सदस्य 12 हजार वेतन लेंगे तो इनकम टैक्स देना पड़ेगा। यह पहली बार फैसला जो 50 साल में नहीं हुआ। एक सदस्य ने कहा कि पैसा दोगुना बढ़ रहा है। मैंने कहा कैसे तो उन्होंने कहा इनकम टैक्स कटने के बाद दोगुना ही रहेगा। सदस्य ने कहा कि जब गाली तीन गुना सुनवा रहे हैं तो पैसा भी तीन गुना बढ़ाते।

ऐसा क्यों लग रहा है कि बिल लाकर पाप कर रहे हैं
वेतन बढ़ाने पर किसी ने कहा कि इसको सांसदों के प्रदर्शन से जोड़िए। इस सत्र में सबने लिखा कि 27 घंटे काम नहीं हुआ लेकिन कोई यह नहीं लिखा कि 32 घंटे अधिक संसद की कार्यवाही चली। दूसरी काम की व्याख्या हम समझा नहीं सके। लोगों को लगता है सदन भरा-भरा रहे। बोलना सबको पसंद लेकिन सुनना कोई नहीं चाहता। इस पर सदस्य ठहाके लगाने लगते हैं। लोगों को यह समझना चाहिए कि सिर्फ यही काम नहीं। प्रमोद महाजन ने कहा कि कई बार मुझे आश्चर्य होता है कि लोगों की हमारे बारे में खराब राय है लेकिन हमारी अपने बारे में क्यों खराब राय है। ऐसा क्यों लगता है कि हम बिल ला रहे हैं तो पाप कर रहे हैं।

5 साल के लिए एक बार में बढ़ाया
आप अपनी सैलरी तय करते हैं तो लोगों को कष्ट होता है। प्रमोद महाजन ने कहा कि संविधान में धारा 106 में यह व्यवस्था है और यह तय करने का अधिकार संसद के पास ही है। 1954 में यह कानून बना और उसी के अनुसार यह होता है। हमने यह भी स्पष्ट कर दिया है कि 5 साल तक वेतन नहीं बढ़ेगा। हालांकि इसकी कोई बाध्यता नहीं है। एक सदस्य के सवाल पर उन्होंने कहा कि संसदीय कार्यमंत्री जब आएगा तो उसको सोचना पड़ेगा कि क्या कारण दूं बढ़ाने के लिए। संसद में जो कहते हैं उसकी एक मर्यादा है।

सांसदों को बताया क्या रखा पैमाना
प्रमोद महाजन ने कहा कि मैं सदस्यों को पत्र लिखने वाला हूं कि कोई और पद्धति है तो बताए। जो भी सुझाव देंगे लेकिन यह मत कहिए कि कुछ करना चाहिए। जब दूसरों की बढ़ाते हैं तो आलोचना नहीं होती लेकिन जब अपना वेतन बढ़ाते हैं तो आलोचना होती हैं। मैं सिर्फ बताना चाहता हूं कि कैसे बढ़ाया। इसके लिए कोई बड़ा इंडेक्स नहीं खोजने गया। 4 हजार से 12 हजार से कैसे हुई। प्रणब मुखर्जी ने पहली बार एक सूत्र के अंदर बांधने का प्रयास किया। 1954 में पहली बार सांसदों की सैलरी तय हुई तब 400 रुपये थी। अहमदाबाद मैनेजमेंट को बुलाया इसको बेस मानिए इसको इंडेक्स मानिए। इस समिति ने कहा कि 1954 में 400 है तो आज 11 हजार 980 होगा। हमको लगा कि देरी से ला रहे हैं तो 20 रुपये बढ़ा दें चेक पर 12 हजार लिखा होगा।

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