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प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने असभ्य को और असभ्य बनाने का मंत्र दिया

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जगदीश्वर चतुर्वेदी

प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को यह श्रेय जाता है कि उन्होंने देश के मध्यवर्ग को असभ्यता को शिरोधार्य करने, असभ्य को सम्मान देने, पूजा करने, असभ्य को और असभ्य बनाने का मंत्र दिया. साथ ही असभ्य भाषा की हिमायत और असभ्य भाषिक प्रयोग करने की दिशा में तेज़ी से मोड़ दिया है. बटुकों की असभ्य भाषा और मोदी भक्तों की अंधभक्ति निश्चित रुप से निंदनीय है. इसने एक ही झटके में मध्यवर्ग में व्याप्त असभ्य भावबोध और असभ्य भाषिक आचरण को सरेआम फेसबुक-यू-ट्यूब जैसे ग्लोबल मीडिया में उजागर कर दिया है.

आज सारी दुनिया आरएसएस वाले भारत के हिंदू मध्यवर्ग के बडे समुदाय में व्याप्त असभ्यता को यू-ट्यूब से लेकर फेसबुक तक देख रही है. यह मोदीजनित असभ्यता का हिंदू नवजागरण है. प्रधानमंत्री मोदी के नेतृत्व में आने के पहले देश में असभ्यों की कमी नहीं थी. एक बडा वर्ग मध्यवर्ग में असभ्य था. फेसबुक-यू-ट्यूब आदि के तंत्र के सामने आने के बाद हमारे समाज में तुलनात्मक तौर पर राजनीति से लेकर संस्कृति तक सभी क्षेत्रों में असभ्यता का छिपा हुआ चेहरा सबके सामने खुल गया है. इसमें ईंधन का काम किया है मोदी, आरएसएस, साइबर सैल और बटुक मंडली ने.

देश में सांप्रदायिक उन्माद नया नहीं है, न दलितों और अल्पसंख्यकों का शोषण. न रचनाकारों की अवज्ञा और अपमान. चालीस बरस पहले नागरिक अधिकारों के पतन में इमरजेंसी एक मिसाल मानी गई थी. लेकिन जब हम समझने लगे कि शासन की भूमिका में काले दिनों का वह पतन इतिहास की चीज हो गया, नागरिकों पर संकट का नया पहाड़ आ लदा है. मौजूदा संकट ज्यादा भयावह और खतरनाक है क्योंकि यह ऐलानिया नहीं है; इसलिए कोई आसानी से इसकी जिम्मेदारी भी नहीं लेता. जबकि इसके पीछे एक दकियानूसी, समाज को बांटने और घृणा की खाई में धकेलने वाली वह हिंसक मानसिकता सक्रिय जान पड़ती है, जिसे देश ने कभी बंटवारे के वक्त देखा-भोगा था और जो राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की सरेआम हत्या के समय मौजूद थी.

आज मोदी-आरएसएस के कारण विचार, असहमति, विरोध, बहुलता और सहिष्णुता के मूल्य खतरे में हैं. शिक्षा और संस्कृति जैसे क्षेत्र अब जैसे हाशिये के तिरस्कृत विषय हैं. समाज-विरोधी और अलगाववादी शक्तियां सत्ता के साथ कदमताल कर रही हैं; धार्मिक प्रतीकों को सार्वजनिक प्रतीक बनाकर लोगों के घर जलाए जा रहे हैं; अल्पसंख्यकों और दलितों को जिन्दा जलाया जा रहा है; घर-वापसी, लव-जेहाद जैसे तुच्छ अभियान उच्च संरक्षण में अंजाम दिए जा रहे हैं, जिनसे समुदायों में अभूतपूर्व हिंसा भड़की है.

असहमति या विरोध जताने वालों को देशद्रोही करार दिया जाने लगा है; कटु सत्य बोलने और लिखने वालों को पंगु बनाया जा रहा है, मौत के घाट उतारा जा रहा है; कार्टून से लेकर किताब, सिनेमा, कला, यहां तक भी खाद्य भी प्रतिबंधित घोषित किए जा सकते हैं – किए जा रहे हैं; रचनात्मक इदारों में अयोग्य लोग रोप दिए गए हैं; तोड़े-मरोड़े इतिहास के पाठ्यक्रम बनाए और पढ़ाए जाने लगे हैं; लोगों की रुचियों, खान-पान, पहनावे और अभिव्यक्ति तक को नियंत्रित किया जा रहा है; समाज पर छद्म धार्मिकता, छद्म मूल्यबोध और छद्म सांस्कृतिक-बोध थोपा जा रहा है.

प्रधानमंत्री को अपने फैशन, स्थानीय चुनावों और विदेश यात्राओं से फुरसत नहीं कि इस अनीति, अन्याय और अनर्थ को शासन से सीधे मिल रही शह और संरक्षण से बचा सकें. जाहिर है, सरकार की नीयत और कार्यक्षमता संदेह के गहरे घेरे है. यह संकट अभूतपूर्व है, नियोजित है और इसमें निरंतरता है; इतना ही नहीं इसके पीछे एक ही मानसिकता या विचारपद्धति है. इसलिए, स्वाभाविक ही, स्वस्थ लोकतंत्र और देश की मूल्य-चेतना से सरोकार रखने वाले लोग आहत और चिंतित हैं.

मोदी के इतिहास पाखंड को समझने के लिए एक ही उदाहरण काफी है. मोदी को पीएम वायरस ने घेर लिया है. उन्होंने वोट के लिए संघ और भाजपा के नेताओं का ज़िक्र करना बंद कर दिया है. वे एकबार भी गोलवल्कर, दीनदयाल उपाध्याय, श्यामाप्रसाद मुखर्जी का नाम लेने की कोशिश नहीं करते. क्या बात है संघ में क्या कोई नाम लेने लायक भी नहीं बचा है ? सभ्यलोग निजी प्रसंगों को निजी रहने देते हैं लेकिन अब जनसभाओं में जातिगत अपील करके नैतिकता और राजनीति के मानकों का भी उल्लंघन किया जा रहा है.

मोदी को संस्थान नहीं कचरा घर चाहिए. जो संवैधानिक संस्थाएं हैं उनको कचरे के ढेर में बदल दिया गया है. मोदी का लक्ष्य है ईमानदार को जेल में ठूंसो, घूसखोर को लूटपाट की छूट दो. लूटो, मारो, भागो. यह मोदी राजनीति का परिष्कृत फंडा है. आप इसके बाद भी मोदीभक्त हैं, तो हम यही कहेंगे आपको जल्दी बदलना चाहिए, वरना तय मानो 2024 में मोदी जीतकर आए तो देश कातिलों के हाथ में होगा, हम आप सब जेल में होंगे.

आप मोदी को अब तक हल्के में लेते रहे हैं. उसने बिना आपातकाल लगाए सीबीआई को तोड़ दिया, योजना आयोग तोड़ दिया, यूजीसी भंग हो गई, पे कमीशन को उसने सही रूप में लागू नहीं किया, न्यायपालिका आतंकित है. सेना, शिक्षा, स्वास्थ्य आदि में निवेश बढाने की बजाय कटौती की है. हजारों स्कूल भाजपा सरकारों ने बंद कर दिए. संघी लोग बेलगाम होकर सत्ता के संस्थानों का नियम तोड़कर शोषण कर रहे हैं.

तानाशाह कितना डरपोक होता है यह बात अब आम जनता को समझ में आ रही है. जनता अपनी ताकत को भी महसूस कर रही है. यही वजह है पानी की तरह पैसा बहाकर, नौकरशाही-सेठों-साहूकारों-गुंडों-कारपोरेट मीडिया और साइबर फौज को मैदान में उतारकर भी जनता का भय मोदीजी के अंदर से कम नहीं हो रहा. जनता का भय वास्तविक है. जनता जब डराने लगती है तो सारे हथियार भोंथरे हो जाते हैं.

चुनाव में क्या होगा हम नहीं जानते लेकिन यह बात तो साफ दिख रही है कि भाजपा के नेताओं की बड़ी-बड़ी बातें बंद हो गयी हैं. अब तो सब भाजपाई मोदी की हुंकार का इंतजार करते रहते हैं लेकिन मोदीजी भी अब बोल नहीं रहे. पहले वे रोज बोलते थे, अब कभी-कभार बोलते हैं. जनता के भय ने सबकी बोलती बंद कर दी है.

दूसरी ओर अर्थव्यवस्था बुरी तरह टूट चुकी है. मोदी ने आरबीआई द्वारा पब्लिक और प्राइवेट सेक्टर के बैंकों के रेग्यूलेशन को कमजोर किया है. सरकार को अधिशेष हस्तांतरित किए बिना रिजर्व बनाए रखने का विशेषाधिकार खत्म किया है. एक अलग पेमेंट रेग्यूलेटर बनाकर रिजर्व बैंक के अधिकार क्षेत्र को कम किया है.

इसके अलावा राष्ट्रीय विकास दर में अभूतपूर्व गिरावट आई है. बाजार, बैंक ठप्प पडे हैं. बेकारी चरम पर है. इतनी भयानक बेकारी पहले कभी नहीं देखी गयी. कोरोना में जनता की कोई ठोस मदद नहीं की. सरकारी संस्थानों और कमाई करने वाले संस्थानों की बड़ें पैमाने पर संपत्तियों को बेचा है. इसके बाबजूद आप यदि पीएम को समर्थन देते हैं तो राष्ट्रहित और जनहित दोनों की क्षति करते हैं.

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