पिछले कुछ सालों से दलितों और मुस्लिमों को भीड़ द्वारा निशाना बनाकर हमला किया जा रहा है। इसके चलते कई लोगों की जान चली गई और कई लोग घायल हो गए। हाल में झारखंड में एक मुस्लिम युवक को भीड़ ने बुरी तरह पीटा जिससे वह जख्मी हो गया। इन घटनाओं के विरोध में भारत समेत पूरे विश्व में जून महीने में ‘नॉट इन माई नेम कैंपेन’ भी चलाया गया। राजधानी दिल्ली में जंतर मंतर पर मॉब लिंचिंग के विरोध में नॉट इन माई नेम कैंपन के बैनर तले प्रदर्शन किया गया। इस प्रदर्शन में हर समाज के बुद्धिजीवियों ने बड़ी संख्या में हिस्सा लिया और इन घटनाओं के प्रति अपना विरोध दर्ज किया। इन्हीं घटनाओं को लेकर अल्पसंख्यक मामलों के पूर्व केंद्रीय मंत्री और राज्यसभा सांसद के. रहमान खान से एम.ओबैद ने बात की। पेश है बातचीत के मुख्य अंशः
दलित और मुस्लिम लगातार मॉब लिंचिंग के शिकार हो रहे हैं जिसके चलते दोनों समाज के लोगों में डर का माहौल है। क्या कहेंगे आप?
मॉब लिंचिंग सोंची समझी साजिश है। खासकर यूपी में योगी आदित्यनाथ और बीजेपी की सरकार आने के बाद ये घटना और ज्यादा तेजी से बढ़ रही है। उनका मकसद है कि देश में हर ऐसा मुद्दा उछालना जिससे हिंदू समाज यूनाइट हो सके। काऊ स्लॉटरिंग कोई आज का रिवाज नहीं है, हजारों वर्षों से ये होता आ रहा है। अब जब बीजेपी सरकार सत्ता में आ गई है तो इन्होंने गौरक्षकों को खुली छूट दे दी है। ये गौरक्षक विश्व हिंदू परिषद जैसे संगठनों के लोग हैं। इन्हीं संगठनों का इजाद किया हुआ है गौरक्षक। हर आदमी अपने आपको सेल्फ स्टाइल्ड गौरक्षक बन जाता है। वह समझता है कि गौरक्षक के नाम पर लॉ एंड अपने हाथ में ले लें। शर्म की बात है कि हमारे मुल्क में संविधान होने के बावजूद ये लोग इस तरह की हरकत कर रहे हैं। केंद्र और राज्यों में बीजेपी की सरकार है। उनको शर्म आना चाहिए कि संविधान के ऊपर वोट लेकर संविधान की धज्जियां उड़ा रहे हैं। लोगों को सुरक्षा नहीं दे पा रहे हैं। मॉब लिंचिंग एक साजिश है ताकि लोगों में एक किस्म का डर का माहौल पैदा किया जाए। इनका मकदस न तो गाय को प्रोटेक्ट करना है और न ही काऊ स्लॉटर को प्रोटेक्ट करना है। ये सब सिर्फ बहाना है।
हाल में झारखंड में इस तरह की घटना हुई है, इन घटनाओं पर लगाम नहीं लग पाया है। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इन घटनाओं की काफी निंदा की?
प्रधानमंत्री की निंदा में मुझे कोई वजन नजर नहीं आ रहा है। अगर प्रधानमंत्री चाहें तो ये मॉब लिंचिंग एक दिन में खत्म हो सकता है। मोदी जो अपने आपको देश और दुनिया के सामने ताकतवर लीडर प्रजेंट कर रहे हैं क्या वो शख्स इसे खत्म नहीं कर सकते हैं। अगर वो (मोदी) चाहें तो सिर्फ एक दिन में खत्म कर सकते हैं। वो मगरमच्छ की आंसू बहा रहे हैं। वो खुद संवेदनशील नहीं हैं कि ये मुद्दा खत्म हो।
क्या आपको लगता है कि वर्तमान समय में दलितों और मुस्लिमों की सुरक्षा का मुद्दा बेहद अहम हो गया?
दलितों के साथ नाइंसाफी हजारों साल से हो रही है। देश के बंटवारे के बाद हिंदुस्तान अलग-अलग मजहब का विविधातपूर्ण देश बना है उसको वे (बीजेपी-संघ परिवार) खत्म करना चाहते हैं। हिंदू समाज का ध्रुवीकरण करके सत्ता में आने का नया तरीका इस वक्त नजर आ गया है। उनका मकसद सिर्फ सत्ता है। पहले से इन्होंने मनुवाद का अभ्यास जो किया है उसका वो विस्तार कर रहे हैं। उनका टार्गेट सिर्फ दलित और मुसलमान हैं। वे दलित को डराकर हिंदू सोसायटी को मजबूत करना चाहते हैं। उनको मालूम है कि दलित समाज एक बहुत बड़ी ताकत है। भीमराव अंबेडकर को संघ परिवार कभी भी अच्छी निगाह से नहीं देखा। हमारे जो भी नेशनल लीडर्स हैं उनसे दूर का भी कोई रिश्ता नहीं है। सत्ता के लिए उन्होंने (बीजेपी) अंबेडकर को अडॉप्ट कर लिया, महात्मा गांधी को भी अडॉप्ट कर लिया और सरदार पटेल को भी। इनका नाम लेकर वे खुद को राष्ट्रवादी बनना चाहते हैं। दलित अंबेडकर को अपना मार्गदर्शक मानते हैं। तो उनकी (बीजेपी) की मजबूरी है कि बाबा साहब अंबेडकर को जाहिरी तौर पर माने, हालांकि वो दिल से अंबेडकर की पूजा नहीं करते हैं। वो हर चीज में दीनदयाल उपाध्याय को ही अपना सबकुछ मानते हैं। उपाध्याय को वे गांधी से भी बड़े नेता मानते हैं। दलित समाज के लोगों को अपनी तरफ आकर्षित करने के लिए अंबेडकर की जयंती मनाते हैं, उनकी मूर्ति लगाते हैं और उनके नाम पर तरह-तरह के कार्यक्रम आयोजित करते हैं। वे (बीजेपी) दलित समाज को लालच दिखा रहे हैं कि हम अंबेडकर के साथ हैं और उनके दर्शन को मानते हैं। हकीकत है कि बीजेपी और संघ परिवार के लोग दिल से अंबेडकर को बिल्कुल नहीं मानते हैं, उनके दिल के अंदर अंबेडकर हैं ही नहीं। दूसरी चीज है कि मुसलमानों का बीजेपी और संघ परिवार का दूर तक भी कोई रिश्ता नहीं है। काऊ स्लॉटर का मुसलमानों से दूर तक भी कोई लगाव नहीं है। बीफ खाने वाला ज्यादातर मुसलमान नहीं है। पूरे हिंदुस्तान में मुसलमान कम बीफ खाता है। मुसलमानों में कोई भी अच्छा खानदान बीफ नहीं खाता है। गरीब जो बकरे का गोश्त नहीं खरीद सकते वही खाते हैं। बीफ से मुसलमानों को कोई फर्क नहीं पड़ने वाला है। गाय, भैंस जैसे मवेशी ज्यादातर किसानों के पास होते हैं और ज्यादातर किसान गैर-मुस्लिम ही हैं। इन मवेशियों का कारोबार ज्यादातर गैर-मुस्लिम ही करते हैं। इसे ज्यादातर गैर-मुस्लिम ही पालते हैं तो मुसलमानों को क्यों जोड़ रहे हैं।
मॉब लिंचिंग घटनाओं में हो रही वृद्धि को लेकर आप सबसे ज्यादा जिम्मेदार किसको मानते हैं?
संघ परिवार के लोग हैं लेकिन सबसे बड़े जिम्मेदार हमारे प्रधानमंत्री हैं।
क्या मुस्लिम समाज को सुरक्षा के लिए कोई एक्ट की मांग करनी चाहिए जिससे उनकी सुरक्षा सुनिश्चित हो सके?
मैं नहीं समझता कि किसी एक्ट की जरूरत है। लॉ एंड आर्डर सही तरीके से लागू होना चाहिए। आज के माहौल में इस तरह की मांग करके इससे कुछ हासिल होने वाला नहीं है। मुसलमानों को बेदारी पैदा करना चाहिए और लोगों से राब्ता कायम करना चाहिए। वे (बीजेपी-संघ परिवार) हमारे आपसी झगड़ों का फायदा उठा रहे हैं। हमें खुद अपने अंदरूनी हालात पर कंट्रोल करने की जरूरत है। हमें आपसी भेदभाव को दूर रख कर हमारे सामने जो चैलेंज है उसका सामना करना चाहिए। जिम्मेदार सिर्फ सियासी लीडर ही नहीं हैं, जिम्मेदार हमारे दीनी (धार्मिक) रहनुमा भी हैं और दानिश्वर (बुद्धिजीवी) तबका भी है। इन सभी लोगों को एक प्लेटफॉर्म पर आकर अपने-अपने जो भी इख्तलाफात हैं उसको दूर करना चाहिए और कौम के मसले पर एकजुट होकर काम करना चाहिए। संघ परिवार लगातार मुस्लिम समाज को बांटने की कोशिश कर रही है। ये संघ परिवार मुस्लिम समाज के कभी एक वर्ग की बात करते है कभी दूसरे वर्ग की। वे कभी देवबंद की निंदा करते हैं। वे बरेलवी और देवबंदियों को लड़ाते हैं, शिया और सुन्नी को लड़ाते हैं। इससे कौम का बहुत बड़ा नुकसान है। वे मुसलमानों को आपस में लड़ाकर आर्थिक, सामाजिक और शैक्षणिक विकास से दूर रखना चाहते हैं और हम उसके शिकार हो रहे हैं।
ऐसा कहा जाता है कि दलितों और मुस्लिमों की आवाज दबाई जा रही है?
इसमें कोई दोराय नहीं है कि आवाज दबाई जा रही है। दूसरी चीज कि हमारी आवाज सुनने वाला ही कोई नहीं तो दबाने वाला कौन है। हम अपनी बात किसके सामने सुना रहे हैं। हम जो भी आवाज उठाते हैं उसे दूसरों तक पहुंचाने का जरीया होना चाहिए। हम अपनी आवाज किसके सामने रख रहे हैं। आवाज उसी वक्त सुनी जाती है जब उस आवाज में ताकत होती है। जिस आवाज में ताकत ही नहीं, आवाज ही कमजोर है तो उसमें क्या दम होगा। आवाज में ताकत और इत्तेफाक होना चाहिए।
क्या मुस्लिम समाज को दलित नेताओं के साथ मिलकर अपने हक की लड़ाई लड़नी चाहिए?
इस दौर में दलित और मुस्लिम दोनों ही शिकार हो रहे हैं। हिंदुस्तान के हर उस व्यक्ति के साथ मिलकर काम करना चाहिए जो अच्छी सोंच रखते हैं। हिंदुस्तान का एक बड़ा तबका अच्छी सोंच रखने वाला है और हम सभी को उसी तबके के साथ मिलकर अपने हक की लड़ाई लड़नी चाहिए। हमें सभी अच्छे लोगों से संपर्क करना चाहिए। दलित-मुस्लिम और अच्छी सोंच रखने वाले लोगों के साथ मिलकर अपनी आवाज बुलंद करनी चाहिए। जब हमारी आवाज को आस-पड़ोस का आदमी ही नहीं सुन सकता तो उस आवाज की क्या ताकत होगी। अपनी आवाज को उन लोगों तक पहुंचाने का जरिया तलाशना चाहिए जहां हमें अपनी आवाज पहुंचानी है।
क्या आप मानते हैं कि वर्तमान समय में दलितों और मुस्लिमों को ही निशाना बनाया जा रहा है?
बीजेपी और संघ परिवार की ये एक योजना है। दलित समाज को कंस्टिच्यूशनल गारंटी रहने के बावजूद भी उन्हें अभी तक वो फायदा नहीं मिल पाया है। दलितों में जो सोशल बदलाव आना था वो नहीं आ सका है। उसके लिए जिम्मेदार पूरा समाज है। वो समाज काफी दबा हुआ है और लोग उसी को दबाते हैं जो दबे हुए होते हैं। दलित और मुस्लिम दोनों ही दबे हुए समाज हैं।
भारत समेत विश्वभर में ‘नॉट इन माई कैंपेन’ चलाया गया लेकिन इसका असर कहीं दिख नहीं रहा है, लगातार इस तरह की घनटाएं हो रही हैं?
ये कैंपेन सही दिशा में शुरू हुआ है और इसे जारी रखना चाहिए। किसी भी कैंपेन का नतीज तुरंत नहीं मिलता है। इसकी लंबी लड़ाई लड़नी होगी। इस तरह के कैंपेन की और जरूरत होगी।
कहा जा रहा है कि अब मुस्लिम समाज के वोट की कोई अहमियत नहीं रह गई है?
आज वो अहसास पैदा हो गया है। मुसलमानों को सिर्फ एक ही ताकत थी वो वोट की ताकत। उसको बिखेर दिया गया है। यूपी में जो चुनाव हुआ उसके लिए पूरी तरह जिम्मेदार वहां के मुसलमान हैं। वे हर चुनाव में बंट जाते हैं। आज अगर मोदी सत्ता में हैं तो यूपी के मुसलमानों की वजह से। आज बीजेपी सरकार जितनी ताकतवर हो रही है वो भी यूपी के मुसलमानों की वजह से। मुझे अफसोस है कि यूपी के मुसलमान मसलकों, फिरकों और तबकों में बंट क्यों जाते हैं। वो ये तय नहीं कर पाते हैं कि किसको वोट देना है। बीजेपी की कोशिश है कि हिंदू समाज को यूनाइट किया जाए। मुसलमान पहले जिसके साथ जुड़ता था वो जीत जाता था आज उसका उलटा हो गया है कि बीजेपी और संघ परिवार ने हिंदू समाज को यूनाइट कर लिया और मुस्लिम समाज बिखर गया। मुसलमान अगर यूनाइट हुआ तो किसी भी पार्टी का 50 प्रतिशत वोट शेयर योगदान कर सकता है लेकिन बिखर गया तो उसकी कोई अहमियत ही नहीं है। हर पॉलिटिकल लीडर हिंदुस्तान के मुसलमानों का सरदार मानता है। मुसलमान आज भी जजबात से काम लेता है दिमाग से नहीं।
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनावों के दौरान तलाक के मुद्दे को काफी भुनाया गया। क्या कहेंगे आप?
इसके जिम्मेदार मुसलमान ही हैं। इस मुद्दे को आने ही क्यों दिया गया। मुसलमानों को बदनाम किया जा रहा है कि एक वक्त में तीन तलाक बोल दो तलाक हो जाता है। इसको मुसलमान सही तरीके से न समझा और न ही समझा सका। इस मामले को कुरान-हदीस के मुताबिक देखना चाहिए था। किताबों में जो लिखा है उसके मुताबिक हल निकाला जाना चाहिए। आज तलाक देने का जो तरीका है वो कुरान-हदीस के खिलाफ है। कुरान में जो कहा गया है उसकी अहमियत को कम कर एक रिवायत को अहमियत देकर हम खुद उसके शिकार हो रहे हैं।
साभार : सबरंग